- स्कूल ड्रेस और किताब-कॉपी की खरीदारी को लेकर अभिभावक हो रहे हैं परेशान
- नोटिस आते ही बढ़ जाती है अभिभावकों की फीस भर- ड्रेस खरीदने की टेंशन
- प्राइवेट स्कूल में पढ़ाना मध्यमवर्गीय परिवार के लिए अब आसान नहीं
Ranchi : राज्य में प्राइवेट स्कूलों में एडमिशन की प्रक्रिया शुरू हो चुकी है. एडमिशन के लिए अभिभावकों की दौड़ शुरू हो चुकी है. अभिभावक एडमिशन फॉर्म लेकर बच्चों के साथ स्कूल पहुंचने लगे हैं. यहां आने पर तो वे काफी प्रसन्न रहते हैं, लेकिन जब फीस बतायी जाती है तो माथे पर बल पड़ जाते हैं. एक तरफ अभिभावकों के सामने अच्छे स्कूल में बच्चों के एडमिशन की चाहत होती है, लेकिन फीस उनके इरादों पर पानी फेर देती है. फीस को लेकर अभिभावकों का संघर्ष यहीं पर खत्म नहीं होता है, बल्कि यह सालोंभर चलता रहता है. एनुअल चार्ज के नाम पर जब बढ़ी फीस के बारे में बताया जाता है, तब परेशानी और बढ़ जाती है. शुभम संदेश की टीम ने प्राइवेट स्कूलों की बढ़े फीस पर अभिभावकों से बातचीत कर उनकी बातें सामने लायी…
फीस, यूनिफॉर्म और किताबों में दी जानी चाहिए रियायत
कोर्रा निवासी अंजू आर्या के बच्चे प्राइवेट स्कूल में पढ़ते हैं. वे भी बढ़ते फीस से परेशान हैं. उनका कहना है कि हर परिवार बच्चों की अच्छी शिक्षा चाहता है. इसके लिए स्कूल में एजमिशन करवाता है. लेकिन कुछ समय बाद फीस बढ़ने लगता है. इसके अलावा यूनिफॉर्म और किताबों में काफी पैसे लगते हैं. हम जैसे मध्यमवर्गीय परिवार के लिए इसे भरना काफी मुश्किल होता है. लेकिन स्कूल प्रबंधन को इससे कोई मतबल नहीं होता है. नोटिस जारी करने के बाद वे फीस लेने में लग जाते हैं. इसलिए बच्चों की फीस, यूनिफॉर्म और किताबों में रियायत होनी चाहिए. सबकुछ लिमिट में होगा तभी हम खर्च वहन करते हुए बच्चे को पढ़ा पाएंगे. इतने अधिक पैसे प्राइवेट स्कूल वाले ले लेते हैं कि घर चलाना मुश्किल हो जाता है. घर में चार-चार बच्चे हैं. भारी-भरकम फीस की वजह से प्राइवेट स्कूलों में पढ़ाना समस्या बन गई है. स्कूल फीस पर सरकार का नियंत्रण होना चाहिए. ऐसा होगा तो किसी को कोई परेशानी नहीं होगी. बच्चे भी अच्छे से पढ़ सकेंगे. उनका भविष्य भी बनेगा.
शिक्षा के अधिकार का हनन कर रहे हैं प्राइवेट स्कूल प्रबंधन
प्राइवेट स्कूलों में बढ़ती फीस पर आवाज उठा चुके सामाजिक कार्यकर्ता गौतम कुमार इस सिस्टम से परेशान हैं. वे कहते हैं कि शिक्षा का अधिकार (आरटीई) का हनन हो रहा है. आरटीई के अनुसार सभी बच्चों को समान शिक्षा दी जानी है. लेकिन भारी-भरकम फीस के अभाव में कई बच्चे ब्रांडेड स्कूलों का मुंह तक नहीं देख पाते हैं. ऐसे में उन बच्चों के बारे में भी सरकार को सोचने की जरूरत है. फीस की सीमा निर्धारित होनी चाहिए. लेकिन इससे पहले अभिभावकों को आगे आना होगा. जब वे एकजुट रहेंगे तभी अपनी समस्या उठा सकेंगे और उसके समाधान के लिए दवाब बना सकेंगे. इसे लेकर अभिभावक समस्या की बात तो करते हैं, लेकिन आवाज बुलंद करने की बात होती है तो अधिक लोग सामने नहीं आ पाते हैं. आखिर यह उनकी सालोंभर की समस्या है. इसके लिए उन्हें आगे आना ही होगा. तभी उनकी बात सुनी जाएगी. फीस मामले पर स्कूल प्रबंधन विचार करेगा. आखिर अभिभावकों के भरोसे ही तो स्कूल चलते हैं. अगर वे पीछे हट जाएंगे तो स्कूल क्या करेंगे? इसलिए इसमें दोनों पक्षों को विचार करना चाहिए.
