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खेती के लिए अंग्रेजों ने बुलाये थे कुडमी, अब आदिवासी बनने की कर रहे हैं साजिश : आदिवासी छात्र संघ

  Ranchi :  आदिवासी छात्र संघ पलामू के प्रमंडल प्रभारी आशुतोष सिंह चेरो ने आरोप लगाया कि पिछले कुछ महीनों से कुडमी महतो समाज अराजकता फैलाने में जुटा है. उन्होंने कहा कि आदिवासी और कुडमी महतो के बीच भाईचारा अब खत्म हो चुका है. इसके लिए नेताओं की राजनीति जिम्मेदार है.

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सोमवार को मोरहाबादी में आयोजित प्रेस कॉन्फ्रेंस में झारखंडी आदिवासी बचाओ संघर्ष समिति ने कहा कि कुडमी समाज रेल-टेका, डहर-छेका आंदोलन के जरिए आदिवासी बनने की कोशिश कर रहा है, जबकि उनके पास न तो आदिवासी लक्षण हैं, न संस्कृति और न ही पारंपरिक जीवनशैली है. कहा कि अंग्रेजों ने खेती पर टैक्स बढ़ाने और खेती के लिए कुडमी समाज को बुलाया था,

 


चेरो ने कहा कि 1910 में कुडमी क्षेत्रीय सभा बनी थी और 1931 में अंग्रेजी सरकार ने इन्हें आदिवासी सूची में शामिल करने की पहल की थी, लेकिन कुडमी समाज ने खुद को शिवाजी का वंशज बताकर इससे दूरी बना ली थी.अब सौ साल बाद वे आदिवासी बनने की होड़ में हैं,

 


देवी दयाल मुंडा ने आरोप लगाया कि कुडमी लोग ब्राह्मण विधि से पूजा-पाठ करते हैं. इनके पुजारी पंडित होते है. जबकि जल,जंगल-जमीन और पहाड़ की संस्कृति से उनका कोई नाता नहीं है. ये मूल रूप से हिंदू हैं और आदिवासी समाज के अधिकारों में बाधा डालने का प्रयास कर रहे है. 

 


नयन गोपाल सिंह मुंडा ने कहा कि चुहाड़ विद्रोह 1776 से शुरू हुआ था,रघुनाथ सिंह भूमिज ने इसे शुरू किया था.जिसमें करीब 1000 भूमिज शहीद हुए थे .इसमें भी कुडमी समुदाय ने इतिहास को बदलने का प्रयास कर रहे है.

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