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अपवाद नहीं है बिहार चुनाव का रक्तरंजित होना

Nishikant Thakur

मनुष्य जटिल नहीं होता है, वह बहुत ही सरल प्रवृत्ति का होता है, लेकिन मनुष्य जितना सरल होता है, उतना ही रहस्यपूर्ण भी होता है. मनुष्य की जटिलता को समझना बहुत आसान है, क्योंकि जटिलता को बांटा जा सकता है, काटा जा सकता है, विभाजित किया जा सकता है. सरलता को जानना असंभव है. ऐसा इसलिए, क्योंकि उसका कोई विश्लेषण नहीं हो सकता है.


 
आपके समक्ष कोई आपसे मीठी-मीठी बातें कर रहा है, लेकिन टेबल के नीचे से आपकी बातचीत आपके फोटोग्राफ आपके दुश्मन को सीधा भेज रहा है, यह उसका रहस्य है. इसका अर्थ यह नहीं कि हर व्यक्ति ऐसा होता है, लेकिन आज के मनुष्य का चरित्र कुछ इसी तरह का होता जा रहा है.


 
आप समझ नहीं पाते हैं कि आपकी पीठ पर कोई अपना ही खंजर उतारने जा रहा है, लेकिन उसके रहस्यमय चरित्र को जब तक समझेंगे, वह अपना काम कर चुका होता है. आज देश की कई समस्याओं में एक समस्या यह भी है कि कौन कब आपको धोखा दे दे, कौन कब तक आपके लिए सरल बनकर आपके खिलाफ षड्यंत्र रच दे और आप उसके जाल में उलझ जाएं, फंस जाएं. 

 

देश में चुनाव हो और बिहार उससे अलग हो जाए, ऐसा कभी हो  नहीं सकता है. जब तक यह लेख प्रकाशित होगा, न मालूम बिहार के कितने विधानसभा चुनाव में खून खराबा-हत्याएं हो चुकी हों, इसे कोई नहीं जनता. बिहार विधानसभा का चुनाव हो रहा है, इसकी धूम पूरे देश में मची हुई है, लेकिन चुनाव इतने करीब होने के बावजूद अब तक कुछ हुआ न हो, यह कैसे हो सकता है!

 

मोकामा विधानसभा क्षेत्र में तीन बाहुबलियों को टिकट दिया गया था, इसलिए यहां का चुनाव देश के लिए महत्वपूर्ण हो गया था. जैसे चुनाव करीब आया, खून-खराबा शुरू हो गया. वैसे जिनका खून हुआ, वह कोई प्रत्याशी नहीं थे, बल्कि जनसुराज पार्टी के समर्थक थे और पूर्व बाहुबली भी. 

 

उनका जिससे भिड़ंत हो गया, वे इलाके में 'छोटे सरकार' के नाम से प्रसिद्ध हैं और उनका असली नाम अनंत सिंह है और वह जदयू के प्रत्याशी हैं. इस हत्याकांड में अब तक जो तथ्य सामने आए हैं, उनमें यही बताया जा रहा है कि अनंत सिंह का काफिला जा रहा था, जबकि विपरीत दिशा से जनसुराज पार्टी का काफिला आकर उनसे उलझ गया. 


जनसुराज पार्टी के उम्मीदवार प्रत्यूष प्रियदर्शी और जन सुराज पार्टी के प्रत्याशी  समर्थकों के बीच बहस शुरू हो गई. जनसुराज पार्टी के उम्मीदवार प्रत्यूष प्रियदर्शी के साथ उनकी गाड़ी में उनके समर्थक और पूर्व बाहुबली दुलारचंद यादव बैठे थे. बहस ने विवाद का रूप लिया और उसके बाद मारपीट शुरू हो गई, जिसमें गोली चली, जो दुलारचंद यादव को लगी. 

 

उसके बाद उन्हें कथित रूप से गाड़ियों से रौंदकर मार दिया गया. वैसे थाने में नामजद रिपोर्ट दर्ज होने के बाद पुलिस ने आरोपी जदयू प्रत्याशी अनंत सिंह सहित कई अन्य को गिरफ्तार कर लिया है. अब आगे की जांच होने के बाद ही पता चल पाएगा कि असली मामला क्या था और गोली किसने चलाई.

 

बिहार में चुनावी हिंसा की बात करें तो पिछले दिनों पूर्णियां लोजपा (आर) और निर्दलीय समर्थकों में मारपीट हो गई. इस तरह की घटना को चुनाव के दौरान कोई महत्व नहीं दिया जाता है, ऐसा इसलिए क्योंकि इस तरह की मारपीट आम बात मानी जाती है. हां, सामने उन्हीं मुद्दे को लाया जाता है जिसमें हत्या तक हो गई हो, किसी बाहुबली को गोली लगी हो और चुनाव स्थगित हो गया हो. छिटपुट घटनाओं को कोई महत्व नहीं दिया जाता है. 

 

इधर राजनीतिज्ञों के भड़काऊ बयान से  यही लगता है कि चुनाव काल में वहां खून खराबा करने के लिए स्वतंत्र कर दिया जाता है, जबकि पूरा प्रशासन इस कालखंड में चुनाव आयोग के अधीन आ जाता है. वहां की स्थिति यही होती है कि जब घटना घट जाती है, तो उस पर छाती पीटी जाती है, अन्यथा सब कुछ ऊपर से देखने पर सामान्य लगता है. 

