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देश धन्य हो गया

Rajeev Srivastawa
देश धन्य हो गया था मई 2014 में ही. लेकिन समझ अब आ रहा है. एक ऐसे बंदे के हाथ में देश की कमान दे दी गई, जिसके पास विजन, प्लानिंग, नीतियां नाम की कोई चीज़ भले न हो लेकिन जुबान मीलों लंबी थी. आप किसी समस्या को अभी देख भी नहीं पाए, समझ नहीं पाए और अगला एक मास्टरस्ट्रोक के साथ तैयार खड़ा मिलता है. और यहीं से भारत देश के धन्य होने के सारे कारण तैयार होने लगते हैं.
अच्छा हर #मास्टरस्ट्रोक पिछले वाले मास्टरस्ट्रोक से कहीं ज्यादा घातक. आप शुरू से देखिए. वर्ष 2016 तक खाली बातें थी. अचानक नवंबर 2016 में पहला मास्टरस्ट्रोक नोटबंदी आया और सोए हुए, खाये, पिये अघाये देश की नाक में दम हो गया. 100 से ज्यादा कीड़े मकोड़े खर्च हो गए. हर मौत पर भीड़ की तालियों की गड़गड़ाहट बढ़ती जाती थी.

फिर जुलाई 2017 में आधी रात को जीएसटी लागू हुआ और महीने भर के अंदर लाखों बेरोजगार, हजारों कंपनी बंद और देश का राजा मुस्कान के एक नए कलेवर के साथ देश के सामने खड़ा था.
फिर तो मास्टरस्ट्रोक की झड़ी लग गई. दुनिया में कोई ऐसी स्कीम, जिससे देश की जनता का नुकसान होना हो. राजा साहब ने अपने देश में लागू की. तुर्रा यह की चुने हुए प्रधानमंत्री हैं, आपको विरोध का हक़ नहीं है.

आज 14 अप्रैल को दो लाख मरीज़ निकले हैं. अब पिछली बार का मास्टरस्ट्रोक लॉकडाउन गायब है. वित्त मंत्री कह रही हैं कि अर्थव्यवस्था ठप नहीं कर सकते. तो मोहतरमा पिछली बार क्यों की ? तब तो दीया थाली भी था. केंद्र ने गेंद राज्य के पाले में छोड़कर अपनी तरफ से जनता को मरने के लिए छोड़ दिया है.

अब महामारी से मुकाबला आपके अपने हाथ में है. चाहें तो जाइए कुंभ नहां लीजिए, अगर "असली" हिंदू हो आप. या फिर शांति से घर में बैठकर अपने और परिवार के स्वास्थ्य का ध्यान रख लीजिए. सरकार सिर्फ चुनाव लडेगी, पप्पू गांधी को गाली देगी. और स्पूतनिक वैक्सीन का इंतजार करेगी.
उम्मीद है कि अर्थव्यवस्था अभी और डुबकी लगाएगी. लेकिन आपको क्या ?

आप तो मंदिर, 370 तीन तलाक में फंसे हैं. फंसे रहिए. जिंदा रहे तो मोदी जी एक प्लॉट देने की सोचेंगे. खर्च हो गए तो आपकी किस्मत. कीड़े-मकोड़ों में अपनी गिनती करवाने की जहमत नहीं उठानी पड़ेगी. सरकार यह काम बखूबी करती है. नोटबंदी के 100+ से कोरोना के 1,75,000 देखकर यह तो पता लगता है कि विकास तो हुआ है!!
कुछ भी हो. देश तो धन्य हो ही गया.

डिस्क्लेमर : ये लेखक के निजी विचार हैं.

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