Ranchi : अवैध खनन घोटाले में सीबीआई जांच के दायरे में फंसे अफसरों पर महालेखाकार ने भी तिरछी नजर डाली है. ईडी ने खनन घोटाले की जांच के दौरान तत्कालीन उपायुक्त राम निवास यादव के सरकारी बंगले पर छापा मारा था. यह छापामारी SC/ST थाने में दर्ज प्राथमिकी (6/2022) की जांच के दौरान की गयी थी. सीबीआई खनन घोटाले की जांच के दौरान साहिबगंज के तत्कालीन जिला खनन पदाधिकारी (DMO) के ठिकानों पर भी छापा मार चुकी है.
विधानसभा के शीतकालीन सत्र-2025 में लघु खनिजों के सिलसिले में पेश महालेखाकार की रिपोर्ट में भी इन दोनों अधिकारियों की भूमिका और गड़बड़ी का उल्लेख किया गया है. खनन घोटाले की जांच के दौरान साहिबगंज में अवैध खनन के मामले में तत्कालीन उपायुक्त राम निवास यादव की भूमिका को संदेहास्पद माना है.
ईडी ने खनन घोटाले की जांच के दौरान जनवरी 2024 में राम निवास यादव के सरकारी बंगले पर छापा मारा था. छापामारी के दौरान नकद आठ लाख रुपये और 26 गोलियां जब्त की गयी थीं. ईडी ने इस छापामारी के बाद तत्कालीन उपायुक्त राम निवास यादव के खिलाफ कार्रवाई करने के लिये सीबीआई निदेशक को पत्र लिखा था.
उपायुक्त के बंगले पर ईडी की छापामारी के बाद राज्य सरकार और ईडी के बीच अधिकारों को लेकर विवाद शुरू हो गया था. राज्य सरकार की ओर से ईडी को पत्र लिख कर सरकारी बंगले में बिना सूचना दिये छापामारी को गलत बताया गया था. साथ ही इससे संबंधित कारण पूछे गये थे.
दूसरी तरफ ईडी ने सरकार को पत्र भेज कर अपनी कार्रवाई को जायज करार दिया था. साथ ही यह भी कहा था कि उसे कार्रवाई करने का अधिकार संसद से पारित क़ानून के तहत मिला है. राज्य सरकार, इस अधिकार को चुनौती नहीं दे सकती है.
खनन घोटाले की जांच के दौरान ईडी ने साहिबगंज के तत्कालीन DMO विभूति कुमार सहित दूसरे DMO से पूछताछ की थी. साथ ही अवैध खनन मामले में स्थल जांच के दौरान विभूति कुमार को भी शामिल किया था. स्थल जांच के दौरान 23.26 करोड़ क्यूबिक फुट अवैध पत्थर खनन का आकलन किया गया था. साथ ही इसकी कीमत 1250 करोड़ रुपये आंकी गयी थी.
सीबीआई ने खनन घोटाले की जांच के दौरान साहिबगंज के तत्कालीन DMO विभूति कुमार के ठिकानों पर छापा मारा था. छापामारी के दौरान 1.5 करोड़ रुपये के निवेश से संबंधित दस्तावेज और 50 लाख रुपये के जेवरात जब्त किये गये. छापामारी के दौरान जब्त दो करोड़ रुपये मूल्य की चीजों को उनकी वैध आमदनी के मुकाबले देखा जा रहा है. इससे खनन घोटाले को संरक्षण देने के मामले में DMO की भूमिका और भी ज्यादा संदेहास्पद हो जाती है.
महालेखाकार ने लघु खनिजों के सिलसिले में शीतकालीन सत्र-2025 में पेश रिपोर्ट में इन दोनों अधिकारियों की भूमिका का उल्लेख किया है. महालेखाकार की रिपोर्ट में कहा गया कि सितंबर 2017 मे एक आवेदक ने माइनिंग लीज के लिए आवेदन दिया था. DMO साहिबगंज ने अक्तूबर 2017 में LOI जारी किया. नियमानुसार आवेदक के LOI जारी होने के 180 दिनों के अंदर माईन प्लान (MP) और इंवायरमेंटल क्लियरेंस (EC) मे जमा करना है. आवेदक द्वारा इस निर्धारित समय सीमा में MP और EC जमा नहीं करने की वजह से उसका आवेदन रद्द हो जाना चाहिए था. लेकिन उसका लीज आवेदन रद्द नहीं किया गया. आवेदक ने अक्तूबर 2019 में EC के लिए SEIAA में आवेदन दिया. SEIAA ने नवंबर 2019 में EC दे दिया.
इस बीच JMMC Rule 2004 में संशोधन हो गया. इसमें यह कहा गया कि अगर कोई आवेदक LOI के जारी होने के 180 दिनों के अंदर MP और EC नहीं जमा किया हो तो वह खान आयुक्त के पास आवेदन देकर अपने मामले पर विचार करने का अनुरोध कर सकता है. इस नियम के आलोक में आवेदक ने खान आयुक्त के यहां Revision Petition दायर किया. खान आयुक्त ने इसे उपायुक्त के पास भेज दिया. उपायुक्त ने इस पर DMO की राय मांगी. साहिबगंज के तत्कालीन DMO द्वारा तैयार की गयी रिपोर्ट के आधार पर उपायुक्त ने फरवरी 2021 में लीज स्वीकृत किया. इसके बाद अप्रैल 2021 से अप्रैल 2031 तक के लिए के लिए खनन पट्टा तैयार किया गया. इस मामले में DMO ने गलत तरीके से लीज की अनुशंसा की और उपायुक्त ने अपने अधिकार क्षेत्र से बाहर जाकर लीज स्वीकृत कर दिया.


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