 

पता नहीं राजनीतिज्ञों में सत्ता पाने की इतनी ललक क्यों होती है! प्रत्याशियों का केवल यही उद्देश्य होता है कि किसी न किसी प्रकार चुनाव जीता जाए. सच तो यह है कि हमारे देश में सत्तारूढ़ को इतना अधिकार दे दिया गया है कि हर कोई किसी न किसी रूप में राजनीति में आकर येन केन प्रकारेण अपना नाम चमकाने के  साथ यश और प्रतिष्ठा के साथ धन भी कमाना चाहता है. यही तो आज देश में हो रहा है कि हमारे संविधान ने राजनीतिज्ञों को इतना अधिकार दे दिया गया है कि वह सत्ता के नशे में चूर होकर कुछ भी करने को उतावले रहते हैं. 

 

वैसे लकीर पीटने वाली बात अब यह हो गई है कि पटना के ग्रामीण एसपी सहित चार अधिकारी हटा दिए गए हैं. लेकिन क्या इससे मृतक लौट आएगा? अब पहले जांच होगी, जो पुलिस ही करेगी. अतः अभी यह कहना उचित नहीं होगा कि गोलीबारी में बाहुबली की हत्या हुई अथवा स्वयं जनसुराज पार्टी के ही नेताओं ने उनकी हत्या कर दी. 
आरोप तो अनंत सिंह की ओर से यही लगाया जा रहा है कि बाहुबली दुलारचंद यादव की हत्या जनसुराज पार्टी के उम्मीदवार प्रत्यूष प्रियदर्शी, जो उनके साथ गाड़ी में यात्रा कर रहे थे, उन्होंने योजनाबद्ध तरीके से अंजाम  दिया है. 

 

सच और झूठ का पता तो तभी चलेगा, जब किसी स्वतंत्र एजेंसी द्वारा घटना की जांच कराई जाए. कहा तो यह भी जा रहा है कि तथाकथित बाहुबली अनंत सिंह द्वारा कराई गई है, इसलिए हत्या का असली सुराग मिलना नामुमकिन होगा. हां, जनसुराज पार्टी के मोकामा विधानसभा क्षेत्र के उम्मीदवार ने स्वयं एक यूट्यूब चैनल से बात करते हुए कहा है कि इस हत्या का खुलासा सीबीआई द्वारा जांच कराने के बाद ही हो पाएगा. अब यह निर्णय सरकार को ही करना है कि दुलारचंद यादव की हत्या की जांच किसी केंद्रीय एजेंसी से कराई जाए या फिर बिहार पुलिस ही करे. यदि किसी केंद्रीय एजेंसी से जांच नहीं हुई, तो हत्या की गई है या कराई गई के साथ हत्यारे का पता लगा पाना मुश्किल ही है.

 

वैसे, चुनाव में आरोप प्रत्यारोप तो एक दूसरे पर लगाए ही जाते रहे हैं, लेकिन इस तरह की घटना फिर दुबारा न हो, इस पर सरकारी अधिकारों को विचार तो करना ही पड़ेगा. इस तरह की घटना के बाद भी सत्तारूढ़ दल द्वारा किस तरह के आरोप लगाए जा रहे हैं और किस तरह की आलोचना दूसरे दल कांग्रेस पर की जा रही है, उसकी कोई तारीफ नहीं कर सकता. 

 

हां, यह नेता जो इसी तरह की सच झूठ का आरोप लगाकर अपने को बड़ा कर लेते हैं, वे इसी तरह की आलोचना करते हुए नहीं अघाते हैं. मालूम हो कि जनता दल यूनाइटेड और भारतीय जनता पार्टी का एक गठबंधन है, इसलिए सत्ता में रहते हुए, गठबंधन के  होते हुए एक दूसरे पर आरोप प्रत्यारोप कैसे करेंगे! बिहार के एक बड़े नेता अश्वनी चौबे कहते हैं कि इस चुनाव में दिल्ली व बिहार में 'पप्पू' समाप्त हो जाएंगे. दूसरी और उन्हीं के पार्टी के नेता गिरिराज सिंह कहते हैं कि मल्लिकार्जुन खड़गे राहुल गांधी के गुलाम हैं. 

 

अब यह बात समझ में नहीं आती कि इतनी ओछी बात करना अथवा आरोप लगाना उन्हें शोभा किस तरह देता है. वैसे, गिरिराज सिंह के लिए बिहार में कहा जाता है कि उनकी बुद्धि मंद है, इसलिए बड़बोला बनने के उद्देश्य से वह सदैव अनाप शनाप आरोप लगाते रहते हैं. यह उनकी आदत हो गई है. अब यदि पूछा जाए कि केंद्र में मंत्री रहते हुए उन्होंने बिहार के लिए क्या किया, तो फिर वह जंगलराज का राग अलापते हुए अतीत में चले जाते हैं. 


अपनी सरकार की कमियां छुपाने के लिए ही वह इसी तरह का भाषण देते रहते हैं, इसलिए उन्हें एक जाति विशेष का ही नेता माना जाता है. लेकिन  यदि उनके गढ़ में जाकर बात करेंगे, तो उनका ही समाज यह कहता मिलेगा कि उन्होंने अपने क्षेत्र के विकास के लिए भी कुछ भी नहीं किया है. 


जो भी हो, आजकल इसी तरह के नेताओं की तूती बजती है. इसलिए इस चुनाव में सतर्क रहें, क्योंकि आपके सामने आकर आपसे मीठी मीठी बात करके पैर के नीचे से कौन कब आपकी जमीन खींच ले, इसे समझना पड़ेगा, नहीं तो बिहार की तरह आप भी पिछड़े और देश के सबसे गरीब समाज माने जाते रहेंगे.

 

 डिस्क्लेमर: लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं ये इनके निजी विचार हैं

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