बच्चों छात्रों की किसी गलती, शरारत या शिक्षण शुल्क समय पर जमा नहीं होने पर उसे निकाला नहीं जाना चाहिए
Ranchi : जमशेदपुर स्थित साकची के टौगोर सोसाइटी हाई स्कूल में पिछले दिन खराब रिजल्ट की वजह से 83 बच्चों को स्कूल से निकालने के मामले ने न सिर्फ अभिभावक बल्कि शिक्षाविदों के समाने कई सवाल खड़े कर दिए हैं. सवाल बच्चों की शिक्षा का है. ऐसी स्थिति में हर हाल में उनकी पढ़ाई कैसे हो इस पर विचार करना जरुरी है. साथ ही ऐसी कार्रवाई पर बच्चों की मनस्थिति पर क्या प्रभाव पड़ेगा इस पर भी गंभीरता से सोचने की जरुरत है. मनौवैज्ञानिकों के अनुसार बच्चा जब 5 या 6 वर्ष का रहता है तभी उसकी जीवनशैली बन जाती है. 7 वर्ष के बाद उसमें विचार की विकास गति भी तीव्र हो जाती है. 12 साल की उम्र तक उनमें निर्णयात्मक तथा तार्किक बुद्धि बढ़ती है. साथ ही अनुभवों के अनुसार उनकी विचार वृत्तियां विकसित होती हैं. बच्चों में ध्यान केंद्रित करने, जानकारी याद रखने और उम्र बढ़ने के साथ अधिक गंभीर रूप से सोचने की क्षमता में विकास होता है. कहा जा सकता है कि यह उम्र काफी संवेदनशील होता है. ऐसे में उसके विरुद्ध किसी भी कार्रवाई से पहले बहुत सोच विचार करने की जरुरत होती है. शुभम संदेश की टीम ने विभिन्न जिलों के शिक्षाविदों, अभिभावकों से इस संदर्भ में बातचीत की है. जिसका सार यह है कि बच्चों को स्कूल से निकाला तो जाना ही नहीं चाहिए. बल्कि उसके आगे की पढ़ाई कैसे हो इस पर शिक्षक-अभिभावक को मिलकर विचार करना चाहिए. पेश है रिपोर्ट.
फीस के लिए बच्चों को परीक्षा से रोकना गलत : संजय कुमार
धनबाद के कोयलांचल पब्लिक स्कूल के प्राचार्य संजय कुमार ने कहा कि कक्षा बढ़ने के साथ ही सिलेबस टफ होता चला जाता है. ऐसे में स्कूल के साथ-साथ अभिभावकों की भी जिम्मेदारी है कि बच्चों पर ध्यान दें. जहां तक फीस के लिए बच्चों को स्कूल से निकालने या परीक्षा से रोकने की बात है, तो यह गलत है. स्कूल प्रबंधन को अपना दायित्व समझना होगा. यदि कोई बच्चा शरारत करता है, तो यह देखना होगा कि शरारत का स्तर क्या है.
अनुशासन का पाठ पढ़ाना स्कूल का दायित्व : डॉ. बी जगदीश राव
डॉ. जेके सिन्हा मेमोरियल इंटरनेशनल स्कूल, धनबाद के प्राचार्य डॉ. बी जगदीश राव का कहना है कि अनुशासन का पाठ पढ़ाना स्कूल का दायित्व है. वह कहते हैं कि कोविड काल के पहले और बाद के बच्चों की मानसिकता में काफी परिवर्तन आया है. विद्यार्थी पढ़ने में थोड़े कमजोर भी पड़े हैं. ऐसे में स्कूल प्रबंधन के साथ-साथ अभिभावकों की भी जिम्मेदारी बढ़ी है. लेकिन किसी बच्चे के फेल होने पर स्कूल से उसे टीसी दिया जाना सही नहीं है.
फीस के लिए पहले अभिभावक से बात करनी चाहिए : लखन महतो
विवेकानंद पब्लिक स्कूल रथटांड़ बाघमारा के प्राचार्य लखन प्रसाद महतो का कहना है कि उनके स्कूल में फीस के लिए बच्चों को परीक्षा में शामिल होने से नहीं रोका जाता है. फीस क़ो लेकर बच्चों के पेरेंट्स से बात की जाती है. उन्हें बच्चों की पढ़ाई के लिए समय पर फीस जमा करने को कहा जाता है. स्कूल का सामान क्षतिग्रस्त होने पर अभिभावकों से शिकायत की जाती है. लेकिन इसे लेकर बच्चों के खिलाफ कोई भी कार्रवाई उचित नहीं है.
किसी भी छात्र को स्कूल से निकाला जाना सही नहीं : रंगलाल महतो
घाटशिला प्राइम पब्लिक स्कूल, राजस्टेट के निदेशक रंगलाल महतो ने कहा कि निजी स्कूलों में बच्चों को फेल करना या फीस समय पर नहीं जमा कर पाने या छोटी-मोटी शरारत करने के कारण स्कूल से निकालना किसी भी दृष्टिकोण से सही नहीं है. यदि बच्चे स्कूल में फेल हो जाते हैं, तो बच्चों के साथ शिक्षक भी उतने ही जिम्मेदार होते हैं. यह अलग बात है कि अभिभावक अभी अपने बच्चों पर विशेष ध्यान दें कोई कमी हो तो विद्यालय से संपर्क कर बच्चे की उस कमी को दूर करना चाहिए.
