Akshay kumar Jha
झारखंड लोक सेवा आयोग यानी जेपीएससी हमेशा से ही विवादों में रहा है. तमाम रुकावटों के बाद हेमंत सरकार जेपीएससी की एक साथ चार परीक्षाएं लेने जा रही है. इसे लेकर सरकार की तरफ से उम्र सीमा को लेकर एक नोटिफिकेशन निकाला गया है. इस नोटिफिकेशन से झारखंड के कई अभ्यर्थी नाराज हैं. उनका कहना है कि एक बार फिर से उनके साथ अन्याय हुआ. झारखंड लोक सेवा आयोग ने संयुक्त सिविल सेवा परीक्षा के लिए जो ताजा नोटिफिकेशन जारी किया है, उसमें प्रारंभिक परीक्षा से पहले ही लाखों छात्रों को वंचित कर दिया गया है.
एक साथ चार परीक्षाओं का नोटिफिकेशन
जेपीएससी ने एक साथ चार परीक्षाओं का नोटिफिकेशन जारी किया है. इसमें उम्र सीमा को लेकर ऐसा घालमेल है कि लाखों उम्मीदवार अब परीक्षा दे ही नहीं पायेंगे. परीक्षा के लिए जो अधिकतम उम्र सीमा तय की गई है, वह 35 साल है. इसकी गणना की तारीख 1 अगस्त 2016 रखी गयी है. पहली नजर में लग रहा है कि 2021 की परीक्षा में 2016 का कट ऑफ डेट छात्रों के फायदे के लिए ही है. लेकिन इस गणित को जरा गौर से समझने की जरूरत है.
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तीन तरीके से समझें कैसे हुआ है गलत
पहला आधार– जेपीएससी का गठन 2002 में हुआ. यदि इस हिसाब से चलें, तो आयोग को अब तक 19 परीक्षाएं आयोजित कर लेनी चाहिए थीं. लेकिन ताजा नोटिफिकेशन से पहले तक सिर्फ 6 परीक्षाएं ही आयोजित की गयीं. मतलब 2008 तक की परीक्षाएं ही हो पायीं हैं. ऐसे में इस नये नोटिफिकेशन में उम्र की गणना 2009 से होनी चाहिए.
दूसरा आधार- इससे ठीक पहलेवाली परीक्षा जो साल 2016 में ली गयी थी, उसमें अधिकतम उम्र की गणना के लिए जेपीएससी ने एक अगस्त 2010 की तारीख तय की थी. यदि उसे भी आधार बनाया जाये, तो इस बार की तारीख एक अगस्त 2011 होनी चाहिए थी.
तीसरा आधार- जो नोटिफिकेशन अभी जारी हुआ है, ठीक यही नोटिफिकेशन पिछले साल भी जारी हुआ था, लेकिन दो दिन के अंदर ही उस नोटिफिकेशन को रद्द कर दिया गया था. आयोग ने उस नोटिफिकेशन में जो अधिकतम उम्र की गणना के लिए जो तारीख तय की थी, वह 1 अगस्त 2011 थी. अब सरकार की तरफ से इसे एक अगस्त 2016 कर दिया गया है. इसे क्या कहा जाये. जिससे झारखंड के दो लाख से ज्यादा अभ्यर्थी ठगा हुआ महसूस कर रहे हैं.
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ढाई से तीन लाख उम्मीदवारों का अवसर छिना
अधिकतम उम्र की गणना की तारीख 1 अगस्त 2016 करने को सही करार देने के पीछे जो तर्क दिये जा रहे हैं, वे लचर हैं. कहा जा रहा है कि इससे युवाओं को अधिक से अधिक अवसर मिलेगा. मगर यह मामला एक-दो दिन या महीने का नहीं है, पूरे 5 साल का है. मान लें कि हर साल यदि 50 हजार नये छात्र परीक्षा में शामिल होते हैं, तो कम से कम ढाई से तीन लाख उम्मीदवार बिना परीक्षा दिये ही नौकरी के अवसर से वंचित हो गये.
