Dr. Pramod Kumar
Hazaribagh : लोकनायक जयप्रकाश नारायण के विचारों को जन-जन तक पहुंचाने वाले समाजवाद के पुरोधा राम मनोहर लोहिया के अन्यतम शिष्य तथा आचार्य नरेंद्र देव के राजनीतिक मूल्यों को आत्मसात करने वाले जननायक कर्पूरी ठाकुर का व्यक्तित्व बहुआयामी था. एक कठोर प्रशासक, जन सुलभ राजनेता तथा समाजवाद के सार्थवाह के रूप में उनकी भूमिका आडंबर और पाखंड से कोसों दूर थी.
वे स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान हजारीबाग जेल में बंद रहे. दूसरी आजादी के दौर में भी उन्हें हजारीबाग जेल में ही सजा काटनी पड़ी थी. वर्ष 1974 के आंदोलन में सैकड़ों छात्र उनके साथ बंदी रहे थे. अधिवक्ता स्वरूप चंद जैन, गौतम सागर राणा, उपेंद्र नाथ दास, अर्जुन यादव, हरीश श्रीवास्तव जैसे कई सेनानियों के पास लोकनायक की स्मृति गाथा अभी भी सुरक्षित है. इनमें से कई नेता अब हमारे बीच नहीं हैं, लेकिन जो अभी हैं, वे जननायक की गाथा करते हुए नहीं अघाते.
लोकनायक की सादगी बेमिसाल थी. वर्ष 1972 में उन्हें चतरा जिले के हंटरगंज में वैसे लोगों को देखने व सुनने का मौका मिला था. वहां न कोई स्टेज और न कोई भारी-भरकम व्यवस्था और न भाड़े की भीड़ थी. एक व्यवसायी सेवक बाबू की दुकान के सामने उन्हीं की दुकान से काठ की साधारण सी कुर्सी लायी गई. उसी कुर्सी पर बैठकर जननायक ने घंटों भाषण दिया. ऐसा लग रहा था कि शिक्षक अपनी कक्षा में बच्चों को पढ़ा रहे हैं. आंदोलन के क्रम में उनका हजारीबाग में आगमन होता रहा था. उन्होंने इसी क्रम में दिन का भोजन अशोक चौरसिया (अब स्वर्गीय) के घर किया था. इस संबंध में उनकी बहन गीता चौरसिया बताती हैं कि उनके साथ प्रखर समाजवादी नेता रामनिवास मिर्धा भी थे.
पांच सितारा होटलों की संस्कृति से वह काफी दूर थे. दो-दो बार मुख्यमंत्री रहे और एक लंबी अवधि तक विधायक के रूप में अपनी भूमिका निभाई तथा सांसद भी रहे, लेकिन उनके ऊपर कोई भी दाग नहीं लगी. वे बेदाग रहे. उनका प्रमुख शौक पुस्तकें पढ़ना था. पटना में पारिजात प्रकाशन में वे अक्सर देखे जाते थे. सांसद शंकर दयाल सिंह पारिजात प्रकाशन के संचालक थे और वहां हमेशा बुद्धिजीवियों की जमघट लगी रहती थी. लोकनायक वहां से पुस्तकें लेकर रिक्शा पर बैठते और सीधे अपने निवास की ओर प्रस्थान कर जाते थे. कोई वाहन नहीं और न कोई अन्य सरकारी सुविधा के आदि थे. लोकनायक जयप्रकाश नारायण के आदर्शों पर जीवन भर चलते रहे तथा कबीर की पंक्तियों को चरितार्थ करते हुए ‘जस की तस धर दीनी चदरिया’ के अंदाज में अपने जीवन को जन सेवा में समर्पित कर दिया.
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