नामांकन फीस तो एक बार ही ली जाती है, वह भी कम है
शहर के प्रतिष्ठित स्कूलों में शुमार जैक एंड जिल स्कूल के सचिव मिथिलेश कुमार इस मामले में कुछ अलग राय रखते हैं. उनका कहना है कि उनके स्कूल में कभी अभिभावकों पर फीस का ज्यादा बोझ नहीं डाला जाता है. स्कूल से बच्चों को सिर्फ टाय, बेल्ट और डायरी दी जाती है. यह जरूरी है. इसके बाद अभिभावक कहीं से भी स्कूल यूनिफॉर्म और पुस्तकें खरीद सकते हैं. इसके लिए वे स्वतंत्र हैं. यह भी बता दें कि बच्चों की नामांकन फीस एक बार ही ली जाती है. वह भी बहुत कम है. हर साल 10% बढ़ोतरी की जाती है. यह जरूरी भी है. लेकिन वह भी अभिभावकों से विचार-विमर्श के बाद ही आपसी सहमति से निर्णय से किया जाता है. आखिर हमें टीचर की सैलरी हर साल बढ़ानी पड़ती है. इस पर किसी का ध्यान नहीं जाता है. सभी सिर्फ स्कूल की बढ़ी फीस का रोना रोते हैं. इसके बाद भी हम कहते हैं कि हमारी कोशिश होती है कि यहां आनेवाले अभिभावक खुश रहें. वे चिंतामुक्त होकर बच्चों को पढ़ा सकें. इसलिए अभिभावक अपने बच्चों का इस स्कूल में खुशी से नामांकन कराते हैं. उन्हें यहां से कोई शिकायत नहीं रहती है.
जिनके दो-तीन बच्चे हैं, वैसे पेरेंट्स को दिक्कत होती है
रांची की अरगोड़ा की रहने वाली ज्योति पांडे के सामने फीस को लेकर समस्या है. जब से नया सत्र शुरू होने की बात आयी है तब से उनकी चिंता बढ़ गयी है. उनके बच्चे संत मरियम स्कूल में पढ़ते हैं. फीस बढ़ोतरी पर पूछे जाने पर उन्होंने कहा कि मेरा एक बच्चा है. मुझे फीस बढ़ोतरी से इतनी दिक्कत नहीं हो रही है. लेकिन जिनके दो-तीन बच्चे हैं वैसे पेरेंट्स को काफी दिक्कत होती होगी. स्कूलों की फीस के लिए सरकार को कुछ करना चाहिए, ताकि स्कूल मनमाने तरीके से फीस ना बढ़ा सकें. अगर फीस बढ़ोतरी पर सरकार कुछ कदम उठती है, तो पेरेंट्स के लिए काफी अच्छा रहेगा. आज जो हालत है किसी से छिपी नहीं है. सभी स्कूलों का यही हाल है. सभी स्कूल नये सत्र में फीस बढ़ाने की तैयारी में हैं. अभिभावकों के पास कोई और विकल्भ नहीं है. वे किसी तरह कर्ज लेकर भी भरेंगे. इस पर प्रशासन को ध्यान देना चाहिए.
एनुअल चार्ज जोड़ दें तो रकम काफी अधिक हो जाती है
रांची के बिरसा चौक की रहने वाली शालू प्रिया के दो बच्चे हैं. दोनों सरस्वती शिशु विद्या मंदिर में पढ़ाई करते हैं. फीस बढ़ोतरी पर पूछे जाने पर उन्होंने कहा कि स्कूल हर साल मनमाने तरीके से फीस बढ़ा देता है. जो कि काफी गलत है. अप्रैल महीने की फीस बुक देखो तो बिल्डिंग चार्ज और एनुअल चार्ज सब लेकर रकम काफी बड़ी हो जाती है. जो मध्यमवर्गीय परिवार को एक साथ देना मुश्किल है. अगर स्कूल अभिभावकों के आर्थिक हालात पर ध्यान रखते हुए फीस को बढ़ाए तो परेशानी कम होगी. वहीं सरकार प्राइवेट स्कूल की फीस बढ़ोतरी पर कोई कानून लेकर आ जाए तो मध्यमवर्गीय परिवारों के लिए बहुत मददगार होगा. नहीं तो जो हालत है उसमें अभिभिवाकों को फीस तो देनी ही है. उन्हें किसी तरह तो पढ़ाना ही है. इसका असर उनके घर के बजट पर पड़ता है. इसे देखनेवाला कोई नहीं है. अभिभावाक भी विरोध ते करते हैं. लेकिन वे संगठित नहीं हैं. इससे उनकी आवाज दब कर रह जाती है. सरकार को इस पर गंभीरतापूर्वक ध्यान देना चाहिए
सरकार को इस पर विचार कर कानून लाना चाहिए
रांची के सिंह मोड की रहने वाली रागिनी सिंह के बच्चे धुर्वा स्कुल में पढ़ाई करते हैं. वे भी फीस बढ़ोतरी से परेशान हैं. पूछे जाने पर उन्होंने कहा कि स्कूल जिस हिसाब से फीस बढाता है उस हिसाब से सुविधा नहीं बढ़ाया जाता है. स्कूल हर साल अप्रैल में मनमाने तरीके से फीस बढ़ा देती है. अब ऐसे में हम अभीवाकों को इससे काफी दिक्कत उठानी पड़ती है. हम कई सालों से सुन रहे हैं कि सरकार प्राइवेट स्कूलों की फीस बढ़ाने पर कोई कानून लेकर आने वाली है, लेकिन अब तक ऐसा नहीं हो पाया है. अगर ऐसा होता है तो अच्छी बात होगी. इससे सभी को फायदा होगा. खासकर मध्यमवर्ग इससे काफी परेशान है. उसके कई तरह के खर्चे होते हैं. फिर उसमें स्कूल की फीस होती है. वह भी बढ़ी हुई होती है. नहीं देने पर स्कूल से निकालने का नोटिस आ जाता है. इससे बचने के लिए अभिभावक कहीं से भी उधार लेकर फीस भर देते हैं. उसके बाद वे कर्ज में डूबे रहते हैं.
