Lagatar Desk : शिबू सोरेन और इंदिरा गांधी, दो ऐसे नाम हैं, जिन्होंने भारतीय राजनीति में अपनी गहरी छाप छोड़ी. शिबू सोरेन, जिन्हें "दिशोम गुरु" के रूप में जाना जाता है, झारखंड मुक्ति मोर्चा (JMM) के संस्थापक और आदिवासी आंदोलन के प्रखर नेता रहे.
जबकि इंदिरा गांधी भारत की पहली और एकमात्र महिला प्रधानमंत्री थीं, जिन्होंने भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस को मजबूती प्रदान की. इन दोनों नेताओं के बीच का रिश्ता, जो 1970 और 1980 के दशक में उभरा, न केवल राजनीतिक, बल्कि सामाजिक और क्षेत्रीय आंदोलनों के संदर्भ में भी महत्वपूर्ण था.
ऐतिहासिक और राजनीतिक पृष्ठभूमि
1970 का दशक भारत के लिए एक उथल-पुथल भरा समय था. इंदिरा गांधी 1966 से 1977 तक और फिर 1980 से 1984 तक भारत की प्रधानमंत्री रहीं. उन्होंने कई सामाजिक और आर्थिक सुधारों को लागू किया. साथ ही आपातकाल (1975-1977) जैसे विवादास्पद निर्णय भी लिए.
दूसरी ओर, शिबू सोरेन ने 1973 में झारखंड मुक्ति मोर्चा की स्थापना की, जिसका मुख्य उद्देश्य तत्कालीन बिहार के झारखंड क्षेत्र में आदिवासियों और मूलवासियों के अधिकारों की रक्षा करना और अलग झारखंड राज्य की मांग को मजबूत करना था.
इन दोनों नेताओं का पहला संपर्क तब हुआ, जब झारखंड आंदोलन अपने चरम पर था. शिबू सोरेन का आंदोलन आदिवासियों के शोषण, उनकी जमीनों पर गैर-आदिवासियों के अतिक्रमण और औद्योगिक विकास के नाम पर विस्थापन जैसे मुद्दों पर केंद्रित था.
इंदिरा गांधी, जो केंद्र में सत्तारूढ़ थीं, क्षेत्रीय आंदोलनों को समझने और उन्हें अपने पक्ष में करने की रणनीति अपनाती थीं. यहीं से शिबू सोरेन और इंदिरा गांधी के बीच एक जटिल रिश्ते की शुरुआत हुई.
सहयोग की शुरुआत
1970 के दशक में JMM का आंदोलन तेजी से लोकप्रिय हो रहा था. शिबू सोरेन ने आदिवासी समुदायों को संगठित कर एक मजबूत जनाधार तैयार किया था. इंदिरा गांधी ने इस आंदोलन की ताकत को पहचाना और इसे अपने राजनीतिक लाभ के लिए उपयोग करने की कोशिश की.
1977 के लोकसभा चुनाव में, जब आपातकाल के बाद कांग्रेस को भारी हार का सामना करना पड़ा, इंदिरा गांधी ने क्षेत्रीय दलों के साथ गठबंधन की रणनीति अपनाई. झामुमो, जो उस समय तक एक महत्वपूर्ण क्षेत्रीय शक्ति बन चुका था, इंदिरा के लिए एक संभावित सहयोगी था.
शिबू सोरेन और इंदिरा गांधी के बीच सहयोग का एक प्रमुख उदाहरण 1980 के लोकसभा चुनाव में देखा गया. इस समय तक शिबू सोरेन दुमका से पहली बार सांसद चुने गए थे. इंदिरा गांधी ने झामुमो के साथ गठजोड़ की संभावनाएं तलाशीं, क्योंकि झारखंड क्षेत्र में कांग्रेस का प्रभाव कम हो रहा था.
