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चक्रधरपुर में बीजेपी की जमीन बचाने आये शशिभूषण सामड की राह नहीं आसान, खांटी भाजपाइयों में बढ़ रहा असंतोष

Ranchi: पश्चिम सिंहभूम में अपनी खिसकती जमीन को बचाने के लिए बीजेपी ने मेहनत शुरू कर दी है. पूर्व सांसद और प्रदेश अध्यक्ष लक्ष्मण गिलुआ के निधन के बाद चाईबासा, चक्रधरपुर इलाके में बीजेपी के पास कोई कद्दावर नेता नहीं बचा है. बीजेपी अब पूर्व विधायक शशिभूषण सामड में पश्चिमी सिंहभूम में अपना भविष्य देख रही है. शशिभूषण ने बीजेपी में वापसी कर अपनी जमीन तैयार करनी भी शुरू कर दी है. वैसे तो वहां बीजेपी के पास रतनलाल बोदरा, ललित मोहन गिलुआ, विजय मेलगांडी, श्याम सुंदर नाग और चुमनू उरांव जैसे नेता बीजेपी के पास मौजूद हैं, लेकिन पार्टी को फिर से शिखर पर ले जाने की क्षमता सिर्फ शशिभूषण सामड में ही दिख रही है, लेकिन उनकी राहें आसान नहीं हैं. जो नेता लक्ष्मण गिलुआ की जगह लेने को बेचैन थे और बीजेपी के साथ पूरी ईमानदारी के साथ खड़े थे, उनके अरमानों के टुकड़े-टुकड़े हो गये हैं. संगठन के अंदर असंतोष बढ़ता जा रहा है. इसे भी पढ़ें- जीतराम">https://lagatar.in/jeetram-munda-murder-case-ranchi-police-will-give-reward-one-lakh-person-gives-information-main-accused-manoj-munda/">जीतराम

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चक्रधरपुर से बीजेपी के विधानसभा प्रत्याशी हो सकते हैं सामड 

यह लगभग तय है कि अगले विधानसभा चुनाव में शशिभूषण सामड चक्रधरपुर से बीजेपी के प्रत्याशी हो सकते हैं. लक्ष्मण गिलुआ की पत्नी भी सामाजिक, मंचों पर नजर आ रही हैं. उन्हें भी पार्टी लोकसभा का प्रत्याशी बना सकती है. सामड को गिलुआ समर्थकों का सपोर्ट मिल रहा है, लेकिन एक खेमे में नाराजगी बरकरार है. सामड सभी कार्यकर्ताओं को साथ लेकर चलने की कोशिश कर रहे हैं, लेकिन भीतरघात की आशंका लगातार बनी हुई है. वैसे भी शशिभूषण सामड के राजनीतिक इतिहास को देखने से पता चलता है कि हर बार कड़ी मेहनत करने के बाद भी उनकी किस्मत दगा दे जाती है. इसे भी पढ़ें- पलामू,">https://lagatar.in/palamu-latehar-and-seraikela-ddc-reprimanded-special-campaign-will-run-from-october-7-for-housing-plus-in-the-state/">पलामू,

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दल बदल-बदल कर तलाशते रहे राजनीतिक भविष्य, सिर्फ 2014 में मिली सफलता

शशिभूषण सामड पश्चिमी सिंहभूम में अपनी मजबूत पकड़ रखते हैं. 1992 से उन्होंने सक्रिय राजनीति में कदम रखा. पार्टियां बदल-बदल कर हर बार चुनाव से पहले वो अपनी जमीन तैयार करते हैं, लेकिन एन वक्त पर किस्मत धोखा दे जाती है. सिर्फ 2014 के विधानसभा चुनाव में उन्हें सफलता मिली थी. 20 साल तक आर्मी के बिहार रेजिमेंट में रहकर वे 1992 में वापस लौटे थे. उस वक्त के दबंग नेता विजय सिंह सोय से उनकी नजदीकियां बढ़ीं और फिर उन्होंने कांग्रेस से अपनी राजनीतिक यात्रा की शुरुआत की. 8 साल तक कांग्रेस में रहने के बाद 2000 में वे बीजेपी में शामिल हुए. 2005 में चुनाव में उन्होंने टिकट मिलने की उम्मीद रखी थी, लेकिन लक्ष्मण गिलुआ को टिकट मिलने के कारण उन्होंने बीजेपी छोड़ लोजपा का दामन थाम लिया. हालांकि वे गिलुआ से चुनाव हार गये. सामड फिर 2009 के विधानसभा चुनाव से पहले बीजेपी लौटे और गिलुआ को जीत दिलाने में अहम भूमिका निभायी.

बीजेपी सामड में और सामड बीजेपी में तलाश रहे अपना भविष्य

सामड इसके बाद फिर से अपने राजनीतिक भविष्य की तलाश में आजसू पार्टी में चले गए, लेकिन 2014 के विधानसभा चुनाव में किस्मत ने उनका फिर साथ छोड़ दिया. बीजेपी-आजसू गठबंधन के तहत चक्रधरपुर सीट बीजेपी की झोली में चला गया. नौमी उरांव को बीजेपी ने वहां प्रत्याशी बना दिया. उधर शशिभूषण ने जेएमएम का हाथ थाम लिया और जेएमएम के प्रत्याशी बने. नौमी को 27000 वोट से हराकर सामड विधायक बने, लेकिन 2019 के विधानसभा चुनाव से पहले फिर उनकी किस्मत ने साथ नहीं दिया. जेएमएम ने उनकी जगह सुखराम उरांव को अपना प्रत्याशी बना दिया. तब सामड जेवीएम में शामिल हो गये और चुनाव लड़े, लेकिन वे चुनाव हार गये. एक बार फिर वे बीजेपी सामड में और सामड बीजेपी में अपना राजनीतिक भविष्य तलाश रहे हैं. देखना ये है कि 2024 में सामड की किस्मत उनका कितना साथ देती है. [wpse_comments_template]

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