झारखंड में सोहराई कला का है एक अलग महत्व
Ranchi: सोहराई कला झारखंड के आदिवासियों की पारंपरिक कला है. आदिवासी समाज में इस कला का प्रचलन रहा है. झारखंड में तकरीबन 700 से अधिक ऐसे कलाकार हैं जिनकी आजीविका का साधन सोहराई है. दो साल सोहराई कलाकार बेरोजगारी की मार झेल रहे थे. लॉकडाउन के चलते इनकी आर्थिक स्थिति काफी खराब हो गई थी. कलाकारों ने सरकार से कई बार मदद की गुहार लगाई. जिसके बाद इनको सोहराई पेंटिंग के तौर पर रोजगार मुहैया कराया गया.
क्या है सोहराई कला और इसका महत्व
सोहराई का प्रचलन हजारीबाग जिले के बादम क्षेत्र में हुआ था. कहा जाता है कि बादम राजाओं ने इस कला को काफी प्रोत्साहित किया था. जिसकी वजह से यह कला गुफाओं की दीवारों से निकलकर घरों की दीवारों में अपना स्थान बना पाने में सफल हुई थी. ये चिह्न ज्यादातर सफेद मिट्टी, लाल मिट्टी, काली मिट्टी या गोबर से बनाये जाते थे. इस कला में कुछ लिपि का भी इस्तेमाल किया जाता था जिसे वृद्धि मंत्र कहते थे.
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बाद के दिनों में इस लिपि की जगह कलाकृतियों ने ले ली. जिसमें फूल, पत्तियां एवं प्रकृति से जुड़ी चीजें शामिल होने लगीं. कालांतर में इन चिन्हों को सोहराई या कोहबर कला के रूप में जाना जाने लगा. धीरे-धीरे यह कला राजाओं के घरों से निकलकर पूरे समाज में फैल गयी. राजाओं ने भी इस वृद्धि कला को घर-घर तक पहुंचाने में काफी मदद की. लेकिन आज मदद तो दूर इस सांस्कृतिक धरोहर के संरक्षण के लिये भी कोई आगे नहीं आता.
ग्रेजुएशन के बाद सभी ने कलाकृति को बनाया रोजगार का साधन
सोहराई कला प्रशिक्षक जयश्री इंदवार ने बताया की ग्रेजुएशन के बाद कई ऐसे विद्यार्थी हैं जिन्होंने कलाकृति को रोजगार बनाया. सोहराई कला की बारीकियों को जानने के बाद झारखंड के कई हिस्सों के सोहराई कलाकृति भी की लेकिन तकरीबन 2 साल से इनके पास किसी भी तरह का काम नहीं हैं मिल पा रहा था सभी कलाकारों को आर्थिक स्थिति खराब हो गई थी. सरकार से इन्होंने कई बार गुहार लगाई अब जाकर सरकार ने सभी की गुहार सुनी और सोहराई पेंटिंग के तौर पर रोजगार मुहैया कराया गया.
वहीं कलाकार गुड़िया देवी ने कहा की फिलहाल सोहराई पेंटिंग के लिए सरकार ने 18 लोगों को रांची में रोजगार मुहैया कराया है. जिसके एवज में कलाकारों को प्रतिदिन 500 रुपए दिए जाते हैं. उन्होंने सरकार से सभी बेरोजगार सोहराई कलाकारों को रोजगार उपलब्ध कराने की मांग की है.
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