अभिभावकों को समय पर जमा करना चाहिए स्कूल फीस: अनुश्वरी प्रधान
चक्रधरपुर के इंदिरा गांधी शिक्षा निकेतन स्कूल के प्राचार्य अनुश्वरी प्रधान का कहना है कि कोई भी स्कूल प्रबंधन बच्चों का स्कूल से नाम नहीं काटना चाहता है, लेकिन कुछ अभिभावक ऐसे भी होते हैं जो लगातार तीन-चार महीने तक फीस का भुगतान नहीं करते हैं.एक दो महीने अगर किसी कारणवश फीस जमा नहीं किया गया है और ऐसी स्थिति में अगर बच्चों का स्कूल से नाम काटा जा रहा है तो यह गलत है.इस दिशा में स्कूल प्रबंधन को सोचने की जरुरत है.
कोविड के बाद स्कूल और अभिभावक की जिम्मेदारी बढ़ी : सर्वेश कुमार सिंह
धनबाद के नूतनडीह निवासी सर्वेश कुमार सिंह ने कहा कि कोविड के बाद बदले हालात में स्कूल और अभिभावक दोनों की जिम्मेदारी बढ़ी है. दो वर्षों तक ऑफलाइन पढ़ाई से दूर रहे बच्चे शरारती हो गए हैं. उनपर ज्यादा ध्यान देना चाहिए. स्कूल प्रबंधन शिक्षा के साथ-साथ अनुशासन के लिए भी जिम्मेदार है.साथ ही अभिभावकों को भी अपने बच्चों पर ध्यान देने की जरुरत है. ताकि उनकी शिक्षा में कोई बाध न आए.
स्कूल फीस देने में कभी-कभार होती परेशानी : जगदीश चौहान
सिनीडीह नावागढ़ निवासी जगदीश चौहान बताते हैं कि स्कूल फीस को लेकर कभी-कभी परेशानी हो जाती है. जिस कारण फीस जमा करने में देरी हो जाती है. फीस क़ो लेकर स्कूल प्रबंधन हम अभिभावकों पर दवाब भी बनाता है. स्कूल प्रबंधन को भी सामाजिक जिम्मेदारी समझनी चाहिए. वैसे मेरा यह भी कहना है कि देर से फीस जमा होने या बच्चों के किसी शरारत पर स्कूल प्रबंधन की ओर से कुछ भी निर्णय से पहले अभिभावकों से बात करनी चाहिए.
कुछ शिक्षकों के कारण बच्चे हो रहे फेल : साकेत अग्रवाल
घाटशिला निवासी अभिभावक साकेत अग्रवाल ने कहा कि निजी विद्यालयों में जिस प्रकार से शिक्षकों का चयन किया जाता है, किसी भी मायने में वे शिक्षक कितना खरा उतरते हैं, यह विद्यालय प्रबंधन को देखना चाहिए. निजी विद्यालयों में शिक्षकों का मानदेय काफी कम होता है. जिसके कारण पढ़ाई की गुणवत्ता भी आमतौर पर खराब ही रहती है. ऐसे में स्कूल प्रबंधन को चाहिए कि वैसे शिक्षक का चयन करें जो बच्चों को बेहतर शिक्षा दे सके और उन्हें बेहतर मानदेय भी मिले.
छात्र फेल हुए हैं तो स्कूल प्रबंधन भी जिम्मेदार : जगदीश भगत
अभिभावक जगदीश भगत ने कहा कि निजी विद्यालयों में शिक्षा अधिकार अधिनियम का सही से पालन नहीं किए जाने के कारण स्थिति ऐसी बनती जा रही है. ऐसे विद्यालयों पर कार्रवाई होना चाहिए. विद्यालय प्रबंधन छात्र को स्कूल से नहीं निकाल सकता है. अगर छात्र फेल हुआ है तो स्कूल प्रबंधन भी जिम्मेदार है. जरूर विद्यालय कि शिक्षा पद्धति में कमी होगी या फिर शिक्षकों ने भी अपना दायित्व ठीक से नहीं निभाया होगा.
अभिभावकों के साथ विद्यालय प्रबंधन करे काउंसलिंग : संजय अग्रवाल
अभिभावक संजय अग्रवाल ने कहा कि आज कल तो निजी विद्यालयों का हाल ऐसा हो गया है जैसे ऊंची दुकान फीकी पकवान वाली कहावत को चरितार्थ करता है. स्कूलों को चाहिए कि कमजोर छात्रों के अभिभावकों के साथ बैठ कर काउंसलिंग करें. साथ ही वैसे बच्चों पर विद्यालय प्रबंधन अलग से कक्षाएं आयोजित कर उसे भी परीक्षा तक तैयार करें, ताकि बेहतर परिणाम दे सके.इस दिशा में स्कूल प्रबंधन को सोचने की जरुरत है.
फीस की वजह से बच्चों का नाम काटा जाना गलत: परमानंद झा
चक्रधरपुर के कॉन्सेप्ट पब्लिक स्कूल के प्राचार्य परमानंद झा ने कहा कि अगर कोई अभिभावक किसी कारणवश अपने बच्चें का समय पर फीस जमा नहीं कर पाते हैं तो ऐसी स्थिति में बच्चों का स्कूल से नाम काटा जाना गलत है. उन्होंने कहा कि ऐसी स्थिति में अभिभावक को बुलाकर बताया जाना चाहिए. वहीं अभिभावक का भी दायित्व बनता है कि समय पर स्कूल की फीस जमा करें. साथ ही अगर स्कूल में अगर कोई बच्चा फेल करता है तो इसमें अभिभावक व स्कूल प्रबंधन दोनों की जिम्मेवारी बनती है.