हर साल होता है उम्र सीमा को लेकर बखेड़ा
आयोग ने यह काम अनजाने में नहीं किया है. जब से यह परीक्षा ली जा रही है, हर साल उम्र सीमा का बखेड़ा होता है. साल 2003 में पहला नोटिफिकेशन आया, उम्र सीमा की कट ऑफ डेट तय हुई 1 अगस्त 2002 और अधिकतम उम्र सीमा रखी गयी 35. उम्मीदवारों के बवाल के बाद उम्र सीमा बढ़ाकर 37 कर दी गयी. 2005 में दूसरे नोटिफिकेशन में उम्र सीमा 37 से घटाकर 35 कर दी गयी और कट ऑफ डेट को 1 अगस्त 2003 के बजाय 1 अगस्त 2004 कर दिया गया.
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राष्ट्रपति शासन में 40 साल कर दी गयी थी आयु सीमा
तीसरा नोटिफिकेशन आया 2007 में और कट ऑफ डेट 1 अगस्त 2007 की ही रख दी गयी. उम्मीदवारों ने फिर बवाल किया तो कट ऑफ डेट 1 अगस्त 2005 की गयी. हालांकि अधिकतम उम्र की सीमा 35 ही रही. फिर 2010 में आया चौथा नोटिफिकेशन. एक बार फिर कट ऑफ डेट एक अगस्त 2006 के बजाय एक अगस्त 2010 रखी गयी. हालांकि, फिर हंगामा हुआ और तारीख बदलकर एक अगस्त 2006 कर दी गयी. इसी दौरान राज्य में राष्ट्रपति शासन भी था और उस दौरान अधिकतम उम्र सीमा बढ़ाकर 40 वर्ष भी कर दी गयी.
सरकार बनते उम्र 35 और अधिकतम 4 प्रयास की सीमा
अगली सरकार जैसे ही आयी, उसने फिर उम्र सीमा 35 कर दी. इतना ही नहीं, इस सरकार ने तो अधिकतम प्रयास की संख्या भी 4 तय कर दी. जो उम्मीदवार इससे पहले एटेम्प्ट की चिंता नहीं कर रहे थे, वे तो अचानक ही झटका खा गये. ऐसे में यह परीक्षा यूपीएससी से भी ज्यादा बड़ी और महान हो गयी. 2013 में पांचवें नोटिफिकेशन में फिर कट ऑफ डेट एक अगस्त 2007 के बदले एक अगस्त 2009 कर दी गयी. 2016 में छठे नोटिफिकेशन में कट ऑफ डेट एक अगस्त 2010 रखी गयी.
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उम्मीदवारों के मौलिक अधिकार का हनन
राज्य सरकार और जेपीएससी की यह हरकत उम्मीदवारों के मौलिक अधिकार का हनन भी है. संविधान के भाग 3 के अनुच्छेद 16 में यह स्पष्ट है कि लोक नियोजन के विषय में अवसर की समानता मिलेगी. फिर न जाने क्यों झारखंड सरकार और झारखंड लोक सेवा आयोग मिलकर उम्मीदवारों के साथ सांप-सीढ़ी खेल रहे है. हर बार 99 पर पहुंचकर उम्मीदवारों को सांप ऐसा डंसता है कि उनका खेल खत्म हो जाता है. सरकार और आयोग नये नियम बना सकते हैं. लेकिन, उन नियमों से उम्मीदवारों को लाभ होना चाहिए. सबको समान और न्यायोचित अवसर मिलने चाहिए. मगर नये नियमों से तो अवसर ही खत्म हो जा रहे हैं.
कट ऑफ डेट 2016 है, तो उम्र सीमा 40 या 42 की जाये
परीक्षाओं को नियमित करना एक सराहनीय कदम है. किंतु इसके लिए उम्र सीमा की कट ऑफ डेट में ऐसी अनियमितता छात्रों और उम्मीदवारों के साथ भद्दा मजाक है. यदि कट ऑफ डेट अचानक 2016 कर दी गयी है, तो अधिकतम उम्र सीमा को अगले 5 या 10 वर्ष के लिए 40 या 42 साल कर देना चाहिए. इससे ज्यादा से ज्यादा उम्मीदवार इसका लाभ ले सकेंगे. उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ समेत देश के कई राज्यों में यह उम्र सीमा चल रही है. ऐसे में झारखंड जैसे पिछड़े राज्य में उम्र सीमा को बढ़ाना उम्मीदवारों को अवसर देने का बेहतरीन उपाय हो सकता है.