Manish Singh
भारतीय उपमहाद्वीप के लोग, युद्ध को शतरंज की तरह खेलते हैं.
शतरंज में एक राजा होता है.
मंत्री, प्यादा, हाथी, घोड़े, होते है.
सब लड़ाकों के दायरे हैं. ऊंट तिरछा चलेगा, हाथी सीधा, घोड़ा ढाई घर. प्यादा एक घर सीधा चलेगा, पर मारेगा तिरछा.
खेल का ऑब्जेक्टिव- अपने राजा को बचाना.
दुश्मन राजा को मारना है.
तो इसके लिए प्यादे को मरना है, ऊंट घोड़े हाथी को मरना है. दुश्मन के प्यादे मारने हैं. उसके ऊंट घोड़े हाथी, मंत्री, राजा मारने है.
मरने है, मारने हैं.
आम भारतीय मरने-मारने की सोचता है. 1 के बदले 10 सर, मेरे 2 जहाज गिरे, उनके 20 गिराए.
मेरे 28 नागरिक मरे, तेरे 100 (आतंकी) मारे. तो भाई, स्कोर बोर्ड में हमारे रन ज्यादा हैं, जीत हमारी मानी जाए.
हमारी सोच खूनी है.
हां हां, वीरतापूर्ण है. हम प्राणोत्सर्ग करने, त्याग, बलिदान, शहादत देने और मार डालने, पीट देने जैसी भावनाओ से ड्राइव होते हैं.
सीमा के दोनों तरफ, हम एक ही DNA के लोग, एक ही तरह की खूनी किलकारी मारते हैं.
चीन का खेल अलग है. "चाइनीज गो" या वेई गूगल कीजिए. इस खेल में बोर्ड है, गोटियां है. कोई मरना मारना नही है. गोटी रखनी है, जगह घेरनी है.
गोटियों की कमी नही. कटोरे में अनगिनत गोटियां रखी है. जितना चाहो यूज करो. बस एक चांस आपका, दूसरा मेरा.
बोर्ड पर रखते जाइये.
जगह घेरिये.
खेल बरसों तक चल सकता है. अंततः उठने तक जो ज्यादा जमीन घेरेगा, जीत उसकी.
तो भारत-पाक लाशें गिनते हैं.
चीनी जमीन.
मेरे 20 मरे, आपके 200.
मैं जीता. यह शतरंज है.
पर चीन के कितने भी मरे, उसने 100 स्क्वायर फीट जमीन जीती ली, आपने 20, तो चीनी अपनी जीत मानेगा.
1962 में भारत के लगभग 1400 फौजी मरने की पुष्टि की गई. चीन ने कभी घोषणा न की, पर 800 की अपुष्ट स्वीकृति थी.
मगर कुछ बरस पहले पुराने डॉक्यूमेंट के हवाले से कोई रिपोर्ट आई जिसमें यह संख्या 5000 के लगभग थी. भैया, हमने 3 गुना मारे.
कौन जीता?
चीन लाशें वाशें नही गिनता.
स्केवयर किलोमीटर गिनता है.
हिमालय में खेली जा रही वेई में आपके मरने मारने की एबिलिटी, बहादुरी, त्याग बलिदान, लाश की संख्या का कोई मोल नही.
वैसे भी मरने के लिए चीन के पास दुनिया की सबसे ज्यादा पॉपुलेशन है. अरे, मार ही लो 2 चार हजार चीनी, स्टे हैपी.
जमीन दे जाओ.
तो 1970 के बाद से,चीनी सीमा पर पेट्रोलिंग बिना भारी हथियार के होती है. टैंक, तोप दोनों ओर से बैन है. विवादित भूमि पर दोनों पक्ष बारी बारी पेट्रोलिंग करते हैं.
लब्बोलुआब यह कि वहां मौतों की खबर नहीं आती थी.
विगत कुछ वर्ष छोड़कर!! जब से लाशें गिनने वाले सत्ता में आये हैं.
युद्ध जमीन पर बाद में लड़े जाते है. पहले दिमाग मे लड़ा जाता है. दुश्मन की मानसिकता समझ, तदनुसार काउंटर किया है.
पाकिस्तान कमजोर थ्रेट है. असली थ्रेट चीन है. तो हमारी सरकार पाकिस्तान को ही बार-बार क्यों खड़ा करती हैं.
जहां हिन्दू मुसलमान नैरेटिव उसके लिए मुफीद है. भला किसी "कैप्टन जेन-झाओ" की मौत में आपको आनंद क्यो आएगा.
लेकिन "कैप्टन अहमद मुनीर" या "मुश्ताक अंसारी" की मौत में इंटर्नल ऑर्गज्म मिलेगा.
वह मुस्लिम नाम है न!!
एक तरफ हमारी सरकार को भारतीय सैनिकों की मरने मारने की एबिलिटी पर भरोसा है. उसे भारतीयों की सोच का भी पता है. उसे समाधान नहीं, भावनाओ का ज्वार चाहिए.
वह यही करती है. 100 मारे-200 मारे...
डर गया पाकिस्तान. तबाह हो गया भई.
देश में खुशी की लहर दौड़ी. वोट पक रहे हैं. पूरा देश सिंधु सुखाकर 25 करोड़ पाकिस्तानी मारने का ख्वाब देख रहे हैं. हां, ठीक है..
पर इससे जमीन कितनी जीत लेंगे?
लाशो की संख्या चिल्लाकर (वह सच्ची हो या प्रोपगेंडित) आपकी वीरता को सहला सहला कर स्खलित कर दिया जाता है.
आप सन्तुष्ट. पर पूछ लें-कि जमीन कितनी मिली, या कितनी गई??
इसका जवाब नही मिलेगा. बल्कि आप सेना के बलिदान को बदनाम करने वाले, देशद्रोही गद्दार करार दिए जाएंगे.
अलहदा बात यह भी..
कि युद्ध दरअसल फेल्ड कूटनीति की पैदाइश होती है. वह वैदेशिक समस्याओं को सुलझाने का हिंसक रास्ता है.
मॉर्डन नेता का काम, बातें बनाना होता है. सिर्फ रैली में नहीं, नेगोशिएशन टेबल पर भी.
तो अंतराष्ट्रीय विषय, जिसे नेता को अपने बातचीत कौशल से सुलझाना चाहिए. फेल होकर जनरलों को सौप देता है.
युद्ध छेड़ने वाला ऐसा नेता, वीर नही, एक फेल्ड स्टेट्समैन है. यह बात ठीक ठीक और साफ साफ अपने जेहन में उतार लीजिए.
और अगर चीन से लड़ने के लिए अपनी सरकार को मजबूर करना है, तो बॉर्डर के दोनों ओर गिरने वाली हर लाश के पीछे, हिंदुस्तान की बढ़ी हुई जमीन का आंकड़ा पूछिये.
तब जमीन भले न बढ़े.
मौतें बंद हो जाएंगी.
डिस्क्लेमरः यह टिप्पणी लेखक के सोशल मीडिया एकाउंट से साभार लिया गया है.