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जयंती पर विशेष: सरायकेला छऊ नृत्य के प्रशंसक रहे हैं गांधी जी, 1925 में चाईबासा में की थी सभा

Saraikela / Chaibasa : सरायकेला के विश्व प्रसिद्ध छऊ नृत्य के कई प्रशंसकों में राष्ट्रपिता महात्मा गांधी का भी नाम आता है. देश की आजादी के पूर्व गांधी जी ने सरायकेला के छऊ नृत्य को देखा था और जमकर इस नत्य की प्रशंसा की थी. इसका जिक्र पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के पुस्तक इटालियन इंड़िया व देश के प्रथम प्रधानमंत्री पं जवाहर लाल नेहरु के पुस्तक में भी किया गया है. यह वाकया वर्ष 1937 का है. जब गांधी जी पूरे देश में ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ आंदोलन चला रहे थे. तब देश में चलाये जा रहे स्वतंत्रता आंदोलन में भाग लेने के लिये गांधी जी कोलकाता पहुंचे थे. गांधी जी कोलकाता में शरत चंद्र बोस के आवास में ठहरे हुए थे. इसी दौरान कोलकाता में शरत चंद्र बोस के घर पर छऊ नृत्य कार्यक्रम आयोजित हुआ. सरायकेला राजघराने की अगुआयी में रोयल डांस ग्रुप के कलाकार राजघराने के कुंअर विजय प्रताप सिंहदेव, राजकुमार सुधेंद्र नारायण सिंहदेव, नाटशेखर बन बिहारी पट्टनायक ने अपनी टीम के साथ गांधी जी के सामने नृत्य प्रस्तुत किया. राधा-कृष्ण के नृत्य को देख कर गांधी जी भाव विहोर हो गये थे. उन्होंने नृत्य देखने के पश्चात कहा था कि नृत्य देखते वक्त ऐसी अनुभूति हो रही थी कि मानों मैं वृंदावन में हूं और मेरे सामने राधा-कृष्ण नृत्य कर रहे हों. नृत्य देखने के बाद गांधी जी ने राजघराने के कुंअर विजय प्रताप सिंहदेव, राजकुमार सुधेंद्र नारायण सिंहदेव, नाटशेखर बन बिहारी पट्टनायक के नृत्य की जम कर प्रशंसा की थी. इस टीम में शहनाई वादक के रुप में मुस्लिम समुदाय के छोटे मियां बड़े मियां व ढोलक वादक के रुप में दलित समुदाय के मधु मुखी शामिल थे.

ताड़ के पत्ते से बनी चटाई पर बैठ कर पिया था गौशाला के गाय का दूध

राष्ट्रपिता महात्मा गांधी पहली बार 1925 में चाईबासा आये थे. चाईबासा के कांग्रेस भवन में एक कार्यक्रम में भाग लेने के पश्चात गौशाला में पहुंच कर कुछ वक्त गुजारा था. तब गांधी जी ने गौशाला की बेहतरीन व्यवस्था देख कर खूब तारीफ की थी. गौशाला में तत्कालीन अध्यक्ष बारसी दास पसारी के सेवा भाव को देख कर गांधी जी ने उनकी पीठ थपथपाते हुए कहा था कि तुम बहुत नेक कार्य कर रहे हो. गौ सेवा बहुत बड़ी सेवा है. इस दौरान जब गांधी जी जमीन पर खजूर के पत्ते से बनी चटाई पर बैठे थे. उसके बाद गौशाला की गाय से दूध निकाल कर गिलास में दिया गया था. साथ ही उन्हें मिट्टी की हांडी से बनायी गयी चाय पिलाई गयी थी. तब महात्मा गांधी ने गौशाला की गायों को नजदीक से पुचकारा था. इस दौरान गांधी जी ने गौशाला की डायरी में अपना शुभ संदेश भी लिखा था और अपने हस्ताक्षर किये थे.

हो आदिवासियों की टीम से अलग से मिले

1925 में चाईबासा आगमन के दौरान गांधी जी ने वहां सभा की थी. आदिवासियों पर गांधीजी की यात्रा का गहरा असर पड़ा था. सभा के पश्चात गांधी जी ने हो आदिवासियों की टीम से अलग से मुलाकात भी की थी. चाईबासा में सुखलाल सिंकू और रसिका मानकी के नेतृत्व में आजादी की लड़ाई चल रही थी. चाईबासा से रांची की वापसी के दौरान गांधी जी खूंटी में रुके थे और वहां के मुंडाओं के साथ बैठ कर बातचीत की थी.  

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