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साहिबगंज का तेलियागढ़ी किला बना खंडहर, इतिहास के पन्नों में गुम हो रहा 'बंगाल का प्रवेश द्वार'

Sahibganj : साहिबगंज जिले का मंडरो प्रखंड अपने समृद्ध इतिहास के लिए जाना जाता है. यह जिला न केवल एक प्रमुख पर्यटक स्थल के रूप में विकसित हो सकता है, बल्कि इससे सरकार के राजस्व में भी भारी वृद्धि हो सकती है.राजा-महाराजाओं और अंग्रेजों के इस पसंदीदा जिले में बहुत कुछ है. हम बात कर रहे हैं यहां के तेलियागढ़ी किला की, जिसे बंगाल का प्रवेश द्वार कहा जाता था. यह प्राचीन किला अब ढहने लगा है. यह किला साहिबगंज जिला मुख्यालय से 7-8 किलोमीटर दूर रक्सीस्थान धाम के निकट करमटोला पहाड़ी की तलहटी में स्थित है. तेलियागढ़ी किले का इतिहास मौर्य काल से मिलता है. चंद्रगुप्त मौर्य के शासनकाल में यवन राजदूत मेगास्थनीज ने अपनी पुस्तक `इंडिका` में गंगा नदी से सटी पहाड़ी पर काले पत्थरों से निर्मित बड़े बौद्ध विहार का उल्लेख किया है. हर्षवर्धन के समय में इस क्षेत्र से गुजरे चीनी यात्री ह्वेनसांग ने भी तेलियागढ़ी किले का उल्लेख किया है.16वीं सदी में भारत आए ईरानी यात्री अब्दुल लतीफ और 18वीं सदी में फ्रांसीसी यात्री बुकानन ने अपनी रचनाओं में इसका जिक्र किया है. किले से जुड़े इतिहास के कई और भी पन्ने हैं. यह किला करीब एक किलोमीटर क्षेत्र में फैला हुआ था. किले की विशेषता यह है कि इसके 500 मीटर पूर्व-पश्चिम में स्थित अवशेषों को देखकर लगता है कि यह किला काफी लंबा और चौड़ा था. किले की तत्कालीन लंबाई और चौड़ाई का अनुमान किले से पूर्व करीब 500 मीटर दूरी पर स्थित मध्यकालीन दीवारों को देखकर लगाया जा सकता है. किले से पश्चिम-दक्षिण स्थान पर सिमरतला झील में नौकाओं के लंगर डालने का स्थान भी इस बात का प्रमाण है कि यह किला करीब 1 किलोमीटर के क्षेत्र में फैला हुआ था.करमटोला रेलवे स्टेशन से पश्चिम एक टीले पर बने पुराने समय के रेल सिग्नल घर के नीचे झलकती मध्यकालीन दीवारों से भी इसके फैलाव का प्रमाण मिलता है. किले में एक बड़े हॉल, पश्चिम में मस्जिद, स्नानागार और अन्य अवशेष अभी भी स्पष्ट हैं. अगर सरकार इस पर ध्यान दे तो यह किला बड़ा पर्यटक स्थल बन सकता है. यह भी पढ़ें : केंद्र">https://lagatar.in/central-governments-affidavit-in-sc-guilty-leaders-cannot-be-banned-for-life-from-contesting-elections/">केंद्र

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