फीस बढ़ने से मुझे कोई दिक्कत नहीं है, पढ़ाना है तो देना है
रांची की रहने वाली रुपम कुमारी की फीस को लेकर अलग राय है. वे इसे लेकर परेशान नहीं हैं. हालांकि ऐसे अभिभावकों की संख्या काफी कम है. उन्होंने बताया कि हमें फीस बढने से कोई दिक्कत नहीं है. हमे अपने बच्चों की अच्छी पढ़ाई चाहिए. अगर फीस बढ़ाया नहीं जाएगा तो शिक्षकों को अच्छा वेतन कैसे मिलेगा. अच्छा वेतन नहीं मिलेगा तो वो तनाव में रहेंगे. इसका असर उन पर पड़ेगा. तब वे बच्चों को अच्छे से पढ़ा नहीं पाएंगे. इसलिए बढ़ती महंगाई के साथ स्कूल फीस का बढ़ना भी जरुरी है. फीस से ज्यादा जरुरी अच्छी पढ़ाई है. अब बच्चे के करियर के लिए इतना करना पड़ेगा. नहीं तो यहां स्कूलों की कमी नहीं है. लोग अपनी स्थिति के अनुसार स्कूल में कहीं भी डाल सकते हैं. वैसे यह गंभीर विषय है. इसके लिए एक नियम बनाया जाना चाहिए. जब नियम बनेंगे तो किसी को भी परेशानी नहीं होगी. सभी इसके तहत काम करेंगे. सभी का काम होगा.
अपनी मर्जी से फीस बढ़ा देते हैं, यह बहुत गलत है
रांची के हरमू के रहने वाली पिंकी पंडित के बच्चे डीएवी कपिल देव में पढ़ाई करता है. फीस बढ़ोतरी पर पूछे जाने पर उन्होंने कहा कि स्कूल हर साल अपनी मर्जी से फीस बढ़ा देता है. यह बहुत गलत है. करोना काल में इसे समझा जा सकता है. लेकिन उसके बाद हालात बदले हैं. ऐसे में इस पर स्कूल प्रबंधन को ध्यान देना चाहिए. लेकिन ऐसा नहीं हो रहा है. अधिकतर स्कूलों ने उस दौरान फीस बढ़ा दिया. उसके बाद वही फीस रह गया. इससे अभिभावकों को परेशानी उठानी पड़ती है. उस पर अब स्कूल फीस बढ़ाते जाएगी तो हमलोगों को काफी परेशानी होगी. स्कूलों को ध्यान देना चाहिए. फीस बढ़ाने से पहले अभिभावकों से बात करनी चाहिए. सरकार अगर प्राइवेट स्कूल की फीस बढ़ोतरी पर कोई कानून लेकर आती है तो मिडिल क्लास फैमिली जिनके बच्चे अभी स्कूल में पढ़ते हैं उनके लिए बहुत लाभदायक होगा. इस पर विचार करना चाहिए.
फीस बढ़ाते हैं तो सुविधाएं भी बढ़ानी चाहिए
रांची की अरगोड़ा की रहने वाली शौर्या द्विवेदी के बच्चे डीपीएस स्कूल में पढ़ते हैं. फीस बढ़ोतरी पर पूछे जाने पर उन्होंने कहा कि अगर स्कूल फीस पढ़ाते हैं तो उसके हिसाब से स्कूलों में उतनी सुविधाएं बच्चों को दी जानी चाहिए. जो फीस बढ़ाए जा रहे हैं उन पैसों का इस्तेमाल शिक्षकों की ट्रेनिंग और स्कूल के इंफ्रास्ट्रक्चर पर खर्च करना चाहिए. ऐसा होने पर सभी बच्चों को फायदा होगा. लेकिन इसके बाद भी स्कूल प्रबंधन को फीस मामले पर ध्यान देना चाहिए. इसे खारिज नहीं किया जा सकता है. एक तरफ महंगाई है तो दूसरी ओर स्कूल की बढ़ी फीस. यह सोचने वाली बात है. लेकिन इस पर किसी का ध्यान नहीं है. जिन शिक्षा अधिकारियों यह देखना चाहिए वे इस पर ध्यान नहीं देते हैं. अगर अभिभावक इसकी शिकायत करते हैं तो इस पर कार्रवाई भी नहीं होती है. ऐसे में अभिभावक चुप रह जाते हैं. वे फीस भरकर आगे बढ़ जाते हैं. यही तो स्थिति है. इसे देखनेवाला कोई नहीं है. जिसे देखना है, वे कार्यालय से बाहर नहीं निकलते हैं. मौन रहते हैं.
स्कूल फीस बढ़ने से अभिभावकों होती है काफी परेशानी
रांची के रहन वाले अनिमेश फीस बढ़ने से परेशान हैं. उनके बच्चे प्राइवेट स्कूल में पढ़ते हैं. जब उन्होंने एडमिशन कराया था तो लगा था फीस में अधिक बढ़ोतरी नहीं होगी. लेकिन ऐसा नहीं हुआ. कहा कि एक तो कोरोना ने हमें बर्बाद कर दिया. कोई इससे अछूता नहीं है. सभी ने सामना किया और इससे उबरे. अब स्कूलों का फीस है. कहा कि फीस मनमाने ढ़ंग से बढ़ाया जा रहा है. यह ठीक नहीं है. इससे हम जैसे अभिभावकों को परेशानी होती है. जबकि स्कूल फीस के साथ हमारी सैलेरी नहीं बढ़ती है. इसी में हमें सारा कुछ मैनेज करना पड़ता है. इससे हमें काफी दिक्कत होती है. अभी फिर से फीस बढ़ाने का मैसेज आया है. हमलोग मिडिल क्लास फैमिली से हैं. एक मिडिल क्लास फैमिली को बचुत कुछ मैनेज करके चलना पड़ता है. इसका असर घर के बजट पर पड़ता है. लेकिन इसे देखनेवाला कोई नहीं है. जिस पर जिम्मेदारी है, वे चुप बैठे हैं. वे सक्रिय हों तो ठीक रहेगा.
