Saurabh Shukla
Ranchi: राज्य सरकार में नियुक्त गैर शैक्षणिक संवर्ग के डॉक्टर किसी भी निजी अस्पताल, नर्सिंग होम या जांच केंद्र में अपनी सेवा नहीं देंगे. इस बाबत स्वास्थ्य, चिकित्सा शिक्षा एवं परिवार कल्याण विभाग के द्वारा निर्देश जारी किया गया है. उक्त निर्देश में उल्लेख किया गया है कि डॉक्टर प्रतिदिन अपने कार्यावधि और ओपीडी के समय किसी भी तरह की निजी प्रैक्टिस नहीं करेंगे. वहीं शहरी क्षेत्र में अस्पताल परिसर से 500 मीटर औऱ ग्रामीण क्षेत्रों में 250 मीटर के परिधि के बाहर निजी प्रैक्टिस कर सकते हैं, लेकिन अपने अस्पताल या क्लिनीक में मरीजों को भर्ती नहीं कर सकते हैं. आयुष्मान भारत-मुख्यमंत्री जन आरोग्य योजना अन्तर्गत राज्य सूचीबद्धता समिति की बैठक 29 जुलाई को हुई थी. इस दौरान सभी जिलों के सिविल सर्जन औऱ सूचीबद्ध अस्पताल को निर्देश का पालन करने का निर्देश दिया गया है.
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आदेश से राज्य के 1800 डॉक्टरों में आक्रोश
स्वास्थ्य विभाग के आदेश के बाद राज्यभर के करीब 1,800 डॉक्टरों में आक्रोश है. ऑल इंडिया मेडिकल एसोसिएशन (आईएमए) और झारखंड स्टेट हेल्थ एसोसिएशन (झासा) ने आगामी 7 अगस्त(रविवार) को बैठक बुलाई है. बैठक में सभी जिलों से पांच-पांच प्रतिनिधि बैठक में शामिल होंगे. इसी दिन डॉक्टर अपने आंदोलन की रूपरेखा तैयार करेंगे.
सरकार की नीति गलत- डॉ. अरूण कुमार सिंह
आईएमए के राज्य अध्यक्ष डॉ. अरुण कुमार सिंह ने कहा, “सरकार की नीति बिल्कुल गलत है. झारखंड में एक तो डॉक्टरों की घोर कमी है. ऐसे में यह निर्णय गलत और बेतुका भी है.” उन्होंने कहा कि 2016 में तत्कालीन स्वास्थ सचिव के विद्यासागर ने भी डॉक्टरों की निजी प्रैक्टिस पर प्रतिबंध लगाया था, लेकिन विरोध के बाद इसे वापस ले लिया गया. एक बार फिर से उसी आदेश को नए सिरे से लागू कर डॉक्टरों के मनोबल को कमजोर करने का काम किया जा रहा है. उन्होंने कहा कि इस संबंध में मख्यमंत्री को भी पत्र लिखा गया है.
सरकार का तानाशाही फरमान- डॉ. प्रदीप कुमार
वहीं इंडियन मेडिकल एसोसिएशन के सचिव डॉं प्रदीप कुमार ने कहा कि सरकार का आदेश डॉक्टरों के लिए तानाशाही वाला फरमान है. उन्होंने कहा कि झारखंड में डॉक्टरों की घोर कमी है. सरकारी चिकित्सक और निजी चिकित्सक बहुत हद तक सेवा को संभाल कर रखा है, लेकिन सरकार का निर्णय हास्यास्पद और मेडिकल ऐथिक्स के विरुद्ध भी है.
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आदेश से मरीजों को होगी परेशानी- डॉ. अजीत कुमार
सरकार के फैसले पर आईएमए-जेडीएन के स्टेट कन्वेनर डॉ. अजीत कुमार ने कहा है कि राज्य सरकार के इस फैसले से मरीजों की परेशानी होगी. ऐसे में मरीजों को संपूर्ण इलाज नहीं मिल पायेगा.
सरकार का फैसला समझ से परे-डॉ. विमलेश सिंह
जबकि झारखंड हेल्थ स्टेट एसोसिएशन (झासा) के राज्य सचिव डॉ. विमलेश सिंह ने कहा कि सरकार और खासकर स्वास्थ विभाग का फैसल समझ से परे है. कोरोना काल में छोटे-छोटे डॉक्टरों ने ही मोर्चा संभाल कर राज्य को संक्रमण के चंगुल से बाहर निकाला था. डॉक्टरों के प्रति सम्मान की भावना के बजाए उन्हें हतोत्सहित करने का प्रयास किया जा रहा है.
सरकार के फैसले में विरोधाभास- डॉ. एके झा
इस बाबत रांची सदर अस्पताल में कार्यरत डॉ. एके झा ने कहा कि सरकार के निर्णय में ही विरोधाभास है. एक तरफ डॉक्टरों को प्राइवेट प्रैक्टिस के लिए भी कहा जा रहा है और दूसरी तरफ बाहर में ओपीडी में इलाज करने वाले डॉक्टरों को सिर्फ रोगी को परामर्श देने की बात कहीं जा रही है. ऐसे में रोगी के आगे की इलाज की प्रक्रिया को कौन पूरा करेगा. इसे स्पष्ट करने की जरुरत है.