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अधूरी रह गई कोयल नदी पर रबर डैम बनाने की घोषणा

Palamu :   मेदिनीनगर वासियों के लिए कोयल नदी पर रबर डैम निर्माण की योजना अब अधूरी घोषणा बनकर रह गई है. वर्ष 2023 में स्वतंत्रता दिवस के मौके पर तत्कालीन कृषि मंत्री बादल पत्रलेख ने जल संकट को दूर करने के लिए फल्गु नदी की तर्ज पर रबर डैम बनाने की घोषणा की थी. लेकिन घोषणा के दो साल बीत जाने के बाद भी इस दिशा में कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया है. 

 

रबर डैम बनने से पेयजल संकट होता दूर

रबर डैम निर्माण की घोषणा को लेकर लोगों में भारी उत्साह था. यह माना जा रहा था कि डैम बनने से कोयल नदी में वर्षभर पानी रहेगा, जिससे न केवल पेयजल संकट दूर होगा, बल्कि भूमिगत जलस्तर में भी सुधार होगा. 

 

इसको लेकर जनप्रतिनिधि और नेताओं ने कई बार सरकार से मांग की. लेकिन नदी में आए बरसात का पानी रोकने के लिए अब तक कोई ठोस पहल नहीं की गई, जिसको लेकर जनता के बीच निराशा का माहौल है. 

 

साल के अंत में घट जाता है नदी का जलस्तर

बीते तीन सालों से पलामू में सुखाड़ की स्थिति बनी हुई थी. हालांकि इस साल अच्छी बारिश के कारण  कोयल नदी में लबालब पानी भरा हुआ है. डैम का निर्माण न होने के कारण बरसात में नदी पूरी तरह लबालब भरी रहती है. लेकिन साल के आखिरी तक इसका जलस्तर काफी कम हो जाता है.

 

रबर डैम छोटे या मध्यम नदियों के लिए काफी उपयोगी है. रबर डैम बांधने से सूखे के दौरान पानी की उपलब्धता, बाढ़ नियंत्रण भी किया जा सकता था. कम लागत होने से इसका निर्माण कराना भी आसान है.

 

पूर्व महापौर व अन्य नेता कर चुके हैं  डैम बनाने की मांग

पूर्व उपमहापौर अरुणा शंकर, यूथ कांग्रेस नेता मणिकांत सिंह और समाजसेवी आशीष भारद्वाज जैसे कई जनप्रतिनिधियों और सामाजिक कार्यकर्ताओं ने रबर डैम के निर्माण को लेकर सरकार से बार-बार मांग की है. 

 

आशीष भारद्वाज ने अपनी ‘पानी यात्रा’ के दौरान रबर डैम निर्माण को जन आंदोलन बनाने की कोशिश की थी. वहीं राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन के पूर्व महानिदेशक अशोक कुमार ने भी पत्र जारी कर कोयल नदी को कई स्थान पर बांधने से संबंधित आदेश दिया था, ताकि पानी को रोका जा सके. हालांकि बाद में इसे भी ठंडे बस्ते में डाल दिया गया.

 

पलामू की "लाइफलाइन" है कोयल नदी

कोयल नदी को पलामू की "लाइफलाइन" कहा जाता है. इससे मेदिनीनगर शहर की बड़ी आबादी प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से जुड़ी हुई है. कांदु मुहल्ला, नावाटोली, नवाहाता, गिरवर स्कूल, पहाड़ी मोहल्ला, चनवारी, हमीदगंज, सुदना, बजराहा और सिंगरा जैसे इलाकों के लोग रोजमर्रा के कामों के लिए नदी पर निर्भर हैं. शहर की पेयजल आपूर्ति भी इसी नदी से होती है, लेकिन गर्मियों में जल स्तर घटने से आपूर्ति बाधित होती है. 

 

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