Satya Sharan Mishra
Ranchi: झारखंड में दलबदलू नेताओं की लिस्ट बड़ी लंबी है. 100 में सिर्फ 10 ही फीसदी नेता होंगे, जिन्होंने पूरी जिंदगी एक ही दल के नाम कर दी. करीब 90 फीसदी नेता दलबदलू हैं. जिन्होंने राजनीतिक महत्वाकांक्षा या सांसद-विधायक बनने की चाह में दल बदला है. इनमें ऐसे नेता भी हैं, जिन्होंने कभी राष्ट्रीय और क्षेत्रीय पार्टियों का प्रदेश में प्रतिनिधित्व किया था. प्रदेश अध्यक्ष बन कर पार्टी में अपना शासन चलाया था, लेकिन एक बार दल बदल कर वापस लौटने के बाद पार्टी के अंदर उनकी हालत न घर की रही न घाट की. ऐसे दलबदलुओं की लिस्ट में कई बड़े नाम हैं.
प्रदीप बलमुचू: प्रदीप बलमुचू कांग्रेस के पुराने सिपाही रहे हैं. कांग्रेस के टिकट पर घाटशिला से जीत कर विधायक बनते रहे हैं. कांग्रेस ने उन्हें राज्यसभा भी भेजा. पार्टी से थोड़ी नाराजगी हुई, तो 2019 के विधानसभा चुनाव से पहले दल बदल लिया. आजसू में चले गये, चुनाव भी लड़े लेकिन हार गये. इसके बाद आजसू में भी हाशिए पर चले गये. तब वापस कांग्रेस में आने की अर्जी लगाई. 6 महीने वेटिंग लिस्ट में रहे तब जाकर दोबारा जगह मिली. फिलहाल कांग्रेस में हैं, लेकिन वहां भी हाशिए पर ही हैं.
सुखदेव भगत: सुखदेव भगत लोहरदगा से कांग्रेस की टिकट पर चुनाव लड़ते रहे हैं. कांग्रेस ने उन्हें प्रदेश अध्यक्ष पद का भी दायित्व दिया. प्रदेश अध्यक्ष रहते उन्होंने कई महत्वपूर्ण फैसले लिये. पार्टी में कलह हुई और नाराज होकर 2019 के चुनाव से पहले उन्होंने पाला बदल लिया. अचानक कांग्रेस की नीति और सिद्धांत से मोह भंग हो गया और नरेंद्र मोदी की नीतियों से प्रभावित होकर भाजपा में चले गये. भाजपा से चुनाव लड़े, हार गये. फिर भाजपा से भी मोह भंग हो गया. कांग्रेस में वापस आने के लिए छटपटाने लगे. 6 महीने तक आवेदन को पेंडिंग रखने के बाद कांग्रेस ने वापस लिया. फिलहाल कांग्रेस में सक्रिय हैं लेकिन फ्रंट लाइन पर नहीं हैं.
जलेश्वर महतो: पूर्व मंत्री और बाघमारा से विधायक रहे जलेश्वर महतो भी दलबदलू नेता हैं. वे जदयू के टिकट पर बाघमारा से चुनाव जीतते रहे हैं. जदयू ने भरोसा करके उन्हें प्रदेश अध्यक्ष के पद का भी दायित्व दिया. लगातार बाघमारा से चुनाव हारने के बाद अपने राजनीतिक करियर को बचाने के लिए उन्होंने कांग्रेस का रुख किया. कांग्रेस में शामिल होने के बाद उन्हें कार्यकारी अध्यक्ष का भी पद मिला, लेकिन कांग्रेस में भी वे कुछ खास कमाल नहीं कर सके. प्रदेश स्तर की राजनीति छोड़ फिलहाल बाघमारा में सियासी जमीन मजबूत करने में लगे हैं.
रवींद्र राय: रवींद्र राय भाजपा के पुराने नेता रहे हैं. पार्टी ने उन्हें राजधनवार सीट से विधायक का टिकट दिया. कोडरमा में सांसद का टिकट दिया. वे पार्टी के अपेक्षाओं पर खरे भी उतरे और चुनाव जीत कर दिखाया. पार्टी ने उन्हें प्रदेश अध्यक्ष का भी पद दिया, लेकिन बीच में उपेक्षा से नाराज होकर वे झाविमो में शामिल हो गये. बाद में वापस भी लौट गये. भाजपा ने गले भी लगाया, लेकिन 2019 के लोकसभा चुनाव में उनका टिकट काट कर राजद से आयी अन्नपूर्णा देवी को दे दिया गया. फिलहाल भाजपा के कार्यक्रमों में नजर तो आ रहे हैं, लेकिन हाशिए पर ही हैं.
हेमलाल मुर्मू: हेमलाल मुर्मू राजमहल क्षेत्र में झामुमो के बड़े नेता रहे हैं. झामुमो के टिकट से राजमहल संसदीय सीट से सांसद भी रहे हैं. झामुमो ने उन्हें विधायक भी बनाया, लेकिन अति महत्वाकांक्षा में उन्होंने पाला बदल लिया और भाजपा में शामिल हो गये. भाजपा ने उन्हें प्रदेश उपाध्यक्ष का पद दिया. उन्हें लोकसभा और विधानसभा चुनाव भी लड़वाया, लेकिन वे चुनाव हार गये. 2024 का चुनाव नजदीक देखते हुए हेमलाल मुर्मू को फिर से अपने पुराने दल की याद आई. वे हाल ही में झामुमो में शामिल हो गये हैं, लेकिन अभी वहां भी हाशिए पर ही हैं.
Leave a Reply