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प्रयोगशालाओं में भारतीय भाषाओं के सम्यक विकास के लिए सात सूत्री चार्टर बनाए गए हैं : डॉ. इंद्रनील

Jamshedpur : “अन्तरराष्ट्रीय मातृभाषा दिवस” के अवसर पर सीएसआईआर-राष्ट्रीय धातुकर्म प्रयोगशाला (एनएमएल), जमशेदपुर की ओर से 21 फरवरी को ऑनलाइन वैज्ञानिक व्याख्यानमाला का आयोजन किया गया. इसमें एनएमएल के अनेक वरिष्ठ वैज्ञानिक, शोधार्थी और तकनीकी व्याख्यान आयोजन समिति के सदस्यों ने इसमें भाग लिया. सभी ने अपने शोध कार्य और समूह अनुसंधान गतिविधियों को “अपनी-अपनी मातृभाषा” में प्रस्तुत किया. इससे स्पष्ट है कि सीएसआईआर-राष्ट्रीय धातुकर्म प्रयोगशाला, जमशेदपुर के वैज्ञानिक तकनीकी विषयों को पूरी निपुणता और सक्षमता के साथ मातृभाषा में अभिव्यक्त कर सकते हैं. ये सभी राष्ट्र के गौरव को उत्कर्ष तक पहुंचाने में अपनी महत्वपूर्ण भागीदारी निभा सकते हैं. अपनी-अपनी मातृभाषा में समर्पित वैज्ञानिक व्याख्यान भाषानुकूल अति सरल, सहज-संप्रेषणीय और हृदय तक पहुंचने में सर्वथा समर्थ थे. प्रयोगशाला के निदेशक डॉ. इंद्रनील चट्टोराज ने कहा कि भारत सरकार की राष्ट्रीय शिक्षा नीति के आलोक में अंतरराष्ट्रीय मातृभाषा दिवस के अवसर पर संगोष्ठी काफी महत्वपूर्ण है. भारत सरकार के वैज्ञानिक और प्रौद्योगिकी मंत्रालय ने सभी वैज्ञानिक शोध संस्थानों में मातृभाषा और राष्ट्रभाषा में शोध और अन्वेषण करने की पहल शुरू कर दी है. सीएसआईआर की सभी प्रयोगशालाओं में भारतीय भाषाओं के सम्यक विकास के लिए सात सूत्री चार्टर बनाए गए हैं, जिसे सीएसआईआर की सभी प्रयोगशालाओं में लागू करना है. राष्ट्रीय शिक्षा नीति बच्चों को उनकी मातृभाषा और प्रांतीय भाषाओं में सीखने पर बल देती है. यह एक अभूतपूर्व निर्णय है और इसे लागू करने में शिक्षकों की भूमिका महत्वपूर्ण है. इसे भी पढ़ें : दुनियाभर">https://lagatar.in/worldwide-gas-shortage-domestic-gas-prices-are-expected-to-double-in-april-driving-and-cooking-will-be-expensive/">दुनियाभर

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जीवन के हर क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनना है

  [caption id="attachment_250291" align="aligncenter" width="191"]https://lagatar.in/wp-content/uploads/2022/02/NML-DIRECTOR-DR-INDRANIL.jpg"

alt="" width="191" height="216" /> निदेशक डॉ. इंद्रनील चट्टोराज.[/caption] डॉ. इंद्रनील चट्टोराज ने कहा कि उच्च शिक्षण तथा शोध संस्थानों में हिंदी और भारतीय भाषाओं के प्रयोग को किस प्रकार बढ़ावा देना है, ताकि हमारे बच्चे बिना किसी बाधा के सहजतापूर्वक वैज्ञानिक और तकनीकी विषयों की समझ को विकसित कर सकें. हमारी परिकल्पना आत्मनिर्भर भारत की है और हमें जीवन के हर एक क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनना है. वैज्ञानिक और तकनीकी अनुसंधानों ने मानव जीवन को विकसित व सुविधापूर्ण बनाने में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है. किसी भी देश में विज्ञान का प्रचार-प्रसार जन भाषा में ही प्रभावकारी और प्रेरक बन सकता है. यह नई नीति देश में स्कूल और उच्च शिक्षा में परिवर्तनकारी सुधारों का मार्ग प्रशस्त करेगी. भारत सरकार ने राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 में कई बड़े बदलाव किए गए हैं, जिनमें शीर्ष विदेशी विश्वविद्यालयों को भारत में कैंपस स्थापित करने की अनुमति देना और छात्रों को व्यावसायिक शिक्षा प्रदान करना जैसे बड़े कदम शामिल हैं.

