Nishikant Thakur
भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 75 वर्ष के हो गए. कहा जाता है कि उम्र जैसे-जैसे बढ़ती है, इंसान उतना ही परिपक्व होता है. अतः हम ईश्वर से यही प्रार्थना करते हैं कि हमारे प्रधानमंत्री दीर्घायु हों, क्योंकि वह व्यक्ति विशेष के नहीं, दल के ही नहीं, हमारे 140 करोड़ से भी अधिक भारतीय के संरक्षक हैं, हमारे देश के गौरव हैं.
ऐसा इसलिए भी कि जैसे-जैसे व्यक्ति का कद बड़ा होता जाता है, वह समाज की नजरों में चुभने लगता है; क्योंकि वह समाज से, आम जनता से कटता जाता है. लेकिन, हमारे प्रधानमंत्री एक सामान्य परिवार में जन्म लेने के बावजूद आज विश्व के सबसे बड़े लोकतांत्रिक देश के सर्वश्रेष्ठ नेताओं में एक हैं. यह बहुत बड़ी बात होती है, ऐसा इसलिए भी हुआ है, क्योंकि हमारे संविधान निर्माता उद्भट विद्वान और दूरदृष्टा थे. यह उनकी दूरदृष्टि ही थी कि उन्होंने यह सोचा कि यदि समाज के हर व्यक्ति को सामान्य अधिकारों से वंचित रखा गया तो लोकतंत्र और औपनिवेशक शासन में कोई फर्क कहां रह जाएगा?
यह लोकतंत्र है और समाज के सभी वर्ग को बोलने और लिखने—पढ़ने की स्वतंत्रता है, लेकिन आपमें से ही कोई व्यक्ति बड़ा हो जाए, तो ईर्ष्यावश उसके कई आलोचक हो जाते हैं. लेकिन, निश्चित मानिए उस व्यक्ति में कुछ न कुछ मेधा है, वह किसी न किसी रूप में अपने पीछे चलने को मजबूर कर देता है, जिसके कारण हम उसके आलोचक हो जाते हैं.
यह हमारी विशेषता है कि हम उसके द्वारा किए गए कार्यों पर नज़र रखते है और यदि वह पथ—विमुख हो जाता है तो फिर हम उसे सही रास्ते पर आने के लिए बाध्य करते हैं. यह प्रायः विश्व के सभी देशों में होता है और जो सत्ता की सबसे ऊंची कुर्सी पर बैठा होता है, वह एक तरह से तलवार की धार पर ही बैठा रहता है.
अब आइए, अपने भारत की चर्चा करते हैं. भारत के समक्ष अब विषम परिस्थिति उत्पन्न हो गई है. पहला तो यह हुआ कि जिस प्रकार हम वर्ष 1962 से पहले 'हिंदी-चीनी भाई-भाई' का नारा देते नहीं अघाते थे, ठीक उसी तरह की मित्रता का हनन अमेरिका ने किया है. दूसरी बात जो अभी घर-घर में चर्चा का विषय बनी हुई है, वह यह कि चुनाव में हुई 'कथित धांधली', जिसके लिए विपक्षी दलों का कहना है कि उनके लिए किए मतदान को चुरा लिया गया है और यह कृत्य भारतीय जनता पार्टी के लिए चुनाव आयोग ने किया है. अब सच तो तभी सामने आएगा, जब एक निष्पक्ष एजेंसी द्वारा इस आरोप की जांच कराई जाए.
विपक्ष का बड़ा आरोप यह भी है कि चुनाव आयोग ने अपनी जानकारी में वोट चोरी करवाई है, जिसका उत्तर चुनाव आयोग को अवश्य देना चाहिए. ऐसा कभी नहीं सकता कि हम चुनाव आयोग पर आरोप—दर—आरोप लगाते जाएं और वह न केवल चुप रहे, बल्कि इस बात को लेकर सत्तारूढ़ दल में खलबली मच जाए और वह चुनाव आयोग की वकालत करने लग जाए. आजकल ऐसा ही हो रहा है, लेकिन बड़ा सवाल यह है कि आखिर क्यों? भारत में चुनाव आयोग पर विपक्षी दलों के सबसे बड़े नेता सप्रमाण आरोप लगा रहे हों, तो न्याय तो यही कहता है कि सत्य और असत्य का फैसला तो निष्पक्ष जांच एजेंसियों की जांच के बाद ही सामने आ सकता है.
यदि समाज को उलझाने के उद्देश्य से ऐसा किया गया है या फिर झूठ और छल का सहारा लेकर नेता प्रतिपक्ष की ओर से असत्य कागजात सार्वजनिक रूप से दिखाए गए हैं, तो निश्चित रूप में चुनाव आयोग को न्याय का सहारा लेना ही चाहिए. अभी वोट चोरी पर तो राहुल गांधी और तेजस्वी यादव की बिहार यात्रा के बाद माहौल एकदम गर्म है. यह गर्मी उस वक्त परवान चढ़ेगी जब पूरे देश में विशेष सघन पुनरीक्षण (एसआईआर) कराई जाएगी. वैसे सरकार में बैठे उच्च पदस्थ राजनेता और अधिकारी तथा चुनाव आयोग हर प्रकार से इसकी काट निकलने के लिए कटिबद्ध होंगे, लेकिन असली मुद्दा और तथ्य तो जनता के समक्ष आने ही चाहिए.
