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झूठ की बुनियाद पर महल बनाने की कलाकारी

Nishikant Thakur राजनीति का आधार भावुक मन की निष्कपट भूमि नहीं है. वह बुद्धि के व्यायाम पर चला करती है. संसार कहता है- भाषा भावनाओं को व्यक्त करने का साधन है. राजनीति में यही भाषा मन की वास्तविक भावनाओं को अव्यक्त करने का साधन बनती है. राजनीतिज्ञ का मन जंगली चूहे के बिल जैसा होना चाहिए. यानी, यह किसी को पता नहीं चलना चाहिए कि वह बिल कहां से शुरू होता है और कहां जाता है. वैसे ही राजनीतिज्ञ के मन में क्या-क्या है, इसका कभी किसी को पता नहीं चलने देना चाहिए. राजनीति कोई मंदिर में होनेवाले प्रवचन का विषय नहीं है, जिसपर सबके सामने चर्चा की जाए. मंझे हुए राजनीतिज्ञ तो इसी नीति पर चलते हुए सफल होते रहे हैं, लेकिन कुछ अपनी कमी को छिपाने की नीयत से आक्रामक होकर लोकतांत्रिक मर्यादा को तार-तार कर देते हैं. मॉनसून सत्र में विपक्षी दलों द्वारा लाए गए मणिपुर प्रकरण पर अविश्वास प्रस्ताव के दौरान यही तो देखने को मिला. जिस मणिपुर पर चर्चा के लिए यह अविश्वास प्रस्ताव विपक्षियों द्वारा लाया गया था, उस चर्चा में मणिपुर प्रकरण तो गौण रहा. इस मॉनसून सत्र में यह प्रकरण बड़ा ज्वलंत रहा, जिसमें केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी बहुत ही गंभीरता से उठाई थी और लंबे समय तक देश में सार्वजनिक स्थानों पर हंसी का पात्र बनती रहीं. स्मृति ईरानी ने आरोप लगाया कि राहुल गांधी ने अपनी बात खत्म करने के बाद `फ्लाइंग किस` दिया, जो संसदीय गरिमा के अनुकूल नहीं रहा और जिस पर उन्होंने संसद में चर्चा तो की ही, अध्यक्ष तक को अपनी लिखित शिकायत के साथ-साथ महिला सांसदों के हस्ताक्षर से युक्त राहुल गांधी के खिलाफ कारवाई करने की भी मांग की. स्मृति ईरानी जिस प्रकार संसद में और संसद के बाहर मुखर रहती हैं, उतनी मुखर यदि वह ब्रजभूषण शरण सिंह के विरुद्ध महिला खिलाड़ियों की ओर से मुखर होतीं, तो कोई शक नहीं कि आज समाज उन्हें महिला संरक्षक के रूप में पूजनीय मानता, लेकिन नहीं, उन्हें अपनी खुन्नस तो राहुल गांधी से निकालनी है. सच तो यह है कि उनका आत्मबल बढ़ा ही इसलिए है कि उन्होंने उनके ही संसदीय क्षेत्र में हराकर जीत का परचम लहराया. अब जब अमेठी की जनता को अपनी गलती का अहसास होने लगा है, तो इसकी जानकारी स्मृति ईरानी को उनके सूत्रों ने निश्चित रूप से दी होगी, तो निस्संदेह उन्हें अपना भविष्य अंधकारमय दिखाई दे रहा होगा. इसलिए वह देश के किसी भी मंच से राहुल गांधी की बुराई करके क्षेत्र की जनता को यह विश्वास दिलाने की कोशिश करने लगी हैं कि राहुल गांधी नकारे थे, जो वर्षों तक इस क्षेत्र का लोकसभा में प्रतिनिधित्व तो किया, लेकिन अमेठी की जनता लिए कुछ कर नहीं पाए. निश्चित रूप से राहुल गांधी का कद तो देश की राजनीति में पिछले वर्ष उनके द्वारा 4000 किलोमीटर की भारत जोड़ो पदयात्रा से बढ़ा है. यह यात्रा जो कन्याकुमारी से कश्मीर तक की थी, ऐतिहासिक भी रही, से राहुल की छवि राष्ट्र के कद्दावर नेता के शुमार में हो गया. अब