शिबू सोरेन ने भी इस गठबंधन को स्वीकार किया, क्योंकि केंद्र सरकार का समर्थन उनके आंदोलन को और मजबूती दे सकता था. इस गठजोड़ ने झामुमो को राष्ट्रीय स्तर पर पहचान दिलाई और शिबू सोरेन को दिल्ली की राजनीति में एक नई पहचान मिली.
तनाव और मतभेद
शिबू सोरेन और इंदिरा गांधी का रिश्ता हमेशा सहज नहीं रहा. झामुमो का मूल उद्देश्य अलग झारखंड राज्य की मांग थी, जो केंद्र सरकार के लिए एक संवेदनशील मुद्दा था. इंदिरा गांधी ने इस मांग को कभी भी स्पष्ट रूप से समर्थन नहीं दिया, क्योंकि इससे बिहार जैसे बड़े राज्य का विघटन हो सकता था, जो कांग्रेस के लिए एक महत्वपूर्ण राजनीतिक आधार था. इस मुद्दे पर दोनों नेताओं के बीच तनाव रहा.
1975 में आपातकाल के दौरान शिबू सोरेन की आंदोलनकारी गतिविधियों पर सख्ती बरती गई. झामुमो के कई कार्यकर्ताओं को गिरफ्तार किया गया और शिबू सोरेन को भी सरकारी दबाव का सामना करना पड़ा.
चिरूडीह नरसंहार (1975) जैसे विवादों ने उनके और केंद्र सरकार के बीच तनाव को और बढ़ा दिया. हालांकि इंदिरा गांधी ने शिबू सोरेन को पूरी तरह से अलग-थलग करने की बजाय, उन्हें अपने पक्ष में रखने की रणनीति अपनाई.
1980 में सत्ता में वापसी के बाद, इंदिरा गांधी ने शिबू सोरेन के साथ संवाद को बनाए रखा. उन्होंने आदिवासी समुदायों के लिए कुछ कल्याणकारी योजनाएं शुरू कीं, जो झामुमो के एजेंडे से मेल खाती थीं. लेकिन अलग झारखंड राज्य की मांग पर उनकी चुप्पी ने शिबू सोरेन और उनके समर्थकों में असंतोष पैदा किया.
व्यक्तिगत और राजनीतिक रिश्ते
शिबू सोरेन और इंदिरा गांधी के बीच का रिश्ता पूरी तरह से रणनीतिक था. इंदिरा गांधी के लिए, शिबू सोरेन एक क्षेत्रीय नेता थे, जिनके माध्यम से झारखंड जैसे आदिवासी बहुल क्षेत्र में कांग्रेस का प्रभाव बढ़ाया जा सकता था.
दूसरी ओर, शिबू सोरेन ने इंदिरा गांधी के समर्थन का उपयोग झामुमो को राष्ट्रीय मंच पर स्थापित करने और अपने आंदोलन को मजबूत करने के लिए किया.
यह भी उल्लेखनीय है कि शिबू सोरेन ने कभी भी कांग्रेस में शामिल होने का फैसला नहीं किया. वे हमेशा झामुमो की स्वतंत्र पहचान को बनाए रखने के पक्षधर रहे. फिर भी 1980 के दशक में JMM और कांग्रेस के बीच कई मौकों पर सहयोग देखा गया, खासकर चुनावी गठजोड़ के रूप में.
लंबे समय का प्रभाव
शिबू सोरेन और इंदिरा गांधी के रिश्ते का सबसे बड़ा प्रभाव यह रहा कि झामुमो को राष्ट्रीय स्तर पर एक पहचान मिली. इंदिरा गांधी की मृत्यु (1984) के बाद भी, झामुमो ने कांग्रेस के साथ समय-समय पर गठबंधन बनाए रखा.
2000 में जब झारखंड एक अलग राज्य बना, तो शिबू सोरेन और झामुमो की भूमिका को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता. हालांकि इंदिरा गांधी ने अलग झारखंड की मांग का समर्थन नहीं किया, लेकिन उनके द्वारा शुरू किए गए आदिवासी कल्याण कार्यक्रमों ने झारखंड आंदोलन को अप्रत्यक्ष रूप से बल दिया.
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