अब जो एक दूसरा गंभीर संकट देश पर आ गया है, उस पर भी सरकार को तत्काल कूटनीतिक कदम उठाने की जरूरत है. अमेरिका-भारत के बीच टैरिफ को लेकर उठापटक के बीच राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने नए नियमों को मंजूरी दे दी है. अब नौकरी करने के लिए अमेरिका जाना भारतीयों के लिए खासा कठिन हो गया है, क्योंकि अब एच-1बी वीजा के लिए एक लाख डॉलर यानी लगभग 88 लाख रुपये देने होंगे.
उस पर भी अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने फरमान जारी कर दिया है कि एच-1बी वीजाधारकों को 24 घंटों के अंदर अंदर वापस स्वदेश भी लौट जाना है. इस अमेरिकी तानाशाही के कारण लाखों भारतीयों को वापस भारत लौटना पड़ेगा. ऐसी स्थिति में भारत क्या करे? यह तो बिल्कुल भारत-चीन वाली स्थिति हो गई जिसके कारण हम 1962 में चीन से जंग हार चुके हैं. अब बारी अमरीका की है कि भारत इस टैरिफ और एच-1बी वीजा के संकट से कैसे उबरे. क्या हमारी दोस्ती केवल दिखावा थी अथवा हम अमेरिकी चाल को समझ नहीं सके! हमारे विदेश मंत्री खुद को विदेशी मामलों के विशेषज्ञ मानते रहे हैं या फिर कहिए ऐसा डंका पीटते रहे हैं, उसके बावजूद अमेरिका की ऐसी धूर्तता को नहीं समझ पाना, कुछ हजम नहीं होता? जो भी हो, यदि अमेरिका ने अपनी इन दोनों नीतियों को वापस नहीं लिया, तो फिर अमेरिका से एच-1बी वीजा धारकों को बैरंग स्वदेश वापस लौटना पड़ेगा.
जब से टैरिफ बढ़ने की बात शुरू हुई है, अपने देश की कई कंपनियां भी बंद होने के कगार पर हैं. अब यदि दूसरा नियम एच-1बी वीजा भी लागू हो गया, तो यह बात कल्पना से बाहर हो जाएगी कि भारत में बेरोजगारी की दर क्या और कितनी हो जाएगी और रोजगार के कितने केंद्रों के दरवाजे बंद हो जाएंगे. हमें किसी न किसी तरह अमेरिकी नियमों का सामना कूटनीतिक काट से ही करना हैं, अन्यथा इस तरह के उद्योग भारत को स्वयं विकसित करने होंगे, ताकि ऐसे अनुभवी लोगों को देश में ही रहकर इसके विकास में योगदान देने का अवसर मिले.
देशवासी और कम से कम भारतीय सामान्य जनता तो यही समझती है कि सरकार की विदेश नीति की विफलता की वजह से इन संकटों का सामना पूरे देश को करना पड़ रहा है. देश में चाहे कुछ भी हो जाए, सामान्य जनता की नजर में यदि अच्छाई का कोई हकदार होता है, तो निश्चित रूप से इन संकटों से बाहर निकालने का काम भी उसी के जिम्मे होता है. देश के किसी भी प्रकार की सफलता का श्रेय यदि प्रधानमंत्री को ही हम देते हैं, तो जो हमारी विदेश नीति की विफलता के कारण हो रहा है, इसका दोष भी उन्हीं के मत्थे मढ़ा जाएगा.
आप किसी भी तरह से अपने को देश की इस संकट से अलग नहीं कर सकते. यदि विश्व में किसी देश के साथ हमारे संबंध अच्छे हुए हैं, तो इसका भी श्रेय उन्हीं को जाता है, जो सत्ता के शिखर पर बैठे हैं. इस ऐतिहासिक बातों को भूल जाने की जरूरत है जिनके कारण हमारे अड़ोस पड़ोस के विभिन्न देशों के साथ—साथ अमेरिका से संबंध बिगड़ा है. इन आसन्न समस्याओं का समाधान तो सरकार को ही निकालना होगा. इसलिए समय की मांग है कि फिलहाल किसी न किसी तरह अमेरिकी नीतियों को भारत में लागू होने से पहले रोका जाए, अन्यथा वह दिन दूर नहीं जब बेरोजगारी से भरे भारत में और लाखों बेरोजगार भर जाएंगे. जरा कल्पना करें कि तब कैसी स्थिति होगी जब सरकार की विफलता के भयावह परिदृश्य सामने आने लगेंगे.
डिस्क्लेमर: लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं और ये इनके निजी विचार हैं.
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