Ranchi : हर साल अश्विन शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि को शारदीय नवरात्रि की शुरुआत होती है. इस बार यह 22 सितंबर से शुरू हो रही है. प्रतिपदा तिथि का प्रारंभ 22 सितंबर को 01:23 एएम बजे और समापन 23 सितंबरको 02:55 एएम बजे होगा. वहीं शारदीय नवरात्रि का समापन 2 अक्टूबर को होगा.
पहले दिन माँ शैलपुत्री की उपासना
पहले दिन मां दुर्गा के प्रथम स्वरूप मां शैलपुत्री की उपासना की जाती है. पर्वतराज हिमालय की पुत्री होने के कारण इन्हें शैलपुत्री कहा जाता है. मान्यता है कि मां शैलपुत्री की पूजा से मानसिक शांति, स्थिरता और सकारात्मक ऊर्जा प्राप्त होती है.
कलश स्थापना का शुभ मुहूर्त
नवरात्रि के पहले दिन घट और कलश स्थापना की जाती है. कलश स्थापना का शुभ मुहूर्त सुबह में 06:09 बजे से सुबह 07:40 बजे तक है. वहीं उत्तम मुहूर्त सुबह 09:11 बजे से सुबह 10:43 बजे तक है. जबकि अभिजीत मुहूर्त 11:49 बजे से दोपहर 12:38 बजे तक रहेगा.
कलश स्थापना की विधि
कलश स्थापना के लिए चांदी, मिट्टी या तांबे का कलश लें. सबसे पहले घटस्थापना की जगह पर गंगाजल का छिड़काव करें. हल्दी से अष्टदल बनाएं. अब कलश में जल भर लें और गंगाजल डालें. इसके अलावा कलश में सिक्का, फूल और अक्षत डालें. नारियल को लाल चुनरी में लपेटकर कलश के ऊपर रख दें. कलश पर रोली से तिलत करें. अंत में मां दुर्गा के नाम का ध्यान रखें.
जौ बोने से जीवन में आती है सुख-समृद्धि और खुशहाल
घट स्थापना में जौ बोए जाते हैं. धार्मिक मान्यता के अनुसार, जौ बोने से जीवन में सुख-समृद्धि और खुशहाली आती है और मां दुर्गा की कृपा प्राप्त होती है.
जौ बोने की विधि
- सबसे पहले जौ को साफ करें.
- मिट्टी के पात्र में स्वास्तिक बनाए.
- मिट्टी या रेत डालें.
- इसके बाद जौ डालें और पानी डालें.
- रोजना पूजा के दौरान जौ पर पानी छिड़के.
माँ शैलपुत्री की ऐसे करें पूजा
नवरात्रि के पहले दिन कलश स्थापना के बाद मां शैलपुत्री की प्रतिमा या चित्र के सामने घी का दीपक जलाएं और फूल अर्पित करें. माता को खीर, बर्फी और रबड़ी का भोग लगाना शुभ माना जाता है. मंत्रों का जाप करने और आरती उतारने के बाद प्रसाद सभी भक्तों में बांट दें.
इस रंग का वस्त्र धारण करने से माँ होंगी प्रसन्न
नवरात्रि के पहले दिन नारंगी, लाल और पीले वस्त्र धारण करना शुभ फलदायी माना गया है. मान्यता है कि इन रंगों का प्रयोग करने से मां शैलपुत्री का विशेष आशीर्वाद प्राप्त होता है.
माँ को लगाये ये भोग
मां शैलपुत्री को इस दिन सफेद वस्तुएं जैसे खीर, बर्फी और रबड़ी का भोग अर्पित किया जाता है.
माँ शैलपुत्री की कथा
पुराणों के अनुसार, प्रजापति दक्ष ने एक भव्य यज्ञ का आयोजन किया, जिसमें उन्होंने भगवान शिव और अपनी पुत्री सती को आमंत्रित नहीं किया. सती पिता के यज्ञ में बिना बुलाए पहुंचीं, जहां उनका और शिवजी का अपमान हुआ.
इससे व्यथित होकर सती ने यज्ञ की वेदी में कूदकर प्राण त्याग दिए. बाद में उन्होंने पर्वतराज हिमालय के घर जन्म लिया और कठोर तपस्या कर भगवान शिव को पुनः पति रूप में प्राप्त किया. यही रूप मां शैलपुत्री कहलाता है.
इस मंत्र का करें जाप
- ॐ देवी शैलपुत्र्यै नमः॥
- वन्दे वाञ्छितलाभाय चन्द्रार्धकृतशेखराम।
वृषारूढां शूलधरां शैलपुत्रीं यशस्विनीम॥
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