हर साल फीस बढ़ा दी जाती है, यह कहीं से भी उचित नहीं है
फीस बढ़ोतरी मामले पर पूजा कहती हैं कि हर साल फीस वृद्धि, किताबें बदल देना, यह सही नहीं है. इससे अभिभावकों की परेशानी बढ़ जाती है. प्राइवेट स्कूलों की इस मनमानी को रोकने के लिए हम अभिभावकों को एकजुट होना होगा. जिस तरह स्कूल अपनी बात मनवाने के लिए अभिभावकों पर दबाव बनाते हैं, उसी तरह हमें भी स्कूलों पर दबाव बनाना होगा. प्राइवेट स्कूलों ने शिक्षा के क्षेत्र में एकाधिकार कायम कर रखा है. इसे खत्म करने के लिए अभिभावकों को ही आगे आना होगा. इसकी वजह यह है कि सरकार केवल आदेश जारी कर रह जाती है. प्राइवेट स्कूल उसका कितना अनुपालन करते हैं इसे लेकर सख्ती नहीं बरतती है. इसी का नतीजा है कि स्कूल अपनी मनमानी करते रहते हैं. यह स्थित कमोबेश सभी स्कूलों की है. जब नया सत्र आता है तो सभी फीस बढ़ा देते हैं. फीस बढ़ाने के बाद अभिभावकों के पास कोई विकल्प नहीं होता है. उन्हें देना पड़ता है.
हर साल फीस बढ़ाना सही नहीं, इससे परेशानी होती है
प्रसेनजीत कुमार कहते हैं कि हर बार फीस वृद्धि को अनुचित नहीं ठहराया जा सकता. क्योंकि समय बीतने के साथ महंगाई और खर्च भी बढ़ रहा है. लेकिन स्कूल जो हर साल अचानक फीस वृद्धि कर देते हैं वह सही नहीं है. स्कूलों को कम से कम पूर्व में ही यह घोषणा कर देनी चाहिए कि हर दो या तीन साल के अंतराल पर फीस वृद्धि होगी. वहीं किताबें बदली जायेंगी या फिर स्कूल ड्रेस चेंज किया जायेगा. इससे अभिभावक पहले से ही तैयार रहेंगे. सारी चीजों को वे अपने स्तर से मैनेज कर सकेंगे. लेकिन सच यह है कि स्कूल प्रबंधन को अभिभावकों की परेशानी से कोई मतलब नहीं होता है. वे जानते हैं कि जो भी नोटिस निकालेंगे उसे अभिभावक देखेंगे और पूरा करेंगे. यही स्थिति सभी स्कूलों की है. इस बढ़ती महंगाई में भी स्कूलों का फीस बढ़ना जारी है. एनुअल चार्ज के नाम पर फीस बढ़ा दिया जाता है. उसके बाद फिर नहीं घटता है. वही हमेशा के लिए रह जाता है. अभिभावक किसी तरह भरते रहते हैं.
अभिभावकों को एडमिशन के समय मोटी रकम चुकानी पड़ती है
सुरोजीत कहते हैं कि प्राइवेट स्कूलों में फीस वृद्धि एक हद तक तो समझ में आती है, क्योंकि साल-दर-साल कागज वगैरह के दाम बढ़ रहे हैं. अन्य खर्च भी बढ़ते हैं. लेकिन हर साल किताबें बदल देना, स्कूल ड्रेस बदल देना कहां तक सही है. यह तो अभिभावकों परेशान करना ही है. एक तो एडमिशन के समय अभिभावकों को मोटी रकम चुकानी पड़ती है. उसके बाद महंगी किताबें खरीदने में उनकी कमर टूट जाती है. इसके अलावा कई तरह के चार्ज देने होते हैं. सभी इस पर सवाल तो नहीं करते हैं. लेकिन जब कोई पूछता है तो संतोषजनक जवाब नहीं मिलता है. उनके पास पैसे देने के अलावा कोई उपाय नहीं होता है. वे इसमें अधिक उलझना नहीं चाहते हैं. इसलिए जो कुछ कहा जाता है वे पूरा कर देते हैं. यही तो स्थिति है. जबकि इस पर सरकार और जिला प्रशासन को ध्यान देना चाहिए. अगर ध्यान दिया जाएगा तो ऐसी समस्या नहीं होगी. अभिभावकों की परेशानी कम होगी. साथ ही बच्चे को पढ़ा सकेंगे.
