आपने अक्सर कहीं ना कहीं सुना होगा. महसूस किया होगा. झेला होगा. पहली यह कि आम लोग, खासकर मीडिल क्लास टैक्स की मार से मरता जा रहा है. जमीन में धंसता जा रहा है. बचत सूख गया है और दूसरी बात जो आपसे कम लोग बताते हैं या यूं कहें कम लोग जानते हैं, वह यह कि भारत के अमीर नगदी (कैश) के पहाड़ (रिकॉर्ड बचत) पर बैठे हैं. एक बार और सुनते हैं कि पैसे वालों के टैक्स से गरीबों को मुफ्त में रेवड़ी मिलता है. आज की तारीख में इससे बड़ा झूठ कुछ नहीं है.
यह कैसे हुआ. क्यों हुआ. किसने किया. क्यों किया. यह सवाल जितना आर्थिक है, उससे अधिक राजनीतिक है. इसमें उलझने से अच्छा है हालात को समझा जाये. समझने के लिए इतना ही जानिये कि इस बजट से पहले वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने झुंझला करके कहा था, उद्योगपतियों के लिए सरकार और क्या करें. ना उद्योग लगा रहे हैं और ना नौकरियां दे रहे हैं. आखिर सरकार कितना करे.
वित्त मंत्री की झुंझलाहट और हालात को समझने के लिए आंकड़े को जानना-समझना जरुरी है. हम यहां वित्तीय वर्ष 2010-11 और 2024-25, यानी 15 सालों में कुछ आंकड़ों में आए बदलाव को समझेंगे. पर सबसे पहले समझना होगा, टैक्स कितने तरह के होते हैं. टेबल देखें...
टैक्स दो तरह के होते हैं
| डाइरेक्ट टैक्स |
इनडाइरेक्ट टैक्स |
| कॉरपोरेट टैक्स |
जीएसटी |
| इनकम टैक्स |
एक्साईज ड्यूटी |
| कैपिटल गेन टैक्स |
कस्टम ड्यूटी |
| प्रॉपर्टी टैक्स |
इनकम टैक्स |
डाइरेक्ट टैक्स कौन देते हैं. उद्योग चलाने वाले उद्योगपति, मासिक वेतन पाने वाला सैलरी क्लास (सबसे अधिक मीडिल क्लास), संपत्ति बेचने या खरीदने वाले. इनडाइरेक्ट टैक्स किनको देना पड़ता है. हर आम-ओ-खास को, जो बाजार से बिस्किट से लेकर कार, फ्रीज, टीवी, मोबाइल, चावल, दाल तक खरीदने वालों को. इस टैक्स को देने से आप बच ही नहीं सकते. यानी कि गरीब से लेकर अमीर तक कंज्यूमर. मतलब उपभोक्ता, खरीददार. क्या आप जानते हैं 15 साल पहले और अब इनके द्वारा दिया जाने वाला टैक्स की रकम की हिस्सेदारी का आंकड़ा कितना बदल गया है. टेबल देखें...
कौन कितना टैक्स दे रहा
| वर्ष |
2010-2011 |
2024-25 |
| कंज्यूमर |
65 % |
80 % |
| कॉरपोरेट |
35% |
20 % |
इस आंकड़े से स्पष्ट है कि कॉरपोरेट टैक्स में बड़ी छूट देने की नीति से उद्योपतियों का मुनाफा तो बढ़ता चला गया, वह नगदी के पहाड़ पर बैठे हैं, लेकिन आम उपभोक्ताओं की हालत पतली होती चली गई. अपनी कमाई को बचाये रखने के लिए सरकार ने हर उस सामान को टैक्स के दायरे में ला दिया, जिसे गरीब से गरीब भी खरीदते ही हैं. अमीरों को तो इससे फर्क नहीं पड़ा, पर गरीबों पर यह टैक्स हथौड़ा की तरह चोट कर रहा है.
सरकार की नीति से किसका फायदा
|
कॉरपोरेट टैक्स में कितनी छूट दी
|
कॉरपोरेट टैक्स में छूट क्यों दी |
कॉरपोरेट टैक्स में छूट देने से क्या मिला |
| केंद्र की सरकार ने वर्ष 2018 में कॉरपोरेट टैक्स में बड़ी कटौती की. कॉरपोरेट टैक्स को 30 प्रतिशत से कम करके 22 प्रतिशत कर दिया गया. इसके बाद कॉरपोरेट को लगने वाला व्यवहारिक टैक्स 34.94 प्रतिशत से कम होकर 25.17 प्रतिशत पर आ गया. |
केंद्र सरकार ने कॉरपोरेट टैक्स में छूट देने की वजह यह बतायी थी कि इससे कंपनियों को ज्यादा मुनाफा होगा. कंपनियां नए उद्योग लगाने में ज्यादा निवेश करेगी. इससे ज्यादा उत्पादन होगा. देश का विकास तेजी से होगा. ज्यादा लोगों को नौकरी मिलेगी, कर्मचारियों को ज्यादा वेतन मिलेगा. |
दरअसल हुआ यह कि कंपनियों ने सरकार से मिली छूट की वजह से ज्यादा मुनाफा कमाया, पर नए उद्योग नहीं लगाये. ना उत्पादन बढ़ा, ना नई नौकरियां आयीं और ना ही वेतन बढ़ा. यही कारण है कि वित्त मंत्री यह कहने से नहीं चुकीं कि कॉरपोरेट के लिए सरकार और क्या करे. |
अब आप टैक्स की गणना को समझिये. भारत में टैक्स की कुल वसूली जीडीपी का 19 प्रतिशत होता है, पिछले 15 सालों में ऐसा क्या हुआ कि इसमें कंपनियों का हिस्सा (डाइरेक्ट टैक्स) कम होता गया और आम लोगों द्वारा चुकाया जाने वाला टैक्स (जीएसटी/कंज्यूमर टैक्स) बढ़ता चला गया. देखें टेबल.
टैक्स वसूली के आंकड़े
डाइरेक्ट टैक्स
|
कॉरपोरेट टैक्स
|
59%
|
39 % |
|
इनकम टैक्स
|
27%
|
48% |
जीडीपी में हिस्सेदारी
| कॉरपोरेट टैक्स |
3.9% |
3.00% |
| इनकम टैक्स |
1.8% |
3.6% |
कंज्यूमर और कंपनी
| कंज्यूमर टैक्स |
10.7% |
14.9% |
| प्रोड्यूसर टैक्स |
5.7% |
3.7% |
इन आंकड़ों से आप समझ गए होंगे कि भारत में जो नीतियां बन रही हैं, उससे किसको लाभ हो रहा है. राजनीतिक चर्चा और विवाद अपनी जगह, लेकिन एक सच यह तो है कि सरकारें (केंद्र व राज्य) टैक्स के रुप में आम लोगों का खून चूस रही है. उपभोक्ता यानी कि आम लोग खासकर मीडिल क्लास दर्द से करार रहा है और सरकार व अमीर उनसे वसूले गए टैक्स से ऐश कर रहे हैं. इन सबके बाद भी सरकार चलाने वाले कह देते हैं कि वह आम लोगों के हित में काम कर रही है और आप मान भी लेते हैं. पागलों की तरह उनके नाम की माला जपने लगते हैं. आपस में लड़ लेते हैं.
डिस्क्लेमरः इस टिप्पणी में शामिल आंकड़े व तथ्य द क्विंट से साभार लिया गया है.
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