Lagatar desk : चार दिवसीय महापर्व छठ की शुरुआत नहाय-खाय से हुई थी. रविवार, 26 अक्टूबर को खरना मनाया गया, जब व्रती ने रात में खीर का प्रसाद ग्रहण किया. इसके बाद उन्होंने 36 घंटे का निर्जला उपवास शुरू किया. आज, 27 अक्टूबर 2025 को छठ का पहला अर्घ्य दिया जाएगा, जो षष्ठी तिथि पर होता है.
डूबते सूर्य को अर्घ्य
पहले अर्घ्य के दिन व्रती दिनभर निर्जला व्रत रखती हैं और शाम को किसी तालाब, नदी या जलकुंभ में जाकर सूर्य देवता की उपासना करती हैं. डूबते सूर्य को दूध और गंगाजल से अर्घ्य दिया जाता है. परंपरा के अनुसार तांबे के लोटे में दूध और जल मिलाकर अर्घ्य देना चाहिए.
छठ पूजा में दो अर्घ्य की परंपरा
छठ पूजा में सूर्य देव को दो बार अर्घ्य दिया जाता है. पहला अर्घ्य संध्या काल में अस्ताचलगामी सूर्य को दिया जाता है (27 अक्टूबर), जबकि दूसरा अर्घ्य प्रातःकाल में उदयमान सूर्य को (28 अक्टूबर) अर्पित किया जाता है.
अर्घ्य का आध्यात्मिक महत्व
संध्या अर्घ्य : डूबते सूर्य को अर्घ्य देने का अर्थ है जीवन में जो भी मिला, उसके प्रति कृतज्ञ रहना. यह हर अंत के साथ नए आरंभ का संदेश देता है.
ऊषा अर्घ्य : उगते सूर्य को अर्घ्य देने का अर्थ है नवजीवन, जागरण और नई ऊर्जा का प्रतीक. यह रात के अंधकार के बाद जीवन में नई शुरुआत का संदेश देता है.इस तरह छठ पूजा केवल परंपरा नहीं, बल्कि आध्यात्मिक संदेश और जीवन के प्रति आभार का पर्व भी है.
Lagatar Media की यह खबर आपको कैसी लगी. नीचे दिए गए कमेंट बॉक्स में अपनी राय साझा करें.

Leave a Comment