- राज्य सरकार की दलील को बताया गया गुमराह करने वाला
- लंच के बाद होगी आगे की सुनवाई
Ranchi : सारंडा मामले में Steel Authority of India (SAIL) की ओर से सुप्रीम कोर्ट में दायर हस्तक्षेप याचिका पर सुनवाई हो रही है. सुनवाई के दौरान न्यायालय में सबसे पहले सेल की ओर से अपना पक्ष पेश किया गया. इसके बाद वरीय अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने राज्य सरकार की ओर से पक्ष रखा.
हालांकि राज्य सरकार की ओर से दी गयी दलील को न्यालालय को गुमराह करने वाला बताया गया. इसके बाद न्यायालय ने इस मामले की सुनवाई लंच के बाद करने का फैसला किया.
सारंडा को सेंक्चुअरी (Sanctuary) घोषित करने के मामले में मुख्य न्यायाधीश बीआर गवई और न्यायाधीश के विनोद चंद्रन की पीठ में सुनवाई हुई. सुनवाई के दौरान सबसे पहले SAIL की ओर से सेंक्चुरी घोषित करने के मामले पर पुनर्विचार करने का अनुरोध किया गया.
SAIL की ओर से यह दलील दी गयी कि सारंडा के खदान से उसके लौह अयस्क की जरूरतों का 50% पूरा होता है. वह सरकारी कंपनी है. कहा कि यह 1947 से माइनिंग कर रहा है और रेलवे व चंद्रयान को स्टील सप्लाई कर रहा है. सरकार निजी खदान मालिकों से Iron Ore नहीं खरीदता है. 57 हजार हेक्टेयर को सेंक्चुअरी घोषित करने पर उसकी जरूरतें पूरी नहीं होंगी और उत्पादन का लक्ष्य पूरा नहीं होगा.
सेल के बाद कपिल सिब्बल ने राज्य सरकार का पक्ष पेश करना शुरू किया. उन्होंने कहा कि न्यायालय के आदेश के आलोक में राज्य सरकार के मुख्य सचिव यहां हाजिर हैं. सारंडा की चर्चा करते हुए उन्होंने कहा कि NGT ने 31 हजार हेक्टेयर को सेंक्चुअरी घोषित करने का निर्देश दिया था.
इस निर्देश के आलोक में राज्य सरकार ने WII से यह जानना चाहा कि सेंक्चुअरी घोषित करने से माइनिंग पर क्या प्रभाव पड़ेगा. WII को अध्ययन कर राज्य सरकार को एक विस्तृत रिपोर्ट सौंपने को कहा गया. रिपोर्ट में इस बात का भी उल्लेख करने को कहा गया था कि कितने क्षेत्र को सेंक्चुअरी घोषित करने पर माइनिंग प्रभावित होगा.
इसके जवाब में WII ने अध्ययन कर रिपोर्ट देने पर कई साल समय लगने की बात कही. इसके बाद राज्य सरकार ने WII से फिर अनुरोध किया. इसके बाद WII ने राज्य सरका को एक मैप भेज दिया. इस मैप के अनुसार, सेंक्चुअरी घोषित करने पर माइनिंग क्षेत्र के अलावा सारंडा में रहने वाले आदिवासी प्रभावित होंगे. मामला वन मंत्रालय से भी संबंधित है, इसलिए न्यायालय इस मामले में केंद्रीय वन मंत्रालय को भी नोटिस करे.
कपिल सिब्बल की बात सुनने के बाद Amicus Curiae ने मामले में हस्तक्षेप किया. उन्होंने कहा कि Sanctuary घोषित करने का मामला पूरी तरह राज्य सरकार से संबंधित है. इसमें केंद्र की कोई भूमिका नहीं है. इसलिए केंद्रीय वन मंत्रालय को नोटिस जारी करने का कोई औचित्य नहीं है.
उन्होंने कहा कि सारंडा Reserve Forest है. यह पूरी तरह राज्य के नियंत्रण में हैं. जहां तक माइनिंग प्रभावित होने की बात है तो कोर्ट चाहे तो सिर्फ working mines के मामले पर पुनर्विचार कर सकती है. लेकिन भविष्य में किये जाने वाले खनन के मुद्दो पर विचार नहीं करना चाहिए. WII के सिलसिले में राज्य की ओर से कही गयी बातें कोर्ट को गुमराह करने वाली है.
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