बच्चों को स्कूल से निकालना उचित नहीं : आर के रविकर
जमशेदपुर के बी.पी.एम हाई स्कूल के उप प्राचार्य आर के रविकर का कहना है कि आरटीई के नियमानुसार 8वीं में बच्चों को फेल करना गलत है.वहीं बच्चों को शरारत करने पर स्कूल से निकालना भी उचित नहीं है. इससे बच्चों का मनोबल टूटता है. इसके लिए बच्चों का काउंसिलिंग करना जरुरी है. स्कूल प्रबंधन द्वारा बच्चों को स्कूल से निकालना कहीं से न्यायोचित नहीं लगता. स्कूल प्रबंधन को बच्चों के अभिभावकों से बात करनी चाहिए.नियमानुसार स्कूल प्रबंधन द्वारा प्रत्येक माह में पैरेंट्स टीचर मीटिंग आयोजित करना चाहिए.
8वीं कक्षा में बच्चों फेल करना नियम विरुद्ध : मिथिलेश श्रीवास्तव
डेफोडिल्स स्कूल जमशेदपुर के प्राचार्य मिथिलेश श्रीवास्तव का कहना है किस 8वीं कक्षा में बच्चों को फेल करना नियम विरुद्ध है.इसके लिए स्कूल प्रबंधन दोषी है.साल भर पढ़ाने के बाद भी यदि बच्चे फेल हो रहे हैं. इसका अर्थ है कि स्कूल प्रबंधन द्वारा बच्चों पर ध्यान नहीं दिया गया.स्कूल प्रबंधन अपनी जिम्मेवारी से बच नहीं सकता.कोरोना काल में बच्चों का विकास अवरुद्ध हुआ है. इस बात को ध्यान में रखते हुए स्कूल प्रबंधन को बच्चों को पढ़ाने के तरीके में बदलाव करना चाहिए.
बच्चों के भविष्य के लिए प्रबंधन को अवसर देना चाहिए : चंद्रदीप पांडे
जमशेदपुर स्थित पीपूल्स एकेडमी के प्राचार्य चंद्रदीप पांडे का कहना है कि बच्चों के फेल होने के लिए स्कूल प्रबंधन दोषी है.बच्चों के भविष्य को देखते हुए उन्हें एक मौका देना चाहिए.बच्चों का रिजल्ट अचानक खराब हो गया ऐसा नहीं होता है. बच्चे यदि अर्द्धवार्षिक परीक्षा में फेल हुए हैं तो क्या स्कूल प्रबंधन द्वारा इसकी जानकारी उनके अभिभावकों दी गई.क्या कमजोर बच्चों के लिए कोई विशेष क्लास का आयोजन किया गया.यह भी देखना होगा कि बच्चों में पढ़ाई के प्रति रुचि बढ़ाने के लिए क्या और कितना प्रयास स्कूल प्रबंधन द्वारा किया गया.
बच्चे को स्कूल से निकालना गलत,री टेस्ट लें : नीता पांडे
रांची के कैंब्रियन स्कूल की प्रिंसिपल नीता पांडे का कहना है कि किसी भी बच्चे की दिक्कत जाने बिना, उसे स्कूल से निकाल देना बिलकुल गलत है. उन्होंने कहा कि बच्चे अगर फेल हो रहे हैं, तो उनका री टेस्ट होना चहिए, उन्हें क्लास प्रोवाइड कराना चहिए, उनके साथ ज्यादा से ज्यादा समय बिताना चहिए ताकि वह अपनी दिक्कत शिक्षक या फिर अपने पैरेंट्स के साथ शेयर कर सके. नीता पांडे ने कहा कि स्कूल फीस के लिए बच्चे को स्कूल से बाहर करना तो अपराध है.
बच्चों को प्यार से समझाने की जरूरत है : आनंद अग्रवाल
अभिभावक आनंद अग्रवाल ने कहा कि फेल या बदमाशी करने पर बच्चों को स्कूल से निकालना गलत है. उन्हें प्यार से समझाना चाहिए. साथ ही उनकी शिक्षा दीक्षा इस तरह होनी चाहिए कि वे एक अच्छा नागरिक बने और अच्छे समाज का निर्माण हो सके. बच्चों को उनकी कमियों के कारण स्कूल से निकालने से उनका मनोबल गिरता है. साथ ही उनके आगे की पढ़ाई भी ठीक नहीं होती है. इसलिए स्कूल का प्रयास यह होना चाहिए कि बच्चा आगे की पढ़ाई कर सके.
शिक्षा मौलिक अधिकार है, छात्रों को परेशान करना गलत: संध्या तिवारी
चक्रधरपुर की अभिभावक संध्या तिवारी ने कहा कि मेरे दो बच्चें प्राइवेट स्कूल में पढ़ाई करते हैं. उन्होंने कहा कि शिक्षा बच्चों का मौलिक अधिकार है, अगर फीस के नाम पर बच्चों को स्कूल में तंग किया जाता है तो यह गलत है. फीस जमा करना अभिभावकों की जिम्मेवारी होती है, कभी किसी कारणवश ही कोई अभिभावक फीस जमा नहीं कर पाता है. वरना कोई अभिभावक नहीं चाहता कि उसके बच्चें की फीस समय पर जमा न हो.