"भारत को वैश्विक ज्ञान महाशक्ति" के रूप में विकसित करना लक्ष्य

इस नीति का लक्ष्य "भारत को वैश्विक ज्ञान महाशक्ति" के रूप में विकसित करना है। राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 के माध्यम से भारत अपने वैभव को पुनः प्राप्त करेगा. राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 को गुणवत्ता, पहुंच, जवाबदेही, सामर्थ्य और समानता के आधार पर एक समूह प्रक्रिया के अंतर्गत बनाया गया है. जहां विद्यार्थियों के कौशल विकास पर ध्यान दिया गया है, वहीं पाठ्यक्रम को लचीला बनाया गया है, ताकि वे अंतरराष्ट्रीय प्रतिस्पर्धा का सफलतापूर्वक मुकाबला कर सकें. राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 के माध्यम से हम भारत को गुणवत्तापरक, नवाचार युक्त, प्रौद्योगिकी युक्त और भारत केंद्रित शिक्षा दे पाने में सफल होंगे. भारत सरकार के निर्णय के आलोक में सीएसआईआर की सभी प्रयोगशालाओं में भाषा के संबंध में जो सात सूत्री कार्यक्रम बनाए गए हैं, उससे वैज्ञानिक शोध संस्थानों में भारतीय विरासत को प्राप्त करने और इसके गौरव को पुनः स्थापित करने में काफी मदद मिलेगी.

भाषाई, सांस्कृतिक व बहुभाषिकता को मिलेगा बढ़ावा : डॉ पुरुषोत्तम

[caption id="attachment_250287" align="aligncenter" width="266"]https://lagatar.in/wp-content/uploads/2022/02/NML-CONFRENC-266x300.jpg"

alt="" width="266" height="300" /> राजभाषा विभाग के प्रमुख डॉ पुरुषोत्तम कुमार.[/caption] प्रयोगशाला के राजभाषा विभाग के प्रमुख डॉ. पुरुषोत्तम कुमार ने कार्यक्रम का संयोजन किया और कहा कि आज का दिन ऐतिहासिक है. संयुक्त राष्ट्र ने वर्ष 2022 से लेकर वर्ष 2032 के बीच की अवधि को स्वदेशी भाषाओं के अंतरराष्ट्रीय दशक के रूप में नामित किया है. इस दिवस को मनाने का उद्देश्य है कि विश्व में भाषाई एवं सांस्कृतिक विविधता एवं बहुभाषिकता को बढ़ावा मिले. ऐसे आयोजनों से देश में भाषाई एकता का भाव पैदा करने में मदद मिलेगी. हमें विविधता में एकता की भावना से राजभाषा हिंदी के साथ-साथ प्रादेशिक भाषाओं का विकास करने की प्रेरणा मिलेगी. भारत के उपराष्ट्रपति महोदय के विशेष आग्रह पर माननीय विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्री ने वैज्ञानिक विधाओं में भी भारतीय भाषाओं को स्थापित करने का निर्णय लिया है. भारत की राजभाषा तथा अन्य प्रादेशिक भाषाओं के विकास, संवर्धन एवं संरक्षण के लिए यह आवश्यक है कि वैज्ञानिक तथा तकनीकी विषयों में भी इसके प्रयोग को बढ़ावा दिया जाए. जब कोई भी भाषा विज्ञान तथा रोजगार की भाषा बनने लगती है तो देश को उत्कर्ष प्राप्त होता है. इसे भी पढ़ें : गृह">https://lagatar.in/home-minister-amit-shah-said-bsp-continues-to-exist-in-up-will-get-votes-of-muslims-sp-bsp-soft-on-terrorism/">गृह

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शोध पत्रों को हिंदी व मातृभाषा में प्रस्तुत करने का निर्णय

सीएसआईआर की सभी प्रयोगशालाओं में शोध पत्रों की प्रस्तुति राजभाषा हिंदी तथा मातृभाषा में करने का निर्णय लिया गया है. विज्ञान के क्षेत्र में पीएच.डी. करने वाले सभी छात्रों के लिए यह अनिवार्य कर दिया गया है कि उनके शोध पत्रों के सारांश राजभाषा हिंदी के साथ-साथ उनकी मातृभाषा में भी लिखे हो. इस मंत्रालय द्वारा 7 सूत्री कार्यक्रम बनाए गए हैं, जिसका अनुपालन सीएसआईआर की सभी प्रयोगशालाओं को करना है. अंतरराष्ट्रीय मातृभाषा के अवसर पर सीएसआईआर-राष्ट्रीय धातुकर्म प्रयोगशाला, जमशेदपुर में आयोजित वैज्ञानिक व्याख्यान माला का आयोजन एक छोटी सी शुरुआत है जिसके अंतर्गत आज हिंदी, बांग्ला, मैथिली, उड़िया, तेलुगू तथा तमिल भाषाओं में वैज्ञानिक व्याख्यान की प्रस्तुति दी जाएगी. यह गौरव की बात है कि अंतरराष्ट्रीय मातृभाषा दिवस के पुनीत अवसर पर आज के व्याख्यान में हमारी प्रयोगशाला के अलावे नराकास के कई सदस्य कार्यालय जुड़े हुए हैं, मैं आप सभी का हार्दिक अभिनंदन करता हूं और व्याख्यान देने वाले सभी वैज्ञानिक मित्रों के प्रति कृतज्ञता ज्ञापित करता हूं। वह दिन दूर नहीं है जब हमारी मातृभाषाओं मे शीघ्र ही वैज्ञानिक शोध पत्र लिखे जाएंगे और हमारी राष्ट्रीय प्रज्ञा विश्व में उत्कर्ष पर होगी.

