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संताल हूल और बिरसा उलगुलान के बाद झारखंड के सबसे बड़े नायक हैं शिबू सोरेन

PRAVIN KUMAR Ranchi : झारखंड के इतिहास को संताल हूल और बिरसा उलगुलान के बाद यदि किसी एक व्यक्ति ने नया आयाम दिया है, तो वह हैं शिबू सोरेन. संताल हूल ने भारत के स्वतंत्रता संग्रम की नींव डाली, तो बिरसा के उलगुलान ने अंग्रेजी साम्रज्यावाद को बेपर्द कर दिया. आजाद भारत में शिबू सोरेन ने झारखंड आंदोलन को आदिवासी समाजवादी चेतना से लैस किया. आदिवासी अस्मिता, इंसाफ और स्वशासन जैसे सवालों पर झारखंडी संघर्ष परवान चढा. एके राय और विनोद बिहारी महतो के साथ मिल कर शिबू सोरेन ने मजदूरों और झारखंडी किसानों को एकजुट किया. झारखंड आंदोलन के इतिहासकार मानते हैं कि इन तीनों के प्रयास से ही पहली बार झारखंड़ आंदोलन की वर्ग चेतना ने आकार लिया. इसे भी पढ़ें -व्यापारी">https://lagatar.in/ban-on-the-implementation-of-whatsapps-new-privacy-policy/16962/">व्यापारी

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राजनीतिक क्षितिज पर 1969 से 1976 तक के प्रयोग  

जमींदारों और सूदखोर महाजनों ने सोबरन मांझी की हत्या करा दी थी. अन्याय के खिलाफ लड़नेवाले सोबरन मांझी शिबू सोरेन के पिता थे. पिता की हत्या के बाद शिबू सोरेन के आगे की  पूरी जिंदगी जुल्म और जालिमों के खिलाफ  बदलाव के लिए ही समर्पित रही. शुरुआत में शिबू सोरेन पर वामपंथी नेताओं का प्रभाव था. खासकर कामरेड मंजूर का. रामगढ़ से विधायक का चुनाव जीतने की बाद मंजूर की हत्या कर दी गयी थी. शिबू सारेन के मन पर इन सबका गहरा प्रभाव था. बाद के दिनों में  शिबू सोरेन का टुंडी प्रयोग बहुत चर्चा में आया. इस प्रयोग में समाज सुधार का आवेग था. बिरसा मुंडा की तरह गुरुजी भी आदिवासी को नशा, खासकर हड़िया और शराब से दूर रहने की बात अक्सर अपनी सभाओं में कहते रहे हैं. वह आदिवासी समाज के पिछड़ेपन का एक बड़ा कारण हड़िया-दारू के प्रचलन को मानते रहे हैं. इसे भी पढ़ें -बर्ड">https://lagatar.in/take-precautions-regarding-bird-flu-pay-special-attention-to-cleanliness/16964/">बर्ड

फ्लू को लेकर बरतें सावधानियां, साफ-सफाई पर दें खास ध्यान

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नयी सांस्कृतिक चेतना उभारने में कामयाब रहे

हालांकि जयपाल सिंह ने झारखंड के आंदोलन को एक नया स्वर दिया था. उन्होंने संविधान सभा में आदिवासी सवालों को उठाया और उसे झारखंड के व्यापक संदर्भ का हिस्सा बनाया. लेकिन साठ के दशक तक आते –आते झारखंड आंदोलन कमजोर पड गया. शिबू सोरेन के उदय के बाद ही उसे नया तेवर मिला. एक ऐसा तेवर जो लंबे समय तक टिका रहा और अलग राज्य के आंदोलन को राज्य भर में बहस का मुद्दा बनाया. उन्होंने टुंडी से निकल कर संताल परगना फिर सिंहभूम और बाद में पूरे झारखंड के सामाजिक और सांस्कृतिक क्षेत्र को आंदोलित किया. यह कोई सामान्य परिघटना नहीं थी शिबू सारेने के 90 के दशक के बाद के जीवन को ले कर कई तरह के अंतरविरोधों की चर्चा होती है. बावजूद इसके इस हकीकत को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता कि 1970 के बाद के झारखंड आंदोलन को शिबू सोरेन की उपस्थिति ने पूरी तरह बदल दिया. झारखंड के अनेक लोगों के लिए आज का झारखंड चिंता का विषय है. लेकिन शिबू सारेन के आंदोलन के दौर में जिस तरह के मूल्यों की स्थापना हुई है, उसके असर को अब भी देखा जा सकता है. यह असर उन आंदोलनों में खास तौर पर देखा जा सकता है जो जमीन और जंगल की रक्षा के लिए चल रहे हैं. इसे भी पढ़ें -क्या">https://lagatar.in/is-the-purpose-of-linking-corona-vaccination-to-aadhar-card-collecting-big-data/16951/">क्या

