महागामा अंचल : 6 सालों में 76 से बढ़कर 208 हो गयी फर्जी जमाबंदी करानेवाले की संख्या
Pravin Kumar/ Amit Singh Ranchi: गोड्डा जिले के महागामा अंचल में पोस्टेड अफसर भू-माफियाओं पर मेहरबान रहे हैं. सरकारी जमीन की खरीद- बिक्री रोकने के लिए अफसरों को सरकार की ओर से बोर्ड लगाने का आदेश दिया गया था. लेकिन अफसरों ने भू-माफियाओं और खुद के फायदे के लिए कहीं भी सरकारी बोर्ड नहीं लगाया. आलम यह है कि दिन प्रतिदिन महागामा अंचल के बसुआ मौजा की 169 बीघा जमीन पर फर्जी दावेदारों की संख्या बढ़ती जा रही है. 2017 में अंचल कार्यालय में मौजूद सूची के अनुसार, 76 लोगों के नाम पर परती कदीम जमीन का अवैध जमाबंदी दर्ज था. वर्तमान में यह संख्या बढ़कर 208 हो गई. इनलोगों को अंचल कार्यालय महागामा की ओर से नोटिस जारी कर जमीन की जमाबंदी के साक्ष्य दिखाने को कहा गया है, लेकिन अबतक किसी ने ऐसा किया ही नहीं. भू-माफिया के आगे अधिकारी बौने, अंचल कार्यालय से बोर्ड गायब सरकारी जमीन की खरीद-बिक्री को देखते हुए पूर्व के महगामा अंचलाधिकारी ने अंचल के वैसे भूखंड, जिसकी फर्जी तरीके से जमाबंदी कराई गई, उसे चिह्नित करने और सरकारी जमीन पर बोर्ड लगाने की कार्रवाई शुरू की थी. मौजा, रकबा, थाना आदि से संबंधित बोर्ड भी बनवाया. लेकिन रसूखदार भू-माफियों के आगे उनकी नहीं चली. सरकारी खर्च पर बनवाए गए ज्यादातर बोर्ड अंचल परिसर से ही गायब हो गए.. हालांकि इस बात की आधिकारिक पुष्टि नहीं की गई है. महगामा के सीआई बोले- फंड नहीं, कहां से लगाएं बोर्ड अंचल के 6 से अधिक मौजे में सरकारी जमीन की फर्जी तरीके से खरीद-बिक्री के मामले में अंचलाधिकारी ने अनभिज्ञता जाहिर की. वहीं सरकारी जमीन पर बोर्ड लगाने के निर्देश पर अंचल निरीक्षक कहते हैं कि इसके लिए फंड नहीं है. कहां से बोर्ड लगाएं. वहीं सरकारी पशु अस्पताल के गायब हो जाने के सवाल पर कुछ नहीं कहते. बसुआ मौजा के गैरमजरुआ खाता संख्या-24 का दाग नं. 32 परती कदीम जमीन के फर्जी जमाबंदी का मामला अंचल में चल रहा है. किसी का भी निपटारा नहीं हुआ है. सरकार के निर्देश का भी नहीं हुआ पालन फर्जी जमाबंदी के मामले में सादा हुकुमनामा या पट्टा द्वारा की गई बंदोबस्ती की समीक्षा करने का सरकारी प्रावधान है. इसमें जमींदारी विवरणी रिटर्न फॉर्म -के है, जिसे झारखंड (बिहार) लैंड रिफॉर्म रूल 1951 के नियम 7 (बी) के तहत जमींदार द्वारा भरा जाना था. इससे जमीदारों द्वारा बंदोबस्त की गयी जमीन से मिलान किए जाने का प्रावधान है. कुछ मामले, जिसमें जमींदार ने रिटर्न (विवरणी) दाखिल नहीं किया था, वैसे मामले में लगान रसीद की जांच कर रसीद कब से कट रही है, इसकी समीक्षा की जानी है. साथ हीं लगान रसीद की राशि सरकारी खाजने में जमा हुई है कि नहीं, इसकी भी छानबीन करने का प्रावधान है. यदि सरकारी रसीद जमींदारी समाप्त होने के काफी बाद यानी 1961-62 के बाद से कटनी शुरू हुई है, तो मामला फर्जी जमाबंदी का प्रमाणित होता है. अंचल के बसुआ मौजा की 169 बीघा जमीन की जमाबंदी भी इसी तरह की है. मुख्य सचिव का निर्देश बेअसर, फर्जी जमाबंदी रद्द नहीं हुई सरकारी जमीन और फर्जी तरीके से की गयी जमाबंदी को लेकर तत्कालिन मुख्य सचिव राजबाला वर्मा ने 2016 में सभी जिला के उपायुक्तों को पत्र भेजा था, जिसमें उन्होंने स्पष्ट लिखा था कि सरकारी भूखंड पर किसी निजी व्यक्ति द्वारा सादा हुकुमनाम या पट्टा अथवा निबंध केवाला या अन्य दस्तावेज के आधार पर दावा किया जाता है, तो ऐसी स्थिति में दावा पर ठीक-ठाक जांच कर ली जाए. मात्र सरकारी लगान रसीद के आधार पर किसी के दवा को ठोस या सच नहीं माना जाए. अवैध/ संदेहास्पद जमाबंदी की अभियान चलाकर जांच की जाए. अवैध ढंग से खोली गई जमाबंदी के मामले में नियमानुसार बिहार (झारखंड) भूमि सुधार अधिनियम 1950 की धारा 4 (एच) के तहत कार्रवाई करते हुए जमाबंदी रद्द करने के साथ ही ऐसी जमीन को सरकारी कब्जे में लेने का कड़ा निर्देश दिया था. दोषी अफसर और कर्मचारी अबतक नहीं हुए चिह्नित मुख्य सचिव ने सरकारी जमीन के फर्जीवाड़े में शामिल दोषी अफसरों और कर्मचारियों को चिह्नित करते हुए उन पर कार्रवाई करने को कहा था. लेकिन जिला प्रशासन ने पिछले सात सालों में फर्जी जमाबंदी करने वाले कर्मियों पर कोई कार्रवाई नहीं की. और न ही सरकारी जमीन को कब्जे में लिया जा सका. महगामा अंचल में ऐसे कई मामले हैं, जिसमें जमाबंदी सादा हुकुमनामा के आधार पर की गयी है. जिसका जमींदारी रिटर्न भी रिकॉर्ड रूम में नहीं है. इसके बाद भी फर्जी तरीके से करायी गई जमाबंदी वाली जमीन की अफसरों के संरक्षण में खरीद -बिक्री का खेल हुआ है. [wpse_comments_template]
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