Tantnagar (Ganesh Bari) : जिला मुख्यालय से 17 किमी दूर तांतनगर प्रखंड अतंर्गत कोकचो गांव के टोला गितिललोंगोर में जानुम सिंह सोय को पद्मश्री पुरस्कार देने की घोषणा से जश्न का माहौल है. एक-दूसरे को मिठाई खिला कर बधाई दे रहे हैं. जश्न इसलिए कि छोटे से टोला में जन्मे जानुम सिंह सोय (72 वर्ष) हो भाषा को संरक्षण व संवर्धन के लिए चौथे सर्वोच्च नागरिक सम्मान पद्मश्री पुरस्कार के लिए चुना गया है. सरकार जल्द ही तिथि तय कर राष्ट्रपति भवन में राष्ट्रपति के हाथों पुरस्कार से नवाजा जायेगा. जानुम सिंह कोल्हान यूनिवर्सिटी में हिंदी विभागाध्यक्ष रहते हुए हो भाषा साहित्य में उल्लेखनीय योगदान दिया है.
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जानुम सिंह की पारिवारिक पृष्ठभूमि
जानुम सिंह सोय पांच भाई तथा चार बहन थे. इनमें कैलाश चंद्र सोय, मनोज कुमार सोय, गुरुचरण सोय, रामनाथ सोय, जानुम सिंह सोय हैं. चारों बहनों की मृत्यु हो चुकी है. गांव में खेतीबाड़ी की देखरेख कर रहे रामनाथ सोय बताते हैं जब जानुम सिंह अविवाहित थे उसी समय से घाटशिला में रहने लगे. घाटशिला में रहते ही जानुम सिंह ने मुसाबनी (सोसोगोड़ा) क्षेत्र के हीरा बाडरा को अपनी जीवन संगिनी बनाया. हीरा बाडरा भी शिक्षिका थी. जानुम सिंह सोय का एक बेटा जय सिंह सोय तथा दो बेटी मनीषा सोय व मधुरिमा सोय है. बेटा जय सिंह सोय शिक्षक थे. वहीं मनीषा एफसीआई में असिस्टेंट प्रबंधक हैं. मधुरिमा प्राइवेट कंम्पनी में कार्यरत हैं.
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जानुम सिंह की शिक्षा दीक्षा
पद्मश्री पुरस्कार के लिए चुने गये जानुम सिंह सोय कक्षा 5 तक गांव के स्कूल, मैट्रिक तक हाईस्कूल मांगीलाल रुंगटा चाईबासा, स्नातक टाटा कॉलेज चाईबासा, पीजी, बीएड व पीएचडी की शिक्षा हो लोकगीत साहित्य व हो संस्कृति रांची यूनिवर्सिटी से की है.
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विस्थापन के दर्द को उकेर सपनों को मिली उड़ान
जानुम सिंह सोय भाषा, संस्कृति, सहित्य में रूचि के अलावा लोगों के दर्द को काफी करीब से समझते थे. उन्होंने ईचा डैम व कारखानों से विस्थापित हो रहे लोगों का दर्द को हो कुड़ी उपन्यास में उकेरा. साथ ही उपन्यास में आदिवासी अस्मिता व पहचान रेखांकित की है. उसके अलावा जल, जंगल, जमीन के लिए शहीद हुए गंगाराम कालुंडिया के संघर्षों को रेखांकित किया. हो कुड़ी उपन्यास से जानुम सिंह के सपनों को उड़ान मिली है. इसकी उड़ान महामहिम राष्ट्रपति भवन तक पहुंची तो सरकार को पुरस्कार के लिए सोचने पर विवश कर दिया. हो कुड़ी उपन्यास पद्मश्री पुरस्कार तक का सफर तय किया है. जानुम सिंह ने हो भाषा में बाहा संगेन सहित कई काविताएं लिखी हैं. साहित्यकार डोबरो बुड़ीउली बताते हैं कि जानुम सिंह सोय हिंदी के अलावे हो भाषा वारंग क्षिति लिपि के ज्ञाता हैं. उनका हो समाज के पर्व-त्योहार से खासा लगाव है. वे पर्व-त्योहार में घाटशिला से गांव आ जाते हैं. हो समाज संस्कृति का आनंद उठाते हैं. सोय अंतर्मुखी स्वाभाव के शांत व्यक्ति हैं. उनका जीवन सादगीपूर्ण व शालीनता उनकी पहचान है.
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इन्होंने जानुम सिंह को दी बधाई
छोटे से कस्बे में जन्मे जानुम सिंह सोय के नाम की पद्मश्री सम्मान के लिए घोषणा होने के बाद गितिल लोंगोर में बधाई देने वालों का तांता लग गया है. बधाई देने वालों में हो साहित्यकार डोबरो बिरूली, सांसद प्रतिनिधि विश्वनाथ तामसोय, हो भाषा शिक्षक चंद्रमोहन हेंब्रम, पूर्व शिक्षक सनातन बिरुवा, सेवानिवृत्त कैरा बिरुवा, सुभाष सावैंया हैं.
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