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क्या कहते हैं 90 के दौर के झारखंड युवा मोर्चा के पदाधिकारी

झारखंड युवा मोर्चा के पूर्व अध्यक्ष नवीन चंचल गुरूजी के बारे में कहते हैं-आंदोलनों की धरती झारखंड के लिए शिबू सोरेन झारखंड इंसाफ और स्वशासन के ही प्रतीक हैं. यही वह  लोक विश्वास है, जो अनेक राजनीतिक तूफानों के बाद भी झारखंडी मूल का भरोसा आज भी गुरुजी पर बना हुआ है. उनके इस गुण को उनके पुत्र हेमंत सोरेन भी अत्मसात कर रहे हैं. मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन आज भी अबुआः दिशुम अबुआः राज की बात करते है तो यह गुरुजी के ही चेतना का विस्तार है. इसे भी पढ़ें -पर्यावरण">https://lagatar.in/state-government-is-considering-the-environmental-impact-assessment-draft-will-be-sent-to-the-center-soon/16943/">पर्यावरण

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गुरुजी में पीपुल कनेक्शन की शैली बेहद आत्मीयतावाली रही

झारखंड युवा मोर्चा के पूर्व पदाधिकारी व केंद्रीय कमिटी के सदस्य अनुज कुमार तिवारी कहते है दिशोम गुरु शिबू सोरेन में पीपुल्स कनेक्शन की शैली बेहद आत्मीयतावाली रही. वे लोगों को उनके दर्द और खुशी दोनों में हिस्सेदार बना लिया करते थे. स्वाभाविक संवाद और संबंध बनाने की इनकी शैली जबदस्त रही है. शिबू सोरेन हार की हताशा को आंदोलनों में बदल देने की ताकत रखते थे और कई बार उन्होंने पार्टी को राख से उठा कर खड़ा भी किया. राजनीतिक जीवन में शिबू सोरेन को अनेक विपरीत चुनौतियों का सामना करना पड़ा है. फिर भी वह कभी टूटे नहीं. यह ऊर्जा कार्यकर्ताओं को भी गतिशील बनाती रही है. कई बार पार्टी में टूट भी हुई, लेकिन हर बार वह विजेता के रूप में उभरे. बिनोद बिहारी महतो के विरोध के समय भी उन्होंने नये महतो नेताओं को आंदोलन का अगुवा बना दिया. इसे भी पढ़ें -Google">https://lagatar.in/private-group-became-public-on-google-search-profile-picture-of-users-also-public/16947/">Google

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सोवियत रूस में भी गुरुजी पर लेख लिखे गये

झारखंड युवा मोर्चा के पूर्व केंद्रीय महासचिव राजेश भगत कहते हैं, महाजनी प्रथा और सूदखोरों के खिलाफ किये गये आंदोलन पर सोवियत रूस में भी शिबू पर लेख लिखे गये. गुरुजी दीर्घायु हों, उनके आशीर्वाद से झारखंड फले-फूले, यही हम लोगों की कामना है. गुरुजी अक्सर पूरे झारखंड की यात्रा किया करते थे. युवा मोर्चा के कई उनके नेता साथ रहते थे. जो कार्यकर्ता खाते थे, वही भोजन गुरुजी भी करते थे. राज्य हित उनके लिए सबसे बड़ा रहा. हम युवा उस दौर में भी गुरुजी के साथ भूखे-प्यासे आंदोलनों में शिरकत किया करते थे. इसे भी पढ़ें -जामताड़ा">https://lagatar.in/jamtara-illegal-business-of-coal-running-in-mihizam-transportation-by-bike-and-bicycle/16937/">जामताड़ा

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