Basant Munda
Ranchi : ईश-सेविका मेरी बेर्नादेत्त प्रसाद किस्पोट्टा का जन्म 2 जून 1878 को झारखंड के रांची जिले के मांडर प्रखंड स्थित सरगांव में एक लूथरन परिवार में हुआ था. वह पूरनप्रसाद किस्पोट्टा और पौलिना की प्रथम पुत्री थीं.
16 जून 1878 को लूथरन चर्च में उनका बपतिस्मा हुआ और नाम ख्रीस्त आनन्दित रूथ किस्पोट्टा रखा गया.बाद में 31 जुलाई 1890 को उन्होंने कैथोलिक विश्वास को स्वीकार किया और मरिया बेर्नादेत्त किस्पोट्टा नाम ग्रहण किया.21 फरवरी 1892 को उन्होंने दृढ़ीकरण संस्कार प्राप्त किया.
संत अन्ना की पुत्रियों के धर्मसंघ की स्थापना
26 जुलाई 1897 को संत अन्ना की पुत्रियों का धर्मसंघ रांची में स्थापित हुआ.मेरी बेर्नादेत्त और उनकी तीन सहेलियां सेसिलिया, बेरोनिका और मेरी इस संघ की पहली सदस्य बनीं. 8 अप्रैल 1901 को उन्होंने लोरेटो (वर्तमान मे उर्सुलाईन कान्वेंट स्कूल) धर्मबहनों से प्रशिक्षण लेकर प्रथम व्रतधारण किया. 26 जुलाई 1906 को उन्होंने अंतिम व्रतवारण किया. 1 नवम्बर 1903 को धर्मसंघ की प्रथम सुपीरियर जनरल नियुक्त की गईं.
सेवा, समर्पण और संघर्ष का जीवन
मेरी बेर्नादेत्त ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा बेथेसदा विद्यालय, रांची से और उच्च शिक्षा लोरेटो कान्वेंट स्कूल, पुरुलिया रोड से प्राप्त की. वहीं से प्रेरित होकर सदा कुंवारी रहकर गरीब, दीन-दुःखी और पीड़ितों की सेवा में जीवन समर्पित किया. इस निर्णय ने समाज और मिशनरियों दोनों को झकझोर दिया. परिवार और समाज के विरोध, विवाह के दबाव, अपमान और यातनाओं के बावजूद वे अपने निर्णय में अडिग रहीं.
मेरी बेर्नादेत्त ने 64 वर्षों तक धर्मसंघ और कलीसिया की सेवा की.16 अप्रैल 1961 को संत अन्ना कॉन्वेंट, रांची में उन्होंने अंतिम सांस ली.ईश-सेविका घोषित संतता की दिशा में ऐतिहासिक कदम .7 अगस्त 2016 को संत मरिया महागिरजा, रांची में कार्डिनल तेलेस्फोर पी. टोप्पो द्वारा मेरी बेर्नादित्त को ईश-सेविका घोषित किया गया.
पहली आदिवासी नन बनीं और महिलाओं के लिए बनी मिसाल
उनका यह कदम उस दौर की परंपराओं को तोड़ने वाला था, जब आदिवासी समाज में अविवाहित रहने वाली महिला की कल्पना तक नहीं की जा सकती थी.फिर भी उन्होंने अपनी तीन सहेलियों के साथ मिलकर आदिवासी महिलाओं के लिए नया मार्ग प्रशस्त किया.
धर्मसंघ ने बढ़ाया ईसाई मिशन का कार्यक्षेत्र
संत अन्ना की पुत्रियों का धर्मसंघ फादर कॉन्सटेन्ट लीवन्स एस.जे. के मिशन कार्य का फल माना जाता है.मेरी बेर्नादेत्त के नेतृत्व में इस संघ ने शिक्षा, स्वास्थ्य, समाजसेवा और सुसमाचार प्रचार के माध्यम से ख्रिस्त के प्रेम का संदेश पूरे भारत और विदेशों तक फैलाया.
83 वर्ष की आयु में ईश्वर की गोद में विश्राम
मेरी बेर्नादेत्त ने 64 वर्षों तक धर्मसंघ और कलीसिया की सेवा की.16 अप्रैल 1961 को संत अन्ना कॉन्वेंट, रांची में उन्होंने अंतिम सांस ली.ईश-सेविका घोषित संतता की दिशा में ऐतिहासिक कदम.7 अगस्त 2016 को संत मरिया महागिरजा, रांची में कार्डिनल तेलेस्फोर पी. टोप्पो द्वारा मेरी बेर्नादित्त को ईश-सेविका घोषित किया गया.
संतता की प्रक्रिया जारी, सात समितियां कर रहीं खोजबीन
मेरी बेर्नादित्त की संतता प्रक्रिया को आगे बढ़ाने के लिए सात समितियों का गठन किया गया है जिसमें धर्मप्रान्तीय न्यायाधिकरण,ऐतिहासिक जांच समिति,ईशशास्त्रीय समिति,कलीसियाई कानून समिति,अनुवादन समिति,धर्मप्रान्तीय समिति,साक्ष्य जुटाने वाली समिति शामिल है. ये समितियां उनके जीवन और कार्यों से जुड़े साक्ष्य, गवाहियां और ऐतिहासिक दस्तावेज़ एकत्र कर रही हैं.
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