Tantnagar (Ganesh Bari) : ईचा खरकई बांध से हजारों परिवार विस्थापित होने के डर से डूब क्षेत्र के रैयतों ने डैम का विरोध करना शुरू किया था. लोगों को अस्तित्व व पहचान बचाने के लिए जल, जंगल, जमीन की लड़ाई व विस्थापन के विरूद्ध आवाज को बुंलद करने वाले शहीद गंगाराम उर्फ रामनारायण कालुंडिया 4 अप्रैल को शहीद हो गये थे. उनकी शहदत दिवस 4 अप्रैल को शहीद स्थल तांतनगर प्रखंड इलिगड़ा में धूमधाम से मनाया जायेगा. भारतीय थल सेना में रहते पड़ोसी देश चीन व पकिस्तान के साथ हुई युद्ध में पराक्रम दिखाने वाले गंगाराम उर्फ रामनारायण कालुंडिया ईचा डैम निर्माण का विरोध करने पर 4 अप्रैल 1982 को राज्य पुलिस के हाथों शहीद हो गये थे. मंगलवार को उनके शहीद दिवस पर समाधि स्थल इलिगाड़ा विभिन्न सामाजिक व राजनीतिक पार्टियों के नेता जुटेंगे. शहीद को श्रद्धांजलि दी जायेगी. गंगाराम कालुंडिया भारतीय थल सेना में राम नारायण कालुंडिया के नाम से जाने जाते थे. वे 5 बिहार रेजिमेंट में सूबेदार नायक थे. गंगाराम को सेना में बेहतर योगदान के लिए दीर्घ मेडल, हिमाचल सैन्य सेवा मेडल, 25वां स्वतंत्रता दिवस मेडल, संग्राम मेडल, रक्षा मेडल, 1979 में तत्कालीन राष्ट्रपति नीलम संजीव रेड्डी ने सम्मानित किया था.
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सेवानिवृत्ति के बाद गंगाराम अपने पैतृक गांव इलिगाड़ा में रहने लगे. तब गांव क्षेत्र में ईचा डैम निर्माण का जबरदस्त विरोध चल रहा था. डैम निर्माण होने से झारखंड व ओडिशा राज्य के 126 गांव पूर्ण विस्थापित हो रहे थे. इसमें इलिगाड़ा गांव भी शामिल था. गंगाराम ने विस्थापन का विरोध करना शुरू किया. डूब क्षेत्र के लाखों लोगों को एकजुट होकर डैम निर्माण का विरोध किया. सरकार से जमीन के बदले जमीन व मुआवजा की मांग रखी. गंगाराम ने देखते ही देखते लाखों लोगों को एकजुट कर डैम निर्माण के विरोध में आंदोलन खड़ा किया. आंदोलन उग्र होने के कारण डैम निर्माण कार्य में परेशानी बढ़ गयी. इसी बीच 4 अप्रैल 1982 को गंगाराम उर्फ रामनारायण कालुंडिया गांव (इलिगाड़ा) में होने की पुलिस को गुप्त सूचना मिली थी. 4 अपैल की रात में राज्य पुलिसकर्मियों ने इलिगाड़ा गांव से तीन किमी दूर तुईबाना में गाड़ी खड़ा कर पैदल जाकर गंगाराम उर्फ रामनारायण के घर को घेर लिया. उस समय सुबह करीबन 4 बज रहे थे. गंगाराम अपनी पत्नी बिरंग कुई के साथ सो रहे थे. जैसे ही पुलिसकर्मियों ने कालुंडिया को आत्मसमर्पण के लिए कहा तो उन्होंने गिरफ्तारी का विरोध किया.
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आत्मसमर्पण नहीं करने पर पुलिस ने उनके पैर में गोली मार दी. उन्हें घसीटते हुए ले जाया गया. रास्ते में सोसोहातु के पास बेरहमी से गोली मार कर दी गई. उस समय आस-पास गांव के लोगों ने गंगाराम उर्फ रामनारायण कालुंडिया की चीख सुनी थी. उसके बाद पुलिसकर्मियों ने गंगाराम कालुंडिया को चाईबासा स्थिति रोरो नदी किनारे लवारिस हालत में फेंक दिया. तत्कालीन सांसद बागुन सुम्बरूई की मदद से शव को पोस्टमार्टम करवा कर परिजनों को सौंप दिया गया. इस तरह जल, जंगल, जमीन की लड़ाई लड़ने वाले गंगाराम कालुंडिया हमेशा के लिए शहीद हो गये. प्रतिवर्ष 4 अप्रैल को इलिगाड़ा स्थित समाधि स्थल पर श्रद्धांजलि अर्पित की जाती है.
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