Chhaya
Ranchi : कोरोना लॉकडाउन अर्थव्यवस्था पर काफी भारी पड़ रहा है. हर सेक्टर में इसका असर देखा जा रहा है. मध्यम और छोटे उद्योग भी इससे अछूते नहीं हैं. पिछले साल के लॉकडाउन की मार से ये उद्योग उबर ही रहे थे, कि कोरोना की दूसरी लहर ने स्थिति और विकट बना दी है. फेडरेशन ऑफ झारखंड चेंबर ऑफ कॉर्मस (एफजेसीसीआई) और झारखंड स्मॉल स्केल इंडस्ट्रीज एसोसिएशन (जेसिया) की मानें तो राज्य के उद्योगों में महज 15 से 20 प्रतिशत उत्पादन हो रहा है. लेकिन बाजार में इनकी मांग बाजार नहीं है. क्योंकि मई तक आवश्यक वस्तुओं को छोड़ बाजार खुले नहीं. वहीं दो बजे के बाद बाजार बंद रहते हैं. लोगों के पास पूंजी का अभाव है. गौरतलब है कि चेंबर से लगभग चार हजार उद्योग जुड़े हैं. वहीं जेसिया में लगभग 10 हजार छोटे उद्योग रजिस्टर्ड हैं. जेसिया की मानें, तो छोटे उद्योगों की संख्या इससे भी अधिक है. क्योंकि बहुत से उद्योगों का रजिस्ट्रेशन नहीं होता.
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तुपुदाना में अप्रैल से बंद होने लगी औद्योगिक इकाइयां
तुपुदाना औद्योगिक क्षेत्र में अप्रैल से ही उत्पादन बंद हो गया. इस क्षेत्र में लगभग 95 उद्योग अब सिर्फ नाममात्र के लिए चल रहे हैं. आदित्यपुर इंडस्ट्रियल एरिया में स्थित लगभग दो हजार उद्योगों में उत्पादन अप्रैल से मई तक बंद रहा. रामगढ़ में स्पंज आयरन के 42 कारखाने बंद रहे. ऑक्सीजन की किल्लत के कारण सरकार ने उद्योगों को इंडस्ट्रीयल ऑक्सीजन भी उपलब्ध नहीं कराया. इन इंडस्ट्रीज के लिये इंडस्ट्रीयल ऑक्सीजन जरूरी है, जो वेल्डिंग, कटिंग आदि के काम आता है. बता दें कि अब आदित्यपुर में कुछ उद्योग शुरू हुए हैं. वहीं प्लास्टिक समेत अन्य उद्योग राज्य में खुले रहे, लेकिन यहां उत्पादन नाममात्र का रहा.
बाजार नहीं खुलना और कीमतें बढ़ना प्रमुख कारण
तुपुदाना स्थित महावीर रिफ्रैक्टरीज के संचालक सुरेंद्र सिंह ने बताया कि मार्च से ही उद्योगों पर इसका असर देखा गया. राज्य में अधिकांश मध्यम उद्योग लौह अयस्क आधारित हैं. लोहा बनाने के लिए उच्च ताप वाले आयातित कोयले की जरूरत होती है. ऑस्ट्रेलिया और दक्षिण अफ्रीका से आनेवाला यह कोयला पारादीप या विशाखापत्तनम पोर्ट पर उतरता है. फरवरी से ही आयातित कोयला मिलने में दिक्कत आने लगी. इससे कच्चे माल की कीमत बढ़ने लगी. फिर सरकार ने भी बाजार पर पाबंदी लगा दी. ऐसे में उद्योगों के पास कोई विकल्प नहीं बचा. उन्होंने बताया कि राज्य में सूरत, अहमदाबाद, कोलकाता, चेन्नई, तमिलनाडु समेत अन्य इलाकों से कच्चा माल आता है.
पिछले साल बंद हुई 625 स्मॉल स्केल यूनिट
उद्योग विभाग की मानें, तो पिछले एक साल में राज्य की लगभग 625 स्मॉल स्केल यूनिट बंद हो गयीं. हालांकि विभाग की ओर से इन उद्योगों को फिर से शुरू करने की तैयारी की जा रही है.
उद्योगों की कमर टूटी, अब सरकार से उम्मीद
पूर्व चेंबर अध्यक्ष दीपक कुमार मारू ने कहा कि उद्योगों की कमर टूट चुकी है. पिछले साल कुछ जमापूंजी थी. इस बार वह भी नहीं है. ऐसे में सरकार को उद्योगों के लिये अब पहल करनी चाहिए. पिछले साल तीन महीने की बिजली माफ की गयी थी. इस बार यूनिट खुली रही, लेकिन उत्पादन नहीं हुआ. ऐसे में सरकार को बिजली का बिल देना है. सरकार को चाहिए इस बारे में सोचे. विभागों में ऐसी स्कीम लाये, जिससे एसएसएमई इकाइयों की सहभागिता बढ़े. यह राज्य की अर्थव्यवस्था के लिये जरूरी है.
सरकार सहयोग करे वरना और उद्योग बंद होंगे
वहीं जेसिया अध्यक्ष फिलिप मैथ्यू ने कहा कि सरकार ने लॉकडाउन में ओद्यौगिक इकाइयों को बंद करने का आदेश नहीं दिया. इकाइयां चालू रहीं, लेकिन मजदूर नहीं मिले. बिजली बिल देना ही है और बाजार में उत्पादित वस्तुओं की मांग नहीं है. ऐसे में बहुत संकट की स्थिति है. सरकार सहयोग नहीं करती है, तो संभावना है कि इस साल भी कुछ उद्योग बंद होंगे.
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