हो गया चिंतन, अब तकरार का मौसम
DR. Santosh Manav गिरिडीह के मघुबन में कांग्रेस के तीन दिवसीय चिंतन शिविर से क्या निकला? सतही प्रतिक्रिया देनी हो, तो कह सकते हैं कि निकलना ही क्या था? तीन दिन की पिकनिक हो गई. झारखंड के कोने-कोने से डेढ़ सौ नेता जुटे. खाया-पीया, भाषण दिया और चल दिए. मेल-मुलाकात हो गई. कुछ सेटिंग भी हुई होगी. कार्यकर्ताओं ने मंत्रियों से कुछ फोन करवाए होंगे, कुछ दस्तखत लिए होंगे. कुछ गिले-शिकवे दूर हुए होंगे. सवाल जो थम गए: लेकिन, कांग्रेस के संदर्भ में बात इतनी भर नहीं है. प्रदेश के प्रभारी कुंवर रत्नजीत प्रताप नारायण सिंह बीजेपी वाले हो गए और किसी संगठन से बड़ा नाम खिसक ले, तो एक खालीपन आता है. अनेक तरह के सवाल खड़े होते हैं. ये क्या हुआ, कैसे हुआ, कब हुआ टाइप? चिंतन शिविर से यह हुआ कि जो शून्यता थी, सवाल थे, वे कुछ समय के लिए थम गए. पार्टी ढर्रे पर आ गई. आरपीएन सिंह कांग्रेस के कितने विधायक तोड़ लेंगे? राजेश ठाकुर का क्या होगा? ऐसे ही और भी सवाल, कुछ माह के लिए चर्चा के विषय नहीं रहेंगे. झामुमो-बीजेपी किससे लड़े : बैठक में तीनों दिन हर सत्र में शामिल लोगों से पूछिए, तो कहेंगे- पार्टी की विचारधारा को जन-जन तक पहुंचाने का मंत्र मिला. सदस्यता अभियान को तेज करने का आदेश मिला. पुराने लोगों को ढूंढकर सक्रिय करने का निर्देश मिला. यह वह स्टेटमेंट है, जो अखबारों के लिए है. अंदरखाने की बात यह है कि पार्टी के मंत्रियों को लेकर तीखी प्रतिक्रिया हुई. झामुमो पर जिलों के नेता खूब बरसे. कहा कि सरकार में कांग्रेस है पर दोयम दर्जे का व्यवहार होता है. जितनी ताकत बीजेपी से लड़ने में लगाते हैं, उससे ज्यादा झामुमो से लड़ने में लग रही है. राहुल ने जो कहा : पूर्व मुख्यमंत्री केबी सहाय के पौत्र और कोडरमा जिला कांग्रेस के अध्यक्ष मनोज सहाय ने लगातार से कहा-इस तरह के शिविर में पहली बार शामिल हुआ. बहुत कुछ सीखने को मिला. मैंने अपने नेतृत्व से आग्रह किया है कि सरकार में हम कांग्रेसियों को भी सम्मान मिले. हम भी बराबर के हकदार हैं. मनोज सहाय के सार्वजनिक बयान से समझा जा सकता है कि शिविर में क्या - कुछ हुआ होगा? और राहुल गांधी ने भी शिविर में दिल्ली से जो कहा, वह भी सुनिए-कार्यकर्ताओं ने मंत्री बनाए. अगर उनको सम्मान नहीं देंगे, तो वे आपको कुर्सी से उतार भी सकते हैं. संभव है कि राहुल गांधी ने किसी फीडबैक के आधार पर यह कहा हो. अविनाश पांडेय भी कह चुके हैं कि काम न करने वाले मंत्री बदलेंगे. अविनाश पांडेय की लीडरशिप : शिविर के सहारे नेताओं-कार्यकर्ताओं-विधायकों की घेराबंदी हो गई-आरपीएन सिंह नहीं तो क्या हुआ? अविनाश पांडेय है न. तुम्हारी चिंता पार्टी को है. सक्रिय