प्राइवेट स्कूलों ने व्यवासाय का रुप अपनाया: मीता अधिकारी
चक्रधरपुर निवासी मीता अधिकार ने कहा कि प्राइवेट स्कूलों ने वर्तमान समय में व्यवसाय का रुप अपना लिया है. कई स्कूलों से ही तय दर पर ड्रेस, किताब इत्यादि जबरन अभिभावकों को बेचे जाते हैं. साथ ही अगर एक महीने की फीस देने में विलंब हो जाएं तो इसे लेकर बच्चों को माध्यम से अभिभावकों को नोटिस भेज दिया जाता है, एक स्कूल में बड़ी संख्या में बच्चें पढ़ाई करते हैं अगर कोई अभिभावक समय पर फीस जमा नहीं कर पा रहे तो उन्हें तंग नहीं किया जाना चाहिए.
बच्चों को बेहतर शिक्षा देना स्कूल की जवाबदेही: विपलव कुमार
चक्रधरपुर निवासी अभिभावक विपलव कुमार ने कहा कि स्कूल प्रबंधन की जवाबदेही होनी चाहिए कि बच्चों को बेहतर शिक्षा मिल सकें. अगर बच्चें स्कूल में खराब रिजल्ट कर रहें तो इसकी जिम्मेदार स्कूल प्रबंधन भी है. साथ ही अभिभावकों का भी कर्तव्य बनता है कि अपने बच्चों की पढ़ाई पर ध्यान दें. कई अभिभावक अपने बच्चों का स्कूलों में नामांकन कराकर भूल जाते हैं. ऐसा नहीं होना चाहिए. अभिभावकों को भी अपने बच्चों पर ध्यान देने की जरुरत है.
बच्चों के भविष्य के साथ न किया जाएं खिलवाड़: अंजू देवी
चक्रधरपुर निवासी अंजू देवी ने कहा कि बच्चों के भविष्य के साथ खिलवाड़ नहीं किया जाना चाहिए. बच्चों को स्कूल में गुणवत्तापूर्ण शिक्षा मिलें. बच्चें अगर स्कूल में शरारत करते हैं तो बच्चों को प्यार से समझाया जाना चाहिए, न कि बच्चों का नाम काटकर स्कूल से ही निकाल दिया जाएं. अगर किसी बच्चें का फीस समय पर जमा नहीं होता है तो इस बारे में अभिभावक को बुलाकर बात करनी चाहिए, लेकिन कुछ स्कूल प्रबंधन अड़ियन रवैया अपनाकर बच्चों का स्कूल से नाम काट देते हैं.
बिना वार्निंग के बच्चों को नहीं निकाला जाता : किरण द्वेवेदी
रांची के विवेकानंद विद्या मंदिर की प्रिंसिपल किरण द्वेवेदी का कहना है कि कोरोना काल के कारण बच्चों के मानसिक सोच पर काफी असर पड़ा है. उन्होंने पूरे दो साल यू हीं बैठ कर और सोशल मीडिया पर गुजार कर निकाल दिया. किसी भी स्कूल में बिना वार्निंग के बच्चों को नहीं निकाला जाता. उन्होंने कहा कि शिक्षक और स्कूल के साथ साथ बच्चों के पैरेंट्स को इस बात का खास खयाल रखना जरूरी है, कि बच्चे अपने फ्री टाइम में क्या कर रहे हैं.
प्रबंधक को री एग्जाम की व्यवस्था करनी चाहिए : प्रवीण राजगढ़िया
रामगढ़ के श्री अग्रसेन स्कूल भुरकुंडा के निदेशक प्रवीण राजगढ़िया कहते हैं कि इतनी ज्यादा संख्या में फेल हुए बच्चों के लिए स्कूल प्रबंधक को री एग्जाम की व्यवस्था करनी चाहिए. यह बच्चों के भविष्य की बात है. इससे बच्चों का एक वर्ष बर्बाद हो जाएगा. स्कूल प्रबंधक को अपने खुद के सिस्टम पर एनालिसिस करना चाहिए कि आखिर इतनी बड़ी संख्या में बच्चे फेल कैसे हो गए. इसलिए स्कूल प्रबंधक द्वारा उठाया गया यह कदम कहीं से भी जायज नहीं है.
फेल होना विद्यालय की व्यवस्था पर प्रश्न चिह्न खड़ा करता है : डॉ उर्मिला सिंह
रामगढ़ के स्कूल प्राचार्य सह क्षेत्रीय अधिकारी डीएवी झारखंड जोन डी की डॉ. उर्मिला सिंह कहती है कि बच्चे का फेल होना विद्यालय की व्यवस्था पर प्रश्नचिह्न खड़ा करता है. फेल हुए बच्चे अगर एक या दो विषयों पर फेल हैं तो स्कूल प्रबंधक को री एग्जाम की व्यवस्था करनी चाहिए. जैसा हमलोग करते हैं और यदि बच्चे एग्जाम में निकल जाते हैं या जिसे देखकर ऐसा लगता है कि यह आगे कोशिश कर सकता है तो उस बच्चे को प्रमोट करते हैं.