जब राहुल गांधी की प्रस्तावित दूसरी भारत जोड़ो यात्रा राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के जन्मस्थान पोरबंदर से अरुणाचल प्रदेश के लिए निकलेगी, तो फिर इसका अनुमान देश के बड़े-बड़े राजनीतिक विचार व्यक्त करने लगे हैं कि उसके बाद राहुल गांधी का कद कितना ऊंचा हो जाएगा. वैसे भी जो जानकारी और सर्वेक्षण रिपोर्ट आ रही है उसके हिसाब से 2024 का लोकसभा चुनाव कांटे की टक्कर का होगा, जिसमें पलड़ा विपक्ष का ही भारी बताया जा रहा है. अभी तक तो जिस तरह से INDIA गठबंधन के 26 दलों का जोश और एकता दिखाई दे रही है, उससे सत्तारूढ़ का विचलित होना यही संदेश देता है कि सत्तारूढ़ दल परेशान हैं और किसी-न-किसी प्रकार उसकी एकता को खत्म करने के लिए जो भी तिकड़म, नीति अपनाई जा सकती है, उसे अपनाने में पीछे नहीं हट रहा है. कहते हैं देश के संसद रूपी पवित्र मंदिर में कोई असत्य नहीं बोलता, लेकिन अब ऐसा नहीं होता. अब संसद सदस्यों की कौन कहे, मंत्री भी आंख में आंख डालकर असत्य भाषण देते हैं और संसदीय गरिमा की हंसी उड़ाते हैं . इस अविश्वास प्रस्ताव का दौरान भी और मंत्रियों की कौन कहे, गृहमंत्री ने राहुल गांधी को लपेटे में लेने के लिए और कांग्रेस का उपहास उड़ने के नाम पर कलावती नामक महिला का उल्लेख किया और कहा कि कांग्रेस शासनकाल में सब आश्वासन देने के बाद भी उस परिवार का कुछ भी भला नहीं किया गया, लेकिन मोदी सरकार ने उस परिवार की पूरी मदद करके उसके जीवन स्तर को सुधार दिया. जबकि, यह सच नहीं था. इसका खंडन स्वयं कलावती ने कई टेलीविजन चैनलों पर आकर किया. महाराष्ट्र की कलावती का कहना है कि उनके जीवन को संवारने में कांग्रेस की और विशेषरूप से राहुल गांधी की भूमिका सर्वाधिक महत्वपूर्ण रही है और आज वह जो कुछ भी है, उसमें सबसे अधिक महत्वपूर्ण भूमिका राहुल गांधी की ही रही है. पता नहीं क्यों अपना महत्व बढ़ाने के लिए देश के सबसे शक्तिशाली मंत्री तक असत्य भाषण संसद में करते हैं. देश का यह कितना बड़ा दुर्भाग्य है कि प्रधानमंत्री सशक्त होते विपक्ष पर देश की गंभीर समस्याओं पर जारी अपने बहस में हंसी उड़ाते हुए तरह-तरह के तंज कसे. मणिपुर राज्य के ज्वलंत मुद्दों से इतर प्रधानमंत्री ने अपने 133 मिनट के भाषण में 50 बार कांग्रेस, नौ बार इंडिया गठबंधन पर वार किया. भाषण का उद्देश्य मणिपुर की वर्तमान ज्वलंत समस्या नहीं, बल्कि इस रिकॉर्डतोड़ भाषण में 2024 के लोकसभा चुनाव के लिए भाजपा के लिए पिच तैयार करना और अपने तीसरे टर्म के लिए देश की जनता को यह बताना कि अब तक उन्होंने जो किया, वह तो विकास का एक सर्वश्रेष्ठ उपलब्ध ट्रेलर रहा है, लेकिन अब तीसरे टर्म में देश की अर्थव्यवस्था को उनकी सरकार विश्व की तीसरी बड़ी अर्थव्यवस्था बना देंगे. ज्ञात हो कि मनमाफिक निर्णय सुप्रीम कोर्ट द्वारा नहीं आने के कारण प्रधानमंत्री का लक्ष्य अब सुप्रीम कोर्ट और विशेष रूप से सीजेआई चंद्रचूड़ भी बन गए हैं. डिस्क्लेमर : ये लेखक के निजी विचार हैं. [wpse_comments_template]

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