रहो. यानी मैसेज गया कि कांग्रेस आलाकमान को झारखंड की चिंता है. पार्टी के नए प्रभारी अविनाश पांडेय की लीडरशिप स्थापित हो गई. आरपीएन सिंह की छाया हटी. यह सब तो हुआ, अब जो होने वाला है, वह जानिए. रार -तकरार : हेमंत सोरेन की सरकार से कांग्रेस का टकराव बढ़ेगा. ज्यों-ज्यों चुनाव का मौसम नजदीक आएगा, रार तेज होगी. कांग्रेस कार्यकर्ताओं को महत्व का सवाल तीखा होगा. हेमंत असहज होंगे. अविनाश पांडेय इसी चिंतन शिविर में कह चुके हैं कि कांग्रेस ने अपने चुनावी घोषणा पत्र में जो कहा है, लिखा है, उसमें से एक पर भी अमल नहीं हुआ, जबकि दो साल बीत गए. पूर्व केंद्रीय मंत्री सुबोधकांत सहाय ने भी चिंतन शिविर में चिंता जाहिर की है- दो साल हो गए. कांग्रेस के मेनिफेस्टो पर काम नहीं हुआ. बेहतर संवाद नहीं है. संकेत साफ है कि सरकार हमारी भी है. पदों की रेवड़ी बंटनी शुरु होगी. बोर्ड है, निगम है, बीस सूत्री उपाध्यक्ष है. जब पद है, तो गणेश परिक्रमा तेज होगी ही. तेरा क्या होगा ठाकुर : राजेश ठाकुर, आरपीएन सिंह के कृपापात्र थे. अध्यक्ष की कुर्सी की कृपा वहीं से आई थी. नए लीडरशिप में कुर्सी डगमगा रही है. संभव है कुर्सी पलट जाए. पर इतनी जल्दी नहीं होना है. कम से कम छह माह बाद. संभव है कोई नया मंत्री बने. एक सीट खाली है. हो यह भी सकता है कि किसी को खिसका कर किसी को बनाया जाए. कांग्रेस के चार मंत्री हैं- रामेश्वर उरांव, आलमगीर आलम, बन्ना गुप्ता और बादल पत्रलेख. रामेश्वर उरांव और आलमगीर आलम तो बने रहेंगे, हटाना हो तो बादल या बन्ना जाएंगे. जो बन सकते हैं, उसमें पहला नाम जयमंगल सिंह का है. जयमंगल का मंगल : जयमंगल सिंह राजपूत हैं और हेमंत की सरकार में सिंहजी नहीं हैं. बीजेपी सरकार में दो थे-सीपी सिंह और सरयू राय. बहुत नाइंसाफी है? जयमंगल सिंह, हेमंत सोरेन के भी खास हैं. हेमंत की ऊंगली जयमंगल के लिए टेढ़ी हो सकती है. जयमंगल सिंह कांग्रेस के बड़े नेता रहे स्व. राजेंद्र प्रसाद सिंह के सुपुत्र हैं. जयमंगल सिंह की रिश्तेदारी नागपुर में है, जहां से अविनाश पांडेय आते हैं. जयमंगल सिंह की पहुंच राहुल गांधी के कार्यालय के बड़े आदमी कनिष्क सिंह तक हैं. आरपीएन सिंह से जयमंगल की पटरी नहीं बैठ रही थी., पांडेजी से बैठ गई है. कारण बहुतेरे हैं. पर राजनीति में हमेशा दो और दो चार नहीं होता. कभी -कभी तीन भी होता है. यह बात उभरते युवा नेता जयमंगल भी जानते हैं ? वैसे आप चाहें तो जयमंगल सिंह उर्फ अनूप सिंह को बधाई दे सकते हैं . { लेखक दैनिक भास्कर सहित अनेक अखबारों के संपादक रहे हैं. फिलहाल लगातार मीडिया से बतौर स्थानीय संपादक जुड़े हैं } [wpse_comments_template]

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