हमारी सोच अलग है, हर साल स्कूल ड्रेस बदलने के पक्ष में नहीं
एपीजेए कलाम हाईस्कूल के प्रधानाचार्य मो ताहिर कहते हैं कि प्राइवेट स्कूलों की परेशानी को भी समझना होगा. फीस वृद्धि का कारण बढ़ती महंगाई और खर्च है. हमें शिक्षकों को भी सैलरी देनी पड़ती है. अगर पैसे नहीं देंगे तो अच्छे शिक्षक नहीं आएंगे. तब इसका असर पढ़ाई पर पड़ेगा. तब पढ़ाई पर सवाल उठेगा. दूसरी ओर स्टेशनरी के दाम बढ़ रहे हैं. इससे भी अभिभावकों के खर्चे बढ़ जाते हैं. लेकिन इस पर किसी का ध्यान नहीं है. सभी अपनी समस्या लेकर बैठे हैं. इसके अलावा हर साल किताबें या स्कूल ड्रेस बदले जाने का मैं पक्षधर नहीं हूं. स्पष्ट तौर पर कह सकता हूं कि कमीशन के लिए किताबों और स्कूल ड्रेस में बदलाव किया जाता है, जो हर साल नहीं किया जाना चाहिए. इसका असर अभिभावकों पर पड़ता है. इससे अभिभावक परेशान होते हैं. यहां अलग है. यहां बच्चों के एडमिशन के बाद निश्चिंत हो जाते हैं.
प्राइवेट स्कूल में बच्चों को पढ़ाना काफी मुश्किल
राजहार के अविनाश कुमार ने कहा कि आज प्राइवेट स्कूल में बच्चों को पढ़ाना काफी मुश्किल हो गया है. हमारी चाहत तो अच्छे प्राइवेट स्कूल में पढ़ाने की होती है, लेकिन फीस की जब आती है तो परेशानी शुरू हो जाती है. फीस अगर एक नियम के तहत बढ़ायी जाती है तो ठीक है. लेकिन ऐसा नहीं होता है. वे मनमाने तरीके से फीस बढ़ा देते हैं. इस पर कोई सुनवाई नहीं होती है. एक तो प्रत्येक वर्ष बच्चों के रि-एडमिशन के नाम पर वसूली की जाती है. दूसरी ओर प्रत्येक वर्ष बच्चों की किताबें बदल जाती हैं. ऐसे में उन अभिभावकों को अधिक परेशानी होती है, जिनके घरों में कई बच्चे हैं. आखिर सारा खर्च उन्हें ही वहन करना पड़ता है. अगर वे फीस नहीं भरते हैं तो स्कूल से बार-बार नोटिस आने लगता है. ऐसे में अभिभावक परेशानी से बचने के लिए सबसे पहले फीस ही भर देते हैं. उसके बाद ही कोई और काम करते हैं. नहीं तो सारे काम रोक देते हैं. यही वास्तविकता है. इसलिए ध्यान देने की जरूरत है.
स्कूल फीस में देरी होने पर बच्चों को नोटिस थमा दिया जाता है
थाना चौक के संजय कुमार ने कहा कि फीस बढ़ने के कारण घर का बजट गड़बड़ा गया है. घर के खर्च का बजट पहले से निर्धारित होता है. इसके लिए पहले से ही पैसे रखने पड़ते हैं. अब इसमें स्कूल फीस शामिल हो जाता है. तो ऐसे में समझा जा सकता है कि परिस्थिति कैसी है. स्कूल फीस देने जरा भी देरी होती है तो बच्चों को नोटिस थमा दिया जाता है. नोटिस लेकर जब बच्चा घर आता है तब अभिभावक को समझ आता है. इसलिए इस मामले को गंभीरता से लेते हुए प्रशासन को ध्यान देना चाहिए. शिक्षा अधिकारी को इस मामले में सरकार के आदेश के तहत देखना चाहिए. अगर कहीं गड़बड़ी होती है तो उस पर ध्यान देना चाहिए. लेकिन ऐसा नहीं होता है. इसलिए मिडिल क्लास के लोगों के बच्चों को पढ़ाने में काफी परेशानी हो रही है. यह कब खत्म होगी, कहा नहीं जा सकता है. सभी स्कूलों की यही हालत है. सभी स्कूल फीस बढ़ाने में लगे है. इसके लिए नये तरह के चार्ज लगा रहे हैं.
फीस वृद्धि से अभिभावकों को परेशानी हो जाती है
थाना चौक के आकाश कुमार स्कूल फीस से परेशान हैं. उन्होंने कहा कि एक तो महंगाई पहले से ही है. दूसरी ओर बच्चों की प्रत्येक वर्ष बढ़ जाती है. इस तरह से महंगाई में फीस में बढ़ोतरी से अभिभावकों के सामने मुश्किल खड़ी हो जाती है. उनके सामने कोई विकल्प नहीं होता है. वे जानते हैं हमें किसी भी हालत में फीस देनी ही है. इस लेकर अभिभावकों का संघ भी बनाया गया है. लेकिन इस मामले में वह सिवाय आवाज उठाने के कुछ नहीं कर पाता है. इसलिए स्कूल की मनमानी चलती रहती है. लेकिन इसके बाद भी अभिभावक फीस जमा करते हैं. उन्होंने कहा कि उनके घरों में कई स्कूली बच्चे हैं. उन्हें पढ़ाने में काफी परेशानी हो रही है. एक तो घर का खर्च है, उस पर बच्चों की पढ़ाई के खर्चे हैं. किताब और ड्रेस को लेकर फिर खर्चे बढ़ने वाले हैं. इसे लेकर आकाश परेशान हैं. अधिकतर अभिभावकों की यही परेशानी है. उनके पास फीस भरने के अलावा कोई विकल्प नहीं होता है. वे फीस भरते हैं.