फेल या शरारत पर स्कूल से बाहर निकलना उचित नहीं : सुजीत कुमार
सुजीत कुमार शर्मा, प्रिंसिपल, डीएवी पब्लिक स्कूल स्वांग का कहना है कि फेल होने या बच्चों के शरारत करने पर उसे स्कूल से बाहर निकलना उचित नहीं है. यदि बच्चे फेल हो गए हैं तो उन्हें अवसर देना चाहिए. बच्चों को स्कूल से बाहर करने पर उनके मानस पटल पर बुरी छवि बनेगी और अपराध बोध में रास्ता भटक सकते हैं. स्कूल व अभिभावकों के बीच संवाद होना ज़रूरी है. प्रशासन को भी सार्थक पहल करने की ज़रूरत है.
बच्चों को उनके सिलेबस के अनुकूल वाले स्कूल में भेजा जाए :मनोज कुमार
मनोज कुमार उपाध्याय प्रिंसिपल, पिट्स मॉडर्न स्कूल गोमिया का कहना है कि यदि बच्चे लगातार एक ही वर्ग में फेल हो रहे हैं तो वैसे बच्चों को दूसरे स्कूल में भेजा जा सकता है, जिस स्कूल का सिलेबस उनके अनुकूल हो. कभी-कभी बच्चे को सिलेबस के अनुसार पढाई पूरी नहीं कर पाते हैं. उन बच्चों को हल्के सिलेबस वाले स्कूल में नामांकन कराना चाहिए. ताकि उनके आगे की पढाई ठीक से हो सके.
बच्चों की वास्तविक स्थिति से अवगत होना चाहिए : गीतिका प्रसाद
जमशेदपुर के रहने वाले अभिभावक गीतिका प्रसाद का कहना है कि बच्चों की वास्तविक स्थिति से स्कूल प्रबंधन को हमें अवगत कराना चाहिए.बच्चों के फेल होने पर बच्चों को स्कूल से निकालना स्कूल प्रबंधन की दादागिरी है.सवाल तो यह है कि स्कूल द्वारा वर्ष भर बच्चों को क्या पढ़ाया गया कि बच्चें फेल हो गए.क्यों नहीं बच्चों पर ध्यान दिया गया. अभिभावक बच्चों के भविष्य को लिए स्कूल की फीस के अलावा अतिरिक्त डिमांड पूरा करते रहते हैं.
स्कूल प्रबंधन को शिक्षा से ज्यादा फीस पर ध्यान रहता है : संतोष ठाकुर
जमशेदपुर के रहने वाले अभिभावक संतोष ठाकुर का कहना है कि निजी स्कूल का पूरा ध्यान फीस पर रहता है. बिना किसी सूचना के प्रत्येक वर्ष फीस में वृद्धि कर दी जाती है. शिक्षा के स्तर में कोई सुधार नहीं, बस फीस कैसे वसूला जाए यही निजी स्कूल प्रबंधन का एक मात्र काम है.अभिभावकों की बातों की कहीं कोई सुनवाई नहीं होती है. सरकार भी निजी स्कूल पर अंकुश लगाने में विफल रही है. स्कूल प्रबंधन अभिभावकों की मजबूरी सुनने को तैयार नहीं.
बच्चों को स्कूल से निकाला जाना गलत है : डॉ. युगल किशोर
चाईबासा निवासी डॉ. युगल किशोर का कहना है कि किसी गलती की सजा को लेकर यदि बच्चे को स्कूल के प्रबंधन के द्वारा स्कूल से निकाल दिया तो यह सर्वथा गलत है. इसलिए स्कूल प्रबंधन को किसी भी बच्चे को निकालने के पहले काफी सोच विचार कर लेना चाहिए. अभिभावक श्याम सोनकर ने कहा कि स्कूल के द्वारा इस तरह का कोई भी कदम बच्चे के मानसिक विकास को और अवरूद्ध करेगा. इसलिए बच्चे को स्कूल से नहीं निकालना चाहिए.
कदम उठाने से पहले अभिभावकों को सूचित करना चाहिए : कानू दास
चाईबासा में दुकान चलाने वाले कानू दास ने बताया कि स्कूल प्रबंधन को बच्चों के प्रति किसी भी कदम को उठाने के पहले उसकी अच्छी और बुरी आदतों को उनके अभिभावकों को जरूर सूचित करना चाहिए. यदि बच्चे को किसी कारणवश स्कूल से निकाला जाता है तो यह एक गलत कदम होगा. इसलिए ऐसा कोई भी कदम न उठाया जाए जिसका मानसिक प्रभाव बच्चा और अभिभावक दोनों पर पड़े.
मनमानी ठीक नहीं, छात्रों पर ध्यान की जरुरत : राजेन्द्र बालमुचू
चाईबासा निवासी राजेन्द्र बालमुचू का कहना है कि स्कूल कभी-कभी अपनी मनमानी पर उतर जाते हैं जो कि गलत है. बच्चे से ही स्कूल की पहचान होती है. स्कूल प्रबंधन के इस तरह के कदम से समाज में उसे स्कूल की छवि खराब होगी. इसका स्कूल को मनमानी नहीं करना चाहिए. स्कूल प्रबंधन को इस ओर ध्यान देने की जरुरत है. किसी भी बच्चे को फेल होने या शरारत करने पर स्कूल से निकालने की कार्रवाई को ठीक नहीं कहा जा सकता है.