वैज्ञानिक क्षेत्रीय भाषाएं भी सीखें : डॉ अरविन्द सिन्हा

मुख्य वैज्ञानिक सह सलाहकार प्रबंधन, डॉ. अरविन्द सिन्हा ने “स्थानीय भाषा और विज्ञान : मन की बात” विषय पर अति महत्वपूर्ण व्याख्यान हिन्दी भाषा में दिया. उन्होंने कहा कि शिक्षा का उद्देश्य समाज को चुनौतीपूर्ण बनाना है ताकि वह जन-जन तक पहुंच सके. विदेशों में अनेक ऐसे देश भी हैं जो चाह रहे है कि उनकी भाषा क्षेत्रीय भाषा हो ताकि वहां के लोग आमजन की भाषा में बोल और समझ सकें. वैज्ञानिकों को चाहिए कि वे क्षेत्रीय भाषाओं को भी सीखें ताकि शोध कार्य को सरलतापूर्वक समझा व बोला जा सके. वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. अतनु दास ने “वेल्डिंग अनुसंधान पर एक संक्षिप्त चर्चा” विषय पर अपने द्वारा किए गए शोध की महत्वपूर्ण जानकारी बंगला भाषा में दी। उन्होंने कहा कि वेल्डिंग की पद्धति से धातु को जोड़ा जाता है. ताप के द्वारा हम एक धातु को दूसरे धातु से वेल्डिंग की पद्धति के माध्यम से जोड़ने का काम करते हैं.

डॉ शैलेन्द्र ने मैथिली में शोध की दी जानकारी

प्रधान वैज्ञानिक, डॉ. शैलेन्द्र कुमार झा ने “विद्युत-लेपन तकनीक की उपयोगिता एवं संभावनाएं” विषय पर अपने द्वारा किए गए शोध कार्य की महत्वपूर्ण जानकारी मैथिली भाषा में दी. उन्होंने कहा कि हम अपने घरों में धातु की सजावटी सामग्री का उपयोग करते हैं जो कि पूरी तरह से धातु के माध्यम से पॉलिस किया हुआ रहता है. अनुप्रयोगी वैज्ञानिक शोध के माध्यम से विद्युत-लेपन तकनीक आदि की उपयोगिता पर महत्वपूर्ण जनकारी को पावर पॉइंट के माध्यम से दिखाकर प्रस्तुत किया. वरिष्ठ वैज्ञानिक, डॉ. गणेश चलवाड़ी ने “शुष्क कोल सज्जीकरण” विषय पर अपने द्वारा किए गए शोध की महत्वपूर्ण जानकारी तेलगु भाषा में दी तथा सभी के समक्ष पावर पॉइंट के माध्यम से दिखाकर साझा किया. वैज्ञानिक, डॉ. सुमन्त कुमार प्रधान ने “संक्षारण : अभिशाप या वरदान” विषय पर अपने द्वारा किए गए शोध की महत्वपूर्ण जानकारी उड़िया भाषा में दी तथा सभी के समक्ष पावर पॉइंट के माध्यम से दिखाकर प्रस्तुत किया. वरिष्ठ वैज्ञानिक प्रेमकुमार एम. ने “प्राचीन तमिल साहित्य में विज्ञान” विषय पर उन्होंने अति महत्वपूर्ण जानकारी तमिल भाषा में दी तथा सभी के समक्ष पावर पॉइंट के माध्यम से दिखाकर प्रस्तुत किया.

व्याख्यानमाला में 80 से अधिक प्रतिनिधि हुए शामिल

उपर्युक्त कार्यक्रम में प्रयोगशाला के वरिष्ठ वैज्ञानिकों और शोधार्थियों के अलावे नराकास जमशेदपुर के कई सदस्य कार्यालयों जैसे एनआईटी जमशेदपुर, इंडो डेनिश टूल्स रूम, सीआरपीएफ, एएमडी, पावर ग्रिड, एनएएल बेंगलुरु आदि कार्यालयों सहित आईआईटी खड़गपुर के छात्र-छात्राओं ने बढ़-चढ़ कर हिस्सा लिया. कार्यक्रम को सफल बनाने में व्याख्यान समिति के डॉ. आरके साहू, डॉ. रणजीत कुमार सिंह, बिराज कुमार साहू ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. सफलतापूर्वक मंच के संचालन और कार्यक्रम की विस्तृत रूपरेखा प्रस्तुत करने में वरिष्ठ वैज्ञानिक आरती कुमारी की भूमिका अति महत्वपूर्ण थी. अंत में धन्यवाद ज्ञापन संगोष्ठी समिति के सदस्य सह वरिष्ठ वैज्ञानिक बिराज कुमार साहू ने किया. इस ऑनलाइन वैज्ञानिक व्याख्यान माला में 80 से अधिक प्रतिभागियों ने भाग लिया. [wpse_comments_template]

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