आज शिक्षा व्यवसाय हो गया है, पहले ऐसी बात नहीं थी
रेलवे स्टेशन रोड के रामदेव प्रसाद स्कूल की फीस से परेशान हैं.उन्होंने बताया कि उनके घर में दो बच्चे हैं. इन्हें पढ़ाने में हमें काफी पैसे लगते हैं. उस पर से स्कूल द्वारा मनमाने ढंग से फीस बढ़ा दिया गया है. ऐसे में हमलोगो को समझ नहीं आता है कि फीस कहां से भरेंगे. कहा कि आज शिक्षा एक व्यवसाय हो गया है. पहले ऐसी बात नहीं थी. स्कूल प्रबंधन भी अभिभावकों की विवशता को समझती थी. फीस बढ़ाने से पहले सोचती थी. अब ऐसा नहीं है. आज हर अभिभावक इसे लेकर परेशान है. किसी को ड्रेस खरीदने की जल्दी है तो किसी को किताब खरीदने की पड़ी है. लेकिन खरीदनी तो पड़ती ही है. चाहकर भी अभिभावक इससे पीछे नहीं हट सकते हैं. इसके लिए उन्हें उधार भी लेना पड़ता है. लेकिन इसे समझनेवाला कोई नहीं है. न तो सरकार इसे लेकर गंभीर है और न ही प्रशासन इसे लेकर गंभीर है. जबकि इस पर ध्यान देना चाहिए.
अभिभावकों को रिएडमिशन फीस भी देनी होती है, जो अधिक होती है
स्नेहा कहती हैं कि समय के साथ-साथ एक हद तक फीस वृद्धि ठीक है, लेकिन हर साल फीस बढ़ाना सर्वदा अनुचित है. अभी भी अभिभावक कोरोना काल की मार से उबर नहीं सके हैं. यह पूरा देश जानता है. उस दौरान किसी की नौकरी गयी तो किसी कारोबार बंद हो गया. उसके बाद भी फीस भरना जारी रहा. इसके बाद भी हर साल फीस बढ़ना जारी है. इस साल पुनः फीस वृद्धि किये जाने की जानकारी मिली है. बढ़ी हुई फीस जमा करने के साथ ही अभिभावकों को रीएडमिशन फीस भी देनी है. उसके बाद नयी-नयी किताबें खरीदनी है, जो काफी महंगी होती हैं. लेकिन किसी का इस पर ध्यान नहीं है. जब बहुत हंगामा होता है तो शिक्षा अधिकारी सरकार तक बात पहुंचा देते हैं. इसके बाद वह बात वहीं दब जाती है. इसलिए इसे गंभीर मानते हुए सरकारी स्तर से इस पर अंकुश लगाया जाना जरूरी है. तभी फीस बढ़ोतरी से सभी को राहत मिलेगी. सभी के बच्चे पढ़ाई कर सकेंगे. इससे परेशानी नहीं होगी.
प्राइवेट स्कूलों की शिक्षा बहुत ही महंगी हो गई
सबनम परवीन कहती हैं कि प्राइवेट स्कूलों की मनमानी से काफी परेशान हैं. बच्चों के नामांकन के समय तो फीस ली ही जाती है. इसके बाद रिएडमिशन के समय भी ली जाती है. वह बहुत अधिक होती है. बच्चों को पढ़ाने में बच्चों का नामांकन फीस और स्कूल फीस सहित वार्षिक शुल्क के रूप में प्राइवेट स्कूल प्रबंधक मनमाने तरीके से अभिभावकों से पैसे की वसूली करते हैं. यह पैसा इतना ज्यादा होता है कि सब इसकी भरपाई नहीं कर सकते हैं. इतना ही नहीं नामांकन के बाद अभिभावकों को बच्चों को पढ़ाने के लिए बहुत से आवश्यकताओं को पूरा करना होता है. इसमें भी पैसे खर्च होते हैं. अब प्राइवेट स्कूलों में शिक्षा बहुत ही महंगी हो गई है. पहले वाली बात नहीं है. छोटे प्राइवेट स्कूल में भी फीस हजार से कम नहीं होती है.
प्राइवेट स्कूलों में मनमाने ढंग से पैसे लिये जाते हैं
कृष्णा पासवान कहते हैं कि पहले शिक्षा सस्ती होती थी. सभी को सुविधा होती थी. हम भी खुश थे, लेकिन आज काफी महंगी हो चुकी है. मध्यम वर्ग के लोग अपने बच्चों को प्राइवेट स्कूलों में पढ़ाने से घबराते हैं. उनकी घबराहट इस बात की होती है कि कैसे लंबे समय तक बच्चों को इतना ज्यादा पैसे खर्च कर पढ़ा सकेंगे. प्राइवेट स्कूलों में मनमाने ढंग से पैसे लिये जाते हैं. बच्चों की नामांकन फीस के अलावे कई तरह की फीस अटेच रहती है. ऊपर से बच्चों का किताब, कॉपी, ड्रेस और स्कूलों में होने वाले अलग-अलग तरह के इवेंट के लिए अलग-अलग ड्रेस की डिमांड होती रहती है. इससे अभिभावक परेशान रहते हैं. आखिर बच्चों को पढ़ाने के लिए इतना ज्यादा पैसा कहां से लाएंगे. प्राइवेट स्कूलों में कम फीस में बच्चों को शिक्षा मिलनी चाहिए. तभी मध्यम वर्ग के लोग भी अपने बच्चों को शिक्षा के लिए प्राइवेट स्कूलों में भर्ती करा पाएंगे. सरकार को चाहिए कि इस पर ध्यान देकर समाधान करे.
