Pravin Kumar
Ranchi: झारखंड सरकार अनुसूचित जनजाति और अन्य परंपरागत वन निवासी (वन अधिकारों की मान्यता) अधिनियम 2006 के तहत वनों में रहने वाले लोगों को वन भूमि का पट्टा देने में राज्य पिछड़ रहा है. राज्य में 30 प्रतिशत वन क्षेत्र होने के बावजूद, सरकारी अधिकारियों की अनिच्छा के कारण वन भूमि के पट्टे दिए जाने में प्रगति कम रही है. मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन द्वारा शुरू किए गए अबुआ बीर अबुआ दिशोम अभियान के तहत पिछले वर्ष 18 साल पुरानी वन अधिकार अधिनियम के कार्यान्वयन पर जोर दिया गया था. हालांकि, एक साल बीत जाने के बाद भी अपेक्षित परिणाम नहीं आए हैं.
केंद्र सरकार के पर्यटन मंत्रालय के आँकड़ों के अनुसार, झारखंड में वन पट्टा देने की प्रक्रिया में राज्य काफी पीछे है, जबकि इसके पड़ोसी राज्य छत्तीसगढ़ इस मामले में सबसे आगे है. अन्य राज्य जैसे आंध्र प्रदेश, ओड़िशा, मध्य प्रदेश, गुजरात, महाराष्ट्र और त्रिपुरा भी झारखंड से काफी आगे निकल चुके हैं. अबुआ बीर अबुआ दिशोम अभियान के बावजूद, कई कमियों के कारण प्रगति धीमी रही है. अब तक 448 व्यक्तिगत वन अधिकार पट्टे (आईएफआर) और 399 सामुदायिक वन अधिकार पट्टे (सीएफआर) जारी किए गए हैं. वन अधिकार कानून, अनुसूचित जनजातियों और अन्य पारंपरिक वन निवासियों को सामुदायिक वन संसाधनों की “सुरक्षा, पुनर्जनन या संरक्षण या प्रबंधन” का अधिकार प्रदान करता है.
आंकड़ों के अनुसार, झारखंड में कुल 59866 व्यक्तिगत और 2104 सामुदायिक पट्टे का वितरण किया गया है. कल्याण विभाग की रिपोर्ट के अनुसार, एक लाख सात हजार 32 व्यक्तिगत वन पट्टा के लिए और 3724 सामुदायिक वन पट्टा के लिए आवेदन किए गए थे. कुल मिलाकर 110756 आवेदन किए गए थे, जिसमें से मात्र 59866 व्यक्तिगत और 2104 सामुदायिक वन पट्टे ही वितरित किए गए हैं. डीएलसी (जिला स्तरीय समिति) द्वारा 2121 पट्टे का निष्पादन किया गया है, लेकिन वास्तविक वितरण में कमी है.
अन्य राज्यों की तुलना
राज्य | व्यक्तिगत | सामुदायिक |
झारखंड |
60,000 |
2,000 |
छत्तीसगढ़ |
4,79,000 |
49,000 |
ओडिशा |
4,61,000 |
8,000 |
मध्य प्रदेश |
2,67,000 |
28,000 |
तेलंगाना |
2,67,000 |
1,000 |