New Delhi : भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन यानी ISRO ने अपने सबसे छोटे रॉकेट SSLV-D2 को अंतरिक्ष में लॉन्च कर दिया. यह लॉन्चिंग 10 फरवरी 2013 की सुबह 9.18 बजे की गई है. आंध्र प्रदेश के श्रीहरिकोटा में सतीश धवन स्पेस सेंटर से लॉन्चिंग की गई है. इसका नाम है स्मॉल स्टैलाइट लॉन्च व्हीकल (SSLV). इस सैटेलाइट को 10 किलो से लेकर 500 किलो तक वजन ले जाने के लिए डिजाइन किया गया है. एसएसएलवी-डी2 ने अपने साथ तीन सैटेलाइट लेकर अंतरिक्ष की उड़ान भरी, जिनमें अमेरिकी की कंपनी अंतारिस की सैटेलाइट Janus-1, चेन्नई के स्पेस स्टार्टअप स्पेसकिड्ज की सैटेलाइट AzaadiSAT-2 और इसरो की सैटेलाइट EOS-07 शामिल हैं. ये तीनों सैटेलाइट्स 450 किलोमीटर दूर सर्कुलर ऑर्बिट में स्थापित की जायेंगी.
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— ISRO (@isro) February 9, 2023
SSLV-D2 पृथ्वी की निचली कक्षा में 15 मिनट तक उड़ान भरेगा
आजादी सैट को देश के ग्रामीण इलाकों से आने वाली 750 लड़कियों ने मिलकर बनाया है. इसमें स्पेसकिड्ज के वैज्ञानिकों ने उनकी मदद की है. SSLV-D2 पृथ्वी की निचली कक्षा में 15 मिनट तक उड़ान भरेगा, जहां यह सैटेलाइट्स को 450 किलोमीटर की गोलाकार कक्षा में तैनात करेगा.
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34 मीटर लंबे एसएसएलवी रॉकेट का व्यास 2 मीटर
इसरो के अनुसार, एसएसएलवी 500 किलोग्राम तक की सैटेलाइट को लोअर ऑर्बिट में लॉन्च करने में काम में लाया जाता है. यह रॉकेट ऑन डिमांड के आधार पर किफायती कीमत में सैटेलाइट लॉन्च की सुविधा देता है. 34 मीटर लंबे एसएसएलवी रॉकेट का व्यास 2 मीटर है. यह रॉकेट कुल 120 टन के भार के साथ उड़ान भर सकता है. बता दें कि इससे पहले पिछली साल 7 अगस्त को इसी रॉकेट से दो सैटेलाइट छोड़े गए थे. ये थे EOS-02 और AzaadiSAT थे. लेकिन आखिरी स्टेज में एक्सेलेरोमीटर में गड़बड़ी होने की वजह से दोनों गलत ऑर्बिट में पहुंच गए थे. लेकिन पहली बार इस रॉकेट की लॉन्चिंग सफल थी. पिछले लॉन्च में हुई गड़बड़ी को लेकर इसरो प्रमुख एस. सोमनाथ ने कहा था कि सिर्फ दो सेकेंड की गड़बड़ी की वजह से रॉकेट ने अपने साथ ले गए सैटेलाइट्स को 356 किलोमीटर वाली गोलाकार ऑर्बिट के बजाय 356×76 किलोमीटर के अंडाकार ऑर्बिट में डाल दिया था.
SSLV सिर्फ 72 घंटे में तैयार हो जाता है
बताया जा रहा है कि SSLV की लंबाई 34 मीटर है. इसका व्यास 2 मीटर है. SSLV का वजन 120 टन है. एसएसएलवी 10 से 500 किलो के पेलोड्स को 500 किलोमीटर तक पहुंचा सकता है. SSLV सिर्फ 72 घंटे में तैयार हो जाता है.SSLV की जरूरत इसलिए पड़ी क्योंकि छोटे सैटेलाइट्स को लॉन्च करने के लिए पीएसएलवी के बनने का इंतजार करना पड़ता था. वो महंगा भी पड़ता था. उन्हें बड़े सैटेलाइट्स के साथ असेंबल करके भेजना होता था. अंतरराष्ट्रीय स्तर पर छोटे सैटेलाइट्स काफी ज्यादा मात्रा में आ रहे हैं. उनकी लॉन्चिंग का बाजार बढ़ रहा है.SSLV रॉकेट के एक यूनिट पर 30 करोड़ रुपये का खर्च आएगा. जबकि PSLV पर 130 से 200 करोड़ रुपये आता है.
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