अभिभावकों का मनोबल गिर जाता है
मनोज यादव कहते है कि बहुत उमंग के साथ अभिभावक अपने बच्चों को पहली शिक्षा के लिए प्राइवेट स्कूलों का चयन करते हैं. फिस उनका दाखिला करवाते हैं. इसके बाद उसे तैयार कर स्कूल भेजते हैं. तब वे काफी प्रसन्न रहते हैं. यह इसलिए करते हैं ताकि उनके बच्चे का भविष्य संवर सके. लेकिन दाखिले के समय स्कूल प्रबंधक द्वारा मनमाने ढंग से पैसे लिये जाते हैं. इससे अभिभावकों का मनोबल गिर जाता है. स्कूल में कई तरह के फीस के अलावा अन्य कई चीजों के लिए पैसे लिये जाते हैं. ऊपर से बच्चों को पढ़ाने के में कॉपी, किताब, ड्रेस पर काफी खर्च होते हैं. हम जैसे दैनिक मजदूरी करने वाले लोगों के लिए पढ़ाना काफी मुश्किल है.
सरकार स्कूलों पर कड़ी कार्रवाई कर उदाहरण प्रस्तुत करे
झारखंड अभिभावक महासंघ के उपाध्यक्ष मुकेश इस मामले में एनसीईआरटी किताबों को बेहतर मानते हैं. इससे आर्थिक दबाव कम होने की बात कहते हैं. मुकेश का कहना है कि सभी निजी स्कूलों में सख्ती से एनसीईआरटी की किताबें लागू कर देनी चाहिए. इसकी कीमत काफी कम होती है. आज भी कई स्कूलों में यही पुस्तक चलती है. बच्चे पढ़ते हैं और आगे बढ़ते हैं. नहीं तो हर साल स्कूल में पुस्तक बदल दिया जाता है. फिर से नये पब्लिकेशन का किताब लेना पड़ता है. इसकी कीमत कई हजार तक होती है. जाहिर है इससे अभिभावकों का खर्च बढ़ जाता है. उन्हें पुस्तक खरीदना ही पड़ता है. वहीं फीस नियंत्रित करने के लिए जिला शुल्क समिति की प्रासंगिकता बढ़ानी चाहिए. निजी स्कूलों ने कोरोना काल की फीस लेकर सरकार को चुनौती दी है. सरकार भी स्कूलों पर कड़ी कार्रवाई करते हुए उदाहरण प्रस्तुत करना चाहिए.
सरकार को हर हाल में तत्काल हस्तक्षेप करने की जरूरत
स्कूल फीस में बढ़ोतरी काफी गंभीर मामला है. इस पर सरकार को ध्यान देना चाहिए. इसके लिए एक नियम बनाया जाना चाहिए. जब नियम बनेंगे तो सभी इसका पालन करते हुए काम करेंगे. इससे हालात सुधारने में मदद मिल सकती है. नहीं तो स्कूल फीस के नोटिस के साथ अभिभावकों की धड़कनें बढ़ जाती हैं. उनके पास फीस भरने के अलावा कोई रास्ता नहीं होता है. जो स्थिति है उसमें मनमाने ढंग से फीस बढ़ोतरी, स्कूल कैंपस या स्कूल द्वारा बताई गई दुकान से किताब-कॉपी और ड्रेस खरीदने की बाध्यता से अभिभावक परेशान हैं. यह गंभीर विषय है. यह सीधा सर्वोच्च न्यायालय और सरकार को खुली चुनौती है. इस मामले पर न्यायालय और सरकार को तत्काल हस्तक्षेप करना चाहिए. तभी इस पर स्कूल प्रबंधन ध्यान देंगे. इससे अभिभावकों को काफी राहत मिलेगी. उनके बच्चे पढ़ सकेंगे. इससे उनका भविष्य बेहतर होगा.
चिह्नित किताब की दुकानें वसूलती हैं मनमानी कीमतें
अभिभावक सुजीत कुमार का बेटा डीएवी कुसुंडा में पढ़ता है. काफी उम्मीद के साथ इसमें बच्चे का एडमिशन कराये थे. सबकुछ ठीक चल रहा था. इसी बीच कोरोना महामारी आ गयी. उसमें उनकी आर्थिक स्थिति चरमराई गई. ऐसे में बच्चे को स्कूल में पढ़ाना मुश्किल हो गया है. इसके बाद भी वे किसी तरह बच्चे को पढ़ाते रहे. इसी बीच अप्रैल में नए सत्र से फीस बढ़ोतरी, एडमिशन चार्ज, कॉपी-किताब और ड्रेस की मार पड़ने वाली है. इससे सुजीत परेशान हैं. उनका कहना है कि किताब की लिस्ट मिलेगी. उसे खरीदना होगा. जबकि प्राइवेट पब्लिकेशन की किताबें बहुत महंगी होती हैं. इसे खरीदना काफी महंगा पड़ता है. लेकिन खरीदना ही पड़ेगा. वहीं स्कूल की बुकलिस्ट की किताबें चिह्नित दुकानों पर ही मिलती हैं. जिस पर मनमाना मूल्य वसूला जाता है. इस बारे में कोई बात नहीं होती है. न तो स्कूल प्रबंधन बात करता है और न ही सरकार कोई दिशा-निर्देश जारी करती है. इसलिए इस पर संज्ञान लेने की जरूरत है. तभी समाधान होगा.