बच्चों को स्कूल से निकालना गैर जिम्मेदार रवैया है : दामोदर पांडेय
दामोदर पांडेय, प्रिंसिपल, गोमिया इंटर कालेज स्वांग का कहना है कि शरारत या फेल होने पर बच्चों को स्कूलों से बाहर निकालना निजी स्कूलों की गैर जिम्मेदार रवैये और हठधर्मिता को दर्शाता है. ऐसा कर स्कूल अपनी जिम्मेवारियों से पीछे भागते हैं. बच्चों को को मौका दिया जाना चाहिए. स्कूल प्रबंधन को अपना दृष्टिकोण व्यापक और समावेशी बनाना चाहिए.क्योंकि लोग बच्चों के स्कूल में पढ़ाई के लिए भेजते हैं. उसका ख्याल रखा जाना चाहिए.
बच्चे फेल हो रहे हों तो उसका हल निकालना चाहिए : गीता भारती
गीता भारती, प्राचार्य, रुक्मिणी देवी पब्लिक स्कूल फुसरो का कहना है कि विद्यार्थियों को स्कूल से बहार किया जाना उचित नहीं है. बच्चे स्कूल में पढ़ने आते हैं. यदि वे फेल हो रहे हैं तो उन कारणों का हल निकालना चाहिए. बच्चों को बाहर करना समस्या का समाधान नहीं है. स्कूल अपने कर्तव्य से मुंह नहीं मोड़ सकता. इसलिए स्कूल को इन बच्चों के लिए सोचने की जरुरत है. उनके लिए अतिरिक्त कक्षाओं की व्यवस्था करनी चाहिए.
फेल होने पर बच्चों को स्कूल से निकालना ठीक नहीं : संजय कुमार
हजारीबाग के बीपीएस मेमोरियल स्कूल अमृतनगर के प्राचार्य संजय कुमार ने कहा बच्चे अगर फेल करते हैं तो उन्हें स्कूल से निकालना गलत है. जो बच्चे कमजोर हैं, उन पर विशेष ध्यान रखकर उन्हें पढ़ाना चाहिए ताकि उनके फेल होने की नौबत ही नहीं आए. फीस जमा न करने पर बच्चों को स्कूल से निकालना गलत है. हालांकि अभिभावकों को भी चाहिए कि वक्त पर शुल्क जमा कर दें. चूंकि उसी राशि से शिक्षक, कर्मचारी आदि का वेतन भुगतान किया जाता है.
बच्चों पर ध्यान देना स्कूल की जिम्मेवारी है : मिंकू कुमार
आरसी मिशन रेसिडेंसियल स्कूल हजारीबाग के प्राचार्य ने कहा कि बच्चों पर ध्यान देना स्कूल की जिम्मेवारी है. फीस को लेकर बच्चे को स्कूल से हटाना या उनकी परीक्षा बाधित करना उचित नहीं है. बच्चों के भविष्य का सवाल है. फीस को लेकर अभिभावकों को समझाने की आवश्यकता है. अगर वास्तव में समस्या है, तो बकाए शुल्क पर विद्यालय प्रबंधन को रियायत देनी चाहिए. अभिभावकों को भी विद्यालय की समस्या को समझने की आवश्यकता है और अनावश्यक फीस बकाया न रखें.
बच्चों को ऐसी शिक्षा दें कि वह फेल नहीं हों : मनोज कुमार
सरस्वती विद्या मंदिर बाबूगांव कोर्रा, हजारीबाग के प्राचार्य मनोज कुमार ने कहा कि बच्चों को बेहतर शिक्षा दें, वह फेल ही नहीं होंगे. छोटी-मोटी शरारत या बकाए फीस को लेकर बच्चे को विद्यालय से निष्कासित करना अनुचित है. उन्होंने कहा कि बच्चे नादान होते हैं, अक्सर छोटी-मोटी गलतियां कर बैठते हैं. ऐसे में उन्हें समझाने की आवश्यकता है. फेल होने पर छात्रों को निकालना कहीं से भी उचित नहीं है.
यह सही नहीं कि फेल होने पर उसे निकाल दिया जाए : मनीषा पॉल
रांची के हिनू की रहने वाली अभिभावक मनीषा पॉल ने इस संबंध में कहा कि उनकी बेटी अभी कक्षा पांच की छात्रा है. वह पूरे दिन उसका ख्याल रखती है. बेटी ने स्कूल में क्या पढ़ा, क्या होम वर्क मिला, सब देखती है. उन्होंने कहा कि सभी अभिभावक को अपने बच्चे के कोई थोडा समय निकालना जरुरी है. बच्चें स्कूल में सिर्फ छह से सात घंटे रहते हैं. स्कूल में उन्हें गाइडेंस दी जाती है. पर असल में पढ़ाई घर में मां और पिता के सामने ही होती है.
पैरेंट्स अपने बच्चे के साथ कनेक्ट नहीं कर पा रहे हैं : स्वाति सिन्हा
रांची के अशोक नगर की रहने वाली स्वाति सिन्हा का कहना है कि वह एक ट्यूशन टीचर और दो बच्चों की मां भी हैं. उन्होंने कहा कि आज के दौर में पैरेंट्स अपने बच्चे के साथ कनेक्ट नहीं कर पा रहे हैं. या तो वे अपने काम में व्यस्त हैं या फिर वे अपने बच्चों को स्पेस देना चाहते हैं. जिसके कारण बच्चे अपना अच्छा बुरा सोच नहीं पा रहे हैं. उन्होंने कहा कि इसे सिर्फ स्कूल की गलती नहीं कहा जा सकता है. स्कूल को वार्निंग देना जरूरी है. बच्चों को स्कूल से निकाल देना गलत है.
