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साहब की तितली

Ranchi : गांव में तितली और उसके मंडराने की मशहूर कहावत है. सिर पर तितली मंडराना. सिर पर तितली मंडराने को शुभ संकेत माना जाता है. ऐसी मान्यता है कि जिसके सिर पर तितली मंडराती है उसके पास धन दौलत आने वाली है. कोई खजाना हाथ लगने वाला है. ब्यूरोक्रेसी में चर्चा है कि एक छटे साहब के सिर पर काफी दिनों से तितली मंडरा रही है. साहब ग्रेड-वन के अफसर हैं. लेकिन अभी छोटे ही हैं. जिले में इधर-उधर घूमते हैं. वह जहां भी जाते हैं तितली उनके साथ जाती है. वह जिस कुर्सी पर बैठते हैं, तितली वहीं मंडराती रहती है. उनके और तितली के साथ का यह पुराना इतिहास रहा है. साहब जहां-जहां गये. तितली भी वहां-वहां गई. तितली हर जगह साहब के सौभाग्य का प्रतीक बनी रही. साहब भी उस पर मेहरबान है. क्योंकि वह उनकी जिंदगी आसान कर देती है. 

 

पिछले ही दिनों साहब नयी जगह पर तैनात किये गये हैं. वह नयी जगह के सबसे ज्यादा पावरफुल साहब हैं. साहब अब नयी जगह पर तितली के लिए जगह बनाने के फिराक में हैं. उसके लिए कुछ बेहतर करने की कोशिश कर रहे हैं. इसमें उन्हें आधी कामयाबी मिल चुकी है. आधी पर अब भी संशय कायम है. साहब के सिर पर तितली के मंडराने की कहानी पुरानी हो चुकी है. हर आम व खास उनकी और तितली की कहानी जानता है. इसलिए नयी जगह पर साहब ने तितली को मंडराने के लिए एक दूसरा तरीका अपनाया है. इससे तितली उनके सिर पर मंडरा भी सके और किसी को नजर भी नहीं आये. इसके लिए साहब ने काम लेने के फारमूले में थोड़ी बदलाव की है. इस फारमूले में PPT को काफी महत्व दिया गया है. प्रतियोगिता में हिस्सा लेने वालों दिग्गजों के सारे कारनामे PPT में मिलने वाले नंबरों के सामने धराशायी हो जायेंगे. इस तरह PPT में मिले नंबरो के सहारे जिसे सफल घोषित किया जायेगा वह तितली को अपने पास बुलायेगा. सामने वह खुद रहेगा और तितली उसकी आड़ में साहब के सिर पर मंडराती रहेगी.

 

ब्यूरोक्रेसी में साहब की तितली के अलावा AUDI प्रेम भी काफी चर्चित रहा है. कुछ साल पहले साहब को जिले से मुख्यालय में लाया गया था. जिले में किसी ने उन्हें AUDI की सुविधा मुहैया करायी थी. साहब मुख्यालय में भी उसी AUDI से आने लगे. काफी हंगामा हुआ. चर्चा हुई कि नयी नयी नौकरी में AUDI कहां से आयी. हर तरह के सवाल दागे जाने लगे. इन सवालों से परेशान होकर साबह ने अचानत पैंतरा बदला. AUDI कहीं छोड़ दी और रिक्शे पर सवार होकर मुख्यालय पहुंच गये. अब AUDI से गिर कर रिक्शे पर आने की चर्चा होने लगी. इसमें किसी ने “डर” शब्द जोड़ दिया. इससे साहब को लगा कि रिक्शा भी ठीक नहीं होगा. इसके बाद वह साइकिल से मुख्यालय आने लगे. AUDI से हुई बदनामी को मिटाने के लिए साइकिल का सहारा लिया. पत्रकारों से बात की. उन्हें तरजीह दी. पूछा कि किसी साहब का साइकिल से मुख्यालय आना खबर नहीं है क्या. लेकिन पत्रकारों ने खबर नहीं बनयी. पत्रकार का सवाल और खबरे AUDI के इर्द-गिर्द ही घूमती रही.

 

कम दिनों में ही साहब के कई किस्सों में फेमस हैं. वह जब टरेनिंग में ही थे तब उनके एक खासमखास ने स्कारपियो दिया था. खासमखास के नाम से रजिस्टर्ड स्कारपियो पर सरकारी साहब हजारों बाग वाले शहर में खूब तहलका मचाये थे. पत्थर पर खूब लाठी घुमाया था. लोग आज भी उन्हें याद करते हैं. कुछ आह भरते हैं. वो खासमखास उनके घरेलू फंक्शन में भी मौजूद रहता था. सोशल मीडिया पर फोटो भी डालता था. हजारों बाग वाले शहर से साहब टरेनिंग में ही लाल मिट्टी वाले जिला में पहुंचे तो वहां भी वो खासमखास पहुंच गया और साहब की कृपा बरसने लगी. खैर वो साहब हैं. जहां रहें हजारों बाग वाले जिला में, लाल मिट्टी वाले जिला में, शिक्षा वाले विभाग में या काले पत्थर के कैपिटल में, अपनी छाप छोड़ने से बाज थोड़े ही आएंगे. साहब जो ठहरे.

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