मामले पर जिला शिक्षा विभाग बना रहता है मूकदर्शक
हीरापुर निवासी इंद्राणी चटर्जी फीस के बढ़ने से परेशान हैं. जब उन्होंंने प्राइवेट स्कूल में बच्चे का एडमिशन करवाया था तब काफी प्रसन्न थीं. अब फीस की चिंता सता रही है. उनका कहना है कि एडमिशन शुल्क पर रोक लगे होने के बावजूद प्रत्येक वर्ष सभी स्कूलों में फीस बढ़ा दी जाती है. स्कूल प्रबंधन डेवलपमेंट या प्रमोशन चार्ज के रूप में नोटिस दे देती है. तब इसे भरना पड़ता है. वहीं स्कूल में जब पूछा जाता है तो वे इस पर कोई ठोस जवाब नहीं देते हैं. सभी स्कूलों का यही हाल है. अधिकारी सबकुछ जानते हुए भी इस पर कोई ठोस कदम नहीं उठाते हैं. कहा कि यह जानकारी जिला शिक्षा विभाग को है. लेकिन विभाग मूकदर्शक बना रहता है. अभिभावकों की लगातार शिकायत के बावजूद आरटीआई सेल के नोडल ऑफिसर चुप्पी साधे बैठे रहते हैं. अभिभावकों के पास कोई विकल्प नहीं होता है. वे स्कूल भी बदल नहीं सकते हैं. इससे स्कूल की बातें मानते रहना अभिभावकों की मजबूरी बन जाती. सरकार को इस मामले में हस्तक्षेप करना चाहिए.
सरकार के रवैये के कारण स्कूलों से डरे रहते हैं अभिभावक
फीस को लेकर सभी अभिभावक परेशान रहते हैं. इसमें सुशील कुमार मंडल भी शामिल हैं. उनकी बेटी धनबाद पब्लिक स्कूल में पढ़ती है. सुशील बताते हैं कि निजी स्कूलों पर सरकार का कोई नियंत्रण नहीं है. स्कूल प्रबंधन अभिभावकों से बिना राय लिये फीस बढ़ाती रहती है. जब पूछा जाता है तो कुछ और ही कह दिया जाता है. आखिर में बात माननी पड़ती है. कहा कि कोरोना काल के दौरान फीस नहीं लेने का सरकार का आदेश था. इसके बाद भी उन्होंने नहीं सुना. उन्होंने फीस लिया. लेकिन इसके बाद भी दो वर्षों में सरकार एक भी स्कूल पर कार्रवाई नहीं कर पाई. इस वजह से स्कूल का फीस बढ़ाना जारी है. वहीं अभिभावक डरे हुए रहते हैं. स्कूलों की नाजायज मांग की शिकायत सामने आकर नहीं करते हैं. अभिभावकों में भय होता है कि जब सरकार ही निजी स्कूलों का कुछ नहीं बिगाड़ पा रही है तो शिकायत करने से स्कूल ही कोई कार्रवाई कर दे तो फिर मुश्किल होगी. बच्चों को कठिनाई होगी.
निश्चित बुक स्टोर से किताब-कॉपी खरीदने की बाध्यता खत्म हो
झारखंड अभिभावक संघ के अध्यक्ष पप्पू कुमार सिंह इस मामले को लेकर गंभीर हैं. उनका कहना है कि शिक्षा को लेकर देशभर में प्रचार किया जाता है. सभी को पढ़ाने की बात की जाती है. लेकिन जब फीस की बात आती है तो कोई कुछ नहीं करता है. स्कूल की मनमानी चलती रहती है. अभिभावक चाहकर भी इस पर सवाल नहीं कर पाते हैं. उनके सामने अपने बच्चे का करियर का बात होता है. इसलिए वे चुप रह जाते हैं. उन्होंने कहा कि प्राइवेट स्कूल की मनमानी पर नकेल कसने के लिए कानून तो बहुत बने हैं. लेकिन प्राइवेट स्कूल माफिया के आगे सब फेल है. स्कूल फीस रेगुलेटरी कमेटी का निर्माण डीसी के नेतृत्व में होना चाहिए, ताकि मासिक फीस बढ़ोतरी पर लगाम लगाई जा सके. हर साल ड्रेस और किताब बदल देने की कवायद और निश्चित बुक स्टोर से किताब-कॉपी खरीदने की बाध्यता भी खत्म होनी चाहिए. क्योंकि यह सब कमीशन के चक्कर में होता है. यह सब सरकार को देखना चाहिए.
स्कूलों की मनमानी का महासंघ विरोध करता रहेगा
झारखंड युवक महासंघ के प्रवक्ता व मीडिया प्रभारी रतिलाल महतो ऐसे मामलों में सक्रिय रहते हैं. उन्होंने कहा कि मनमाने ढंग से फीस वृद्धि और किताब कॉपी खरीदने की बाध्यता जैसे मुद्दों को लेकर संगठन ने हाल ही में ज्ञापन सौंपा है. इस शैक्षणिक सत्र में युवक संघ निजी स्कूलों पर नजर रखेगा. जिले के निजी स्कूलों द्वारा मनमानी का महासंघ की ओर से विरोध किया जाएगा. कहा कि फीस एक गंभीर मामला है. यह बच्चों की पढ़ाई से जुड़ा है. इसके लिए सरकार को भी सजग रहना होगा. तभी इस पर लगाम लगेगा. नहीं तो इसी तरह से स्कूल फीस बढ़ाता रहेगा और अभिभावक परेशान होते रहेंगे. ऐसे में अभिभावकों पर दबाव बढ़ता जा रहा है. उन्हें किसी भी हालत में अपने बच्चों को पढ़ाना है. इसलिए वे भी स्कूल की बात मानने के लिए विवश हैं. नहीं मानने पर उन्हें बच्चे को ले जाना होगा.