छात्रों को स्कूल से निकाल देने की घटना निंदनीय : रंजीत कुमार
लातेहार निवासी अभिभावक रंजीत कुमार ने कहा कि विद्यालय में शरारत करने या फिर फेल हो जाने पर विद्यालय से निकाल देना सरासर गलत है. बच्चे तो शरारती होते ही हैं, लेकिन उनकी शरारत इतनी बड़ी नहीं होती कि उन्हें स्कूल से निकाल दिया जाये. आज कल तो फीस जमा नहीं करने पर स्कूल से निकाल दिया जाता है. यह घटना निंदनीय है. सरकार को इस पर संज्ञान लेना चाहिए कि भविष्य में ऐसा नहीं हो. स्कूल से निकाले जाने पर बच्चों की दिमागी हालत खराब हो सकती है.
स्कूल प्रबंधन को संवेदनशील होना चाहिए: पंकज कुमार
लातेहार के रहने वाले अभिभावक पंकज कुमार कहते हैं कि ऐसे मामलों में स्कूल प्रबंधन को संवेदनशील होना चाहिए. तुरंत किसी को स्कूल से निकालने जैसा कदम उठाना छात्र व अभिभावक दोनों के लिए घातक हो सकता है. ऐसे विद्यालयों पर कार्रवाई होनी चाहिए. स्कूलों को चाहिए कि ऐसे कमजोर छात्रों के अभिभावकों के साथ बैठ कर काउंसलिंग करें. साथ ही उस छात्र के आगे की पढ़ाई कैसे हो इसपर सोचने की जरुरत है.
सुधारने के लिए ही बच्चों को भेजा जाता है स्कूल : प्रतिमा कुमारी
शिवदयालनगर हजारीबाग के रहने वाली बच्चे की माता प्रतिमा कुमारी का कहना है कि हम लोग बच्चे को स्कूल इसलिए भेजते हैं कि हमारा बच्चे में कोई कमी है, तो स्कूल उसे सुधार सके, न कि उसे मानसिक प्रताड़ना दे. बच्चे के अभिभावक चाहते हैं कि समय से फीस जमा कर दें, पर कभी-कभी कुछ परेशानी आ जाती है, जिसके चलते फिर फीस जमा करने में विलंब हो जाती है. जिसके लिए स्कूल प्रबंधन बच्चों को मानसिक प्रताड़ना नहीं दे सकता है. यह कानूनन अपराध की श्रेणी में आता है.
बच्चों को निकालने से गलत प्रभाव पड़ता है : ज्ञानेश्वर दयाल
सर माउंट पब्लिक स्कूल हजारीबाग के प्राचार्य ज्ञानेश्वर दयाल ने कहा कि फेल होने पर बच्चों को स्कूल से निकालना उचित नहीं है. इससे बच्चों पर गलत प्रभाव पड़ता है. फीस नहीं जमा करने पर स्कूल प्रबंधक को अभिभावक से बात करनी चाहिए कि क्या परेशानी है. बच्चे को मानसिक रूप से प्रताड़ित नहीं करना चाहिए. सरकार का भी सख्त निर्देश है कि स्कूल की फीस जमा नहीं करने पर बच्चों को पढ़ाई या परीक्षा से वंचित नहीं कर सकते हैं.
बच्चों को स्कूल से निकालना जायज नहीं : दीपा कुमारी बेसरा
चांडिल से ईचागढ़ प्रखंड के गौरांगकोचा स्थित डीएवीएम स्कूल की प्राचार्या दीपा कुमारी बेसरा का कहना है कि बच्चों के फेल करने या फीस समय पर नहीं जमा कर पाने या छोटी-मोटी शरारत करने पर बच्चों को स्कूल से निकालना किसी भी प्रकार से जायज नहीं है. शिक्षक और अभिभावकों की गलतियों की सजा बच्चों को नहीं मिलनी चाहिए. बच्चे देश के भविष्य होते हैं, स्कूल प्रबंधन की ओर से उनका उत्साह बढ़ाया जाना चाहिए.
बच्चों को स्कूल से निकालना उचित नहीं : रामअवतार अग्रवाल
चाईबासा से एक निजी स्कूल के निदेशक रामअवतार अग्रवाल ने कहा कि किसी गलती के कारण या अन्य कारणों से बच्चों को स्कूल से निकाला जाना किसी भी दृष्टि से उचित नहीं है. इसका प्रभाव बच्चों की मनोस्थिति पर ज्यादा पड़ता है. इसलिए यह होना चाहिए कि बच्चों के बजाय उनके अभिभावकों को बुलाकर सारी स्थितियों से अवगत कराया जाए, ताकि वह समझे और एक सकारात्मक कदम उठाएं.
बच्चों पर कार्रवाई उनके करियर को प्रभावित करता है : मीतू मिश्रा
हजारीबाग के ओकनी निवासी बच्चे की मां मीतू मिश्रा का कहना है कि छोटे बच्चे शरारत तो करेंगे ही. अगर स्कूल किसी प्रकार की कार्रवाई करता है, तो इससे बच्चों को करियर प्रभावित होता है. समय पर फीस जमा नहीं करने अथवा बच्चों के फेल करने पर उन्हें स्कूल से निकालना बेहद गलत कदम है. कोई बच्चा पढ़ाई में कमजोर है, तो यह स्कूल की जिम्मेवारी बनती है कि उसमें सुधार करे.
