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देश के आर्थिक हालात खराब, बढ़ता जा रहा है कर्ज, दिवालिया होने के करीब

Girish Malviya
2020 भारत की इकोनॉमी के डिजास्टर का साल था.’ अब नई आशंकाएं हैं कि 2021 के अंत तक देश दिवालिया बनने के बहुत ही करीब पहुंच जाएगा. और संभवतः वर्ष 2022 के अंत तक मोदी सरकार हाथ ऊंचे कर भी दे. दरअसल यह कोई रॉकेट साइंस नहीं है. बहुत सीधी सी बात है, जो देश का मेन स्ट्रीम मीडिया आपको सीधे से बतलाता नहीं है.
अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष IMF ने हाल ही में घोषणा कर दी कि COVID-19 संकट के कारण भारत के सकल घरेलू उत्पाद के अनुपात में ऋण 74% से बढ़कर 90% हो गया है. IMF कहता है कि यह वर्ष 2021 में बढ़कर 99% हो जायेगा. जो IMF कह रहा है, उसे हम कर्ज-जीडीपी अनुपात कहते हैं.

IMF तो विदेशी है. पर, यही बात भारत की शेयर ब्रोकरेज कंपनी मोतीलाल ओसवाल फाइनेंशियल सर्विसेज भी कह रही है. उसकी एक रिपोर्ट के अनुसार, पिछले वित्त वर्ष 2019-20 में केंद्र एवं राज्यों का संयुक्त रूप से कर्ज-जीडीपी अनुपात 75 फीसदी के करीब था. इस साल यह 91 फीसदी पर पहुंच गया है.
कर्ज-GDP अनुपात किसी भी देश के कर्ज चुकाने की क्षमता को दिखाता है. जिस देश का कर्ज-GDP रेश्यो जितना ज्यादा होता है. उस देश को कर्ज चुकाने के लिए उतनी ही ज्यादा परेशानियों का सामना करना पड़ता है. अगर किसी देश का कर्ज-GDP अनुपात जितना अधिक बढ़ता है, उसके डिफॉल्ट होने की आशंका उतनी अधिक हो जाती है.

अब यह जान लीजिए कि साल 2014-15 में जब मोदी सरकार सत्ता में आयी थी, तब देश का कर्ज-जीडीपी अनुपात करीब 67 फीसदी ही था. लेकिन मोदी काल में एक बाद एक ऐसे निर्णय लिये, जिससे देश के आर्थिक हालात बद से बद्तर होते चले गए. और कर्ज GDP अनुपात बढ़ता ही चला गया. देश कर्जा लेता चला गया और GDP ग्रोथ कम होती गयी.
भारतीय अर्थव्यवस्था की रफ्तार कोरोना संक्रमण के फैलने से पहले ही धीमी होने लगी थी. वित्त वर्ष 2019-20 का सकल घरेलू उत्पाद यानी जीडीपी (GDP) गिर कर 4.2 फीसदी पर पहुंच गया था. यह पिछले 11 साल का सबसे निचला स्तर था. उसके बाद कोविड संकट आया और हमारी अर्थव्यवस्था दुनिया के तमाम विकासशील देशों में सबसे बुरा परफॉर्मेंस देने वाली अर्थव्यवस्था बन गयी.

एक समय मार्च 2018 में जीडीपी ग्रोथ रेट 8.2 फीसदी था, लेकिन मार्च 2020 में यह घटकर 3.1 फीसदी तक पहुंच गया. उसके बाद तो स्थिति औऱ खराब हो गयी है.
यह तो हुई जीडीपी की स्थिति, अब कर्ज़ की स्थिति जान लीजिए. कुछ दिनों पहले आई बिजनेस इनसाइडर की रिपोर्ट के मुताबिक, पिछले साल सरकार पर कुल कर्ज 147 लाख करोड़ रुपया था. लेकिन तब जीडीपी का आकार 194 लाख करोड़ माना गया था. सरकार ने इस बजट में वित्त वर्ष 2021-22 के लिए 12 लाख करोड़ का एडिशनल कर्ज लेने का फैसला किया है. ऐसे में कर्ज का आंकड़ा 159 लाख करोड़ का हो जाता है. आज देश की जीडीपी सिकुड़ रही हैं तो यह कर्ज और बड़ा दिखाई दे रहा है.

कर्ज-जीडीपी अनुपात में आयी इस जबरदस्त बढ़त का मतलब यह है कि देश अपनी जरूरतों के लिए खर्च बढ़ा नहीं पाएगा और आर्थिक गतिविधियों को भी ज्यादा सहारा नहीं दे पाएगा. अर्थशास्त्रियों ने पहले के अध्ययनों में कहा है कि अगर किसी देश में जीडीपी की तुलना में कर्ज का अनुपात 72 फीसदी से अधिक हो जाता है, तो उसका सीधा असर आर्थिक वृद्धि दर पर पड़ता है. आर्थिक वृद्धि कहने को इस साल बढ़ती हुई दिखेगी, लेकिन सच यह है कि अर्थव्यवस्था को वर्ष 2019 के लेवल पर ले जाने के लिए ही 2 साल का इंतजार करना होगा.
यह सच्चाई है देश की अर्थव्यवस्था की ! और ऐसे में जब यह यह लोग न्यू इंडिया बनाने की बात करते हैं ! आपदा में अवसर की बात करते हैं तो वह हजम नहीं होती.

डिस्क्लेमर : ये लेखक के निजी विचार हैं.

 

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