Sri Nivas
एक स्वीकारोक्ति !
एक लंबे समय तक यहूदी समुदाय और उनके देश इजराइल के प्रति मेरे मन में सहानुभूति और सम्मान का भाव रहा !
सहानुभूति इसलिए कि जर्मनी सहित अनेक यूरोपीय देशों में यहूदियों को यातना झेलनी पड़ी, अपमानित किया गया. इजराइल बसाये जाने का पूरा डिटेल नहीं मालूम था, इसलिए तब यही दिखता था कि पड़ोसी (मुस्लिम) देश उसके प्रति शत्रुता का भाव रखते हैं.
एक छोटा-सा इजराइल अपनी सुरक्षा के प्रति अतिरिक्त सतर्क रहता है, आतंकवादियों की शर्तें नहीं मानता. अपने शत्रुओं को खोज कर, दूसरे देशों में घुस कर उनकी हत्या करने का जो जोखिम भरा दुस्साहस करता रहा, उस कारण भी प्रशंसा का भाव रहा.
सत्तर के दशक में पता चला कि इजराइल के अंदर एक तरह का कम्यून सिस्टम स्थापित किया गया था, जिसमें समानता और समाजवादी मूल्य निहित थे. यह भी लुभावना लगता था.
इसके अलावा यहूदी कौम ने कुछ विलक्षण और सफल प्रतिभाओं के जन्म दिया है, लेखन, विज्ञान, कला और दर्शन के क्षेत्र में. मेरी जानकारी सीमित है, फिर भी चंद नाम- काफ्का (लेखक), मार्क्स, आइन्स्टाइन, फ्रायड, मार्क जुकरबर्ग, स्टीवन स्पीलबर्ग (प्रसिद्ध फिल्म निर्माता), स्पिनोजा (दार्शनिक, नास्तिक), कास्पारोव (शतरंज) और आर्थर मिलर.
इजराइल में जीवंत प्रजातंत्र का होना भी आकर्षित करता था.
एक बार सत्ता पक्ष को महज एक वोट की बढ़त थी, लेकिन वह सरकार पूरे पांच वर्ष चली! यानी सत्ता पक्ष का कोई सांसद किसी लोभ और स्वार्थ में नहीं पड़ा या शायद ऐसा प्रयास भी नहीं किया गया!
दुनिया में पहली निर्वाचित महिला शासनाध्यक्ष- गोल्डा मायर- इजराइल में बनीं. किसी की पत्नी या बेटी होने के कारण नहीं, अपने दम पर बनी राजनेता थीं! तो लगता था कि यहूदियों में कुछ बात तो है और इजराइल में भी !
कुछ वर्ष पहले तक इस बात को ठीक से नहीं जान सका था कि फिलस्तीनीयों के साथ इजराइल कैसा सलूक करता रहा है. इस कारण एक बार ‘इजराइल की जिजीविषा और उसके मुसलिम पड़ोसियों की जिद’ शीर्षक से एक छोटा-सा आर्टिकल भी लिखा था.
मगर आज इस समुदाय और इजराइल का जो दानवी चेहरा दिखा है, वह तो अकल्पनीय है! अब जान गया हूं कि इजराइल कैसे फिलिस्तीन के एक जीवंत कौम और सभ्यता को तिल तिल कर खत्म करने का काम करता रहा है. अचरज की बात यह कि जो कौम खुद नस्ली घृणा का शिकार हुआ, आज वह नस्ल और मजहब के नाम पर नाजियों की क्रूरता को मात देता नजर आ रहा है!
बेशक इजराइल के सभी नागरिक नेतनयाहू जो कर रहा है, उससे सहमत नहीं होंगे, उसके खिलाफ आंदोलन चलता भी रहा है ! फिर भी नेतनयाहू को इजराइल के लोगों ने चुना है, तो उसके कुकृत्य की जवाबदेही उन पर भी आयेगी ही. उसकी बेशर्मी और उसका दुस्साहस देखिये कि खुलेआम कह रहा है कि ईरान के राष्ट्रपति खामेनेई की हत्या करना हमारा लक्ष्य है !और ट्रंप उसके साथ है, जो पूरी दुनिया को अपनी मिल्कियत समझने लगा है!
अमेरिका में भी ट्रंप के विरोधी हैं, मगर अमेरिका का बहुमत ट्रम्प के साथ तो है ही. इसलिए ट्रम्प की सनक ने आज दुनिया को जिस महायुद्ध की कगार पर ला खड़ा किया है, उसके लिए अमेरिकी जनता को जवाबदेह माना ही जायेगा !
शर्मिंदा हूं कि मैं इजराइल को इतने दिनों तक नहीं पहचान सका! मेरे खयाल से मेरे जैसे और भी होंगे. मुझे इस स्वीकारोक्ति को सार्वजनिक करना जरूरी लगा.