बच्चे को स्कूल से निकालना समाधान नहीं : रूपेश कुमार
हजारीबाग के रहने वाले अभिभावक रूपेश कुमार दास कहते हैं कि बच्चे फेल हो रहे, तो पूरी तरह स्कूल जिम्मेवार है. बच्चे का ज्यादातर वक्त स्कूल में गुजरता है. बच्चे पैरेंट्स से ज्यादा शिक्षक पर भरोसा करते हैं. ऐसे में बच्चों के प्रति शिक्षक की बड़ी जिम्मेवारी बनती है. अगर बच्चा फेल हो रहा है, तो कहीं-न-कहीं शिक्षक फेल्योर हैं. स्कूल प्रबंधन बच्चे को स्कूल से निकालकर इस तरह पल्ला नहीं झाड़ सकता है.
बच्चों को निकालना, उनके भविष्य के साथ खिलवाड़ : निधि सिन्हा
नुरा हजारीबाग निवासी एक बच्ची की मां निधि सिन्हा कहती हैं कि फेल होने पर बच्चों को स्कूल से निकालना, उनके भविष्य से खिलवाड़ है. स्कूल अपनी गलतियों को बच्चों के माथे पर थोप कर नहीं बच सकता. स्कूल से निकालना बच्चों के लिए काफी बड़ी सजा है. इससे बच्चों का मन-मस्तिष्क और मनोबल प्रभावित होता है. बच्चे हताश हो जाते हैं. कोई अभिभावक नहीं चाहता है कि बच्चे की फीस वक्त पर जमा नहीं हो.
कार्रवाई से बच्चों की मनोदशा होती है प्रभावित : संजय शर्मा
चाईबासा से संजय शर्मा, अभिभावक, चेकपोस्ट, चास का कहना है कि स्कूलों की परीक्षा जिंदगी का इम्तेहान नहीं है. इसमें फेल होने पर उन्हें और अधिक मेहनत करने के अवसर देना चाहिए. उन्हें विद्यालय से टीसी देकर निकाल देने से उनकी मनोदशा पर बेहद नकारात्मक प्रभाव पड़ता है. ऐसे में ही बच्चे कभी-कभी गलत कदम उठा लेते हैं. विद्यालय धनोपार्जन का अपना एकसूत्री लक्ष्य छोड़ शिक्षा और सामाजिक उत्थान के साथ-साथ भविष्य-निर्माण पर भी ध्यान दे. इस दिशा में सभी स्कूल प्रबंधनों को सोचने की जरुरत है. किसी छात्र के फेल हो जाने या समय पर फीस जमा नहीं होने की स्थिति में उसे स्कूल से निकालने की कार्रवाई को किसी भी स्थिति में सही नहीं कहा जा सकता है.
अब निजी स्कूल धन उगाही के माध्यम बन गये हैं : दीपक कुमार
जमशेदपुर से अभिभावक दीपक कुमार का कहना है कि निजी अंग्रेजी स्कूल विशुद्ध रुप से धन उगाही का माध्यम बन गए हैं. बच्चों के पठन-पाठन की सामग्री अभिभावकों को स्कूल द्वारा निर्धारित दुकान से लेनी पड़ती है. जबकि वहीं सामान बाजार में कम कीमत पर उपलब्ध है. उदाहरण के तौर पर बच्चों के लिए कॉपी स्कूल द्वारा निर्धारित दुकान में बाजार भाव से पांच से दस रुपया अधिक में मिलती है, अभिभावकों पर स्कूल प्रबंधन का दबाव रहता है कि कॉपी स्कूल से ही खरीदना है. यही बात स्कूल ड्रेस के संबंध में लागू होता है. उच्चतम न्यायालय द्वारा सभी निजी स्कूलों को अपने पाठ्यक्रम में एनसीईआरटी की पुस्तकों को लागू करने का आदेश दिया गया था, लेकिन उच्चतम न्यायालय के आदेश को भी निजी स्कूल प्रबंधन द्वारा ठेंगा दिखाकर प्राइवेट प्रकाशकों की पुस्तक को पाठ्यक्रम में शामिल कर पढ़ाई कराई जाती है.
अभिभावकों का शोषण कर रहे निजी स्कूल : पं. योगेन्द्र मिश्रा
चाईबासा से पं. योगेन्द्र मिश्रा, अभिभावक, तारानगर, चास कहते हैं कि बोकारो ही नहीं, पूरे झारखंड में निजी स्कूल अभिभावकों का महज शोषण करने में लगे हैं. बच्चों के शैक्षणिक, मानसिक और सर्वांगीण विकास से ज्यादा भांति-भांति के शुल्क के नाम पर शोषण करना और परीक्षा में फेल होने पर स्कूल से निकाल देना किसी भी स्थिति में सही नहीं है. इसलिए स्कूल प्रबंधन को इस दिशा मेें सोचने की जरुरत है.
इसके लिए स्कूल प्रबंधन भी जिम्मेदार है : राखी जायसवाल
घाटशिला की रहने वाली अभिभावक राखी जायसवाल का कहाना है कि यदि बच्चे स्कूल में फेल करते हैं, तो इसके लिए स्कूल प्रबंधन भी उतना ही जिम्मेदार है जितना अभिभावक एवं बच्चे. विद्यालय प्रबंधन, शिक्षक तथा अभिभावक की जिम्मेवारी बनती है कि बच्चों का इस तरह से मानसिक और बौद्धिक विकास किया जाए कि ऐसी स्थिति से किसी को सामना ही नहीं करना पड़े.इस दिशा में हर स्कूल प्रबंधन को सोचने की जरुरत है.