- बच्चे जंगल और गड्ढों से होकर पहुंचते हैं स्कूल
- जबतक बच्चे घर नहीं पहुंच जाएं, परिजनों रहते हैं चिंता में
- रोज बच्चे गिरकर होते हैं घायल
- अब तो वन विभाग ने भी कच्चे रास्ते में करा दिया है ट्रेंच कटिंग
- एक रैयत ने सरकारी भूमि को अपना बताकर कर लिया है कब्जा, नहीं बनने दी सड़क
Arun Kumar Yadav
Garhwa : एक तरफ झारखंड सरकार राज्य में बेहतर शिक्षा का माहौल बनाने के प्रयास में जुटी है. राज्य के कई स्कूलों को उत्कृष्ट विद्यालय बनाया जा रहा है. वहीं दूसरी तरफ कई स्कूल अपनी बदहाली का रोना रो रही है. एक ऐसा ही स्कूल गढ़वा जिले के रंका अनुमंडल क्षेत्र में स्थित है. उत्क्रमित प्राथमिक विद्यालय सलैयादामर. इस स्कूल के बने 15 वर्ष हो गए, मगर स्कूल तक जाने के लिए आज तक पहुंच पथ नहीं बनी. इस स्कूल में कक्षा एक से पांचवीं तक के 52 बच्चे पढ़ते हैं. इन छोटे-छोटे बच्चों को स्कूल पहुंचने के लिए जंगली-झाड़ियों और गड्ढ़ों से होकर गुजरना पड़ता है. स्कूल तक पहुंचने के लिए 15 साल बाद भी एक सड़क तक नहीं बनाई गई. और तो और वन विभाग ने भी ट्रेंड कटिंग कर रास्ते में गड्ढा खुदवा दिया है. बच्चे इन गड्ढों से किसी तरह गिरते-पड़ते स्कूल पहुंचते हैं.
क्या कहते हैं स्थानीय ग्रामीण
स्थानीय ग्रामीणों का कहना है कि गरीबों के बच्चों पर ध्यान देने वाला कोई नहीं है. स्कूल बने 15 साल हो गए, मगर अबतक एक पक्की सड़क स्कूल तक पहुंचने के लिए नहीं बनाई गई. यही अगर प्राइवेट स्कूल होता तो कब का रास्ता बन गया होता. बच्चे जंगल से होकर स्कूल जाते हैं. हमेशा डर बना रहा है. कभी जंगली जानवर तो कभी सांप बिच्छू का. मगर क्या करें मजबूरी है आर्थिक स्थिति ऐसी नहीं है कि बच्चों को प्राइवेट स्कूल में भेजें.
वहीं स्थानीय महिला दुलारी देवी बताती हैं कि हमलोग तो चाहते हैं कि बच्चा पढ़-लिखकर कुछ अच्छा करे, मगर ना तो सरकारी स्कूल तक जाने के लिए सड़क है, न ही पढ़ाई की अच्छी व्यवस्था है. स्कूल भेजकर पूरे दिन हमलोग टेंशन में रहते हैं. स्कूल जाने के लिए जंगल और गड्ढों से होकर बच्चों को गुजरना पड़ता है. सरकार स्कूल तक जाने के लिए एक सड़क बनवा देती तो हमलोगों के लिए बहुत अच्छा होता.
वहीं स्थानीय ग्रामीण हरेंद्र राम कहते हैं कि बहुत कष्ट में हमलोग के बच्चे स्कूल जाते हैं. सड़क नहीं रहने के कारण बच्चे बराबर गढ्ढा में गिर जाते हैं. अभी गर्मी का मौसम है, इसलिए बच्चे किसी तरह स्कूल पहुंच जा रहे हैं. मगर बारिश के मौसम में बच्चे स्कूल कैसे जाएंगे. वन विभाग ने ट्रेंच कटिंग करा दिया है. गड्ढे में पानी भर जाएगा, वहीं जंगल में झाड़ियां भी भर जाएगी. ऐसे में हमेशा अनहोनी का डर बना रहेगा.
गांव की संध्या देवी बताती हैं कि मेरे बच्चा इस स्कूल से पढ़कर निकल गया. अब वह 14 साल का है. मगर आज तक स्कूल पहुंचने के लिए एक सड़क नहीं बनी. सरकार स्कूल बनवाती है तो वहां तक पहुंचने के लिए सड़क भी बनवाए.
रैयती प्लॉट की आड़ में सरकारी जमीन पर भी कर लिया कब्जा, नहीं बनने दी सड़क : पूर्व वार्ड सदस्य
पूर्व वार्ड सदस्य प्रतिमा देवी बताती हैं कि जब वार्ड सदस्य थीं तो मुखिया से बात करके रोड बनवाना चाहीं, लेकिन बीच में किसी एक व्यक्ति की रैयती प्लॉट है. उसने रैयती प्लॉट की आड़ में सरकारी भूमि पर भी कब्जा कर लिया है. उसी ने अपनी जमीन बताकर रास्ता नहीं बनने दिया. मैं सरकारी से अधिकारी भेजकर इसकी जांच कराने और जल्द से जल्द सड़क बनवाने की मांग करती हूं.
क्या कहते हैं प्रभारी प्राचार्य
स्कूल के प्रभारी प्राचार्य घनश्याम ठाकुर कहते हैं कि स्कूल बने 15 वर्ष बीत गए, लेकिन सड़क नहीं बन पाई है. स्कूल से सटे एक रैयत का प्लॉट है. उसी प्लॉट की आड़ में गरमजरुआ जमीन को भी अपना बताकर कब्जा किए हुए हैं. यह भी एक कारण है कि सड़क नहीं बन पाई है. स्कूल में एक से पांच तक की पढ़ाई होती है. जिसमें 52 बच्चे नामांकित हैं. इन बच्चों को स्कूल आने में बहुत परेशानी होती है. जोखिम भरे रास्ते से इन्हें स्कूल पहुंचना पड़ता है. मैं हमेशा इस ओर वरीय पदाधिकारियों का ध्यानाकृष्ट कराता रहा हूं, लेकिन अब तक कोई पहल नहीं हुई.
क्या कहते हैं जिला शिक्षा पदाधिकारी
वहींं जिला शिक्षा पदाधिकारी मिथिलेश केरकेट्टा ने कहा कि मामला मेरे संज्ञान में नहीं आया था. अगर उत्क्रमित प्राथमिक विद्यालय सलैयादामर तक पहुंचने के लिए सड़क नहीं है तो मैं सड़क निर्माण विभाग से बात करूंगा, ताकि जल्द से जल्द सड़क बन सके. बच्चों को स्कूल जाने में हो रही परेशानी को जल्द दूर कर दिया जाएगा.
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