Srinivas
आज से भारत और इंग्लैंड के बीच क्रिकेट टेस्ट सीरीज शुरू हो रहा है. इसका नाम बदल कर एंडरसन-तेंदुलकर ट्रॉफी कर दिया गया है. अब तक इसे इंग्लैंड में पटौदी ट्रॉफी और भारत में एंथनी डी मेलो ट्रॉफी कहा जाता था. अब दोनों देशों में इस सीरीज को एंडरसन-तेंदुलकर ट्रॉफी के नाम से जाना जायेगा. ट्रॉफी का नाम बदले जाने की इस खबर से सचिन तेंदुलकर के प्रति मेरे मन में रहा सहा लगाव भी खत्म हो गया!
वैसे तो हमेशा से मानता रहा हूं कि अच्छा कलाकार या खिलाड़ी या प्रसिद्ध लेखक भी इंसान के रूप में अच्छा और महान इंसान हो, यह कतई जरूरी नहीं! फिर भी हम अपेक्षा पालते हैं, और धोखा खा जाते हैं!
कोई शक नहीं कि सचिन तेंदुलकर अपने समय के बड़े खिलाड़ियों में शामिल था! अपनी चमकदार बल्लेबाजी से उसने हम भारतीयों (क्रिकेट प्रेमी) का मान बढ़ाया, भरपूर आनंद दिया, गौरव के पल भी. दर्शकों का भरपूर प्यार भी मिला. मगर... अंततः निराश किया!
‘यूपीए’ सरकार की कुछ गलतियों की सूची बनानी हो, तो मैं सचिन को ‘भारतरत्न’ सम्मान देने और राज्यसभा में मनोनीत करने को सबसे ऊपर गिनूंगा! मैं अपेक्षा कर रहा था कि सचिन इस तरह के सम्मान, खास कर राज्यसभा की सदस्यता लेने से खुद विनम्रतापूर्वक इनकार कर देगा. मगर ऐसा नहीं हुआ! मुझे नहीं पता कि राज्यसभा की बैठकों में वह कितनी बार शामिल हुआ, बहस में कोई सार्थक योगदान तो दूर की बात है.
अब यह नया ‘कारनामा’, ‘पटौदी ट्राफी’ बदला जाना! ‘पटौदी’ बोले तो मंसूर अली खां पटौदी. यानी ‘तैमूर’ के दादा, अभिनेता सैफ अली के पिता, अपने समय की मशहूर अभिनेत्री शर्मिला ठाकुर पटौदी के मरहूम पति. उनके पिता (इफ्तिखार अली खां पटौदी) तो शायद अकेले ऐसे भारतीय खिलाड़ी रहे, जो पहले इंग्लैंड की तरफ से खेले, आजादी के बाद भारतीय टीम के कप्तान रहे. क्या पता, वह भी ‘तुष्टीकरण’ का मामला रहा हो!
यदि ट्राफी का कोई और नाम रखा जाता, तब भी आपत्ति होती, मगर तब इसे लिखने की जरूरत महसूस नहीं होती. पता नहीं इस नाम बदलने के पीछे ‘पटौदी’, यानी ‘मंसूर अली’ से मौजूदा निजाम की शाश्वत और ‘स्वाभाविक’ चिढ़ है या नहीं, वैसे कहने को यह फैसला दोनों देशों के क्रिकेट बोर्ड का सामूहिक फैसला है. मगर बीसीसीआई के पैसे में वजन बहुत है, तो स्वाभाविक ही संदेह होता है, यह ‘सुझाव’ शायद इधर का ही हो! 'छोटे शाह' तो अब आईसीसी के भी मुखिया हैं! जाहिर है, सचिन से सहमति ली ही गयी होगी.
हम जैसों के लिए सचिन से भी बड़े बल्लेबाज सुनील गावस्कर ने भी, सचिन का नाम लिये बिना इस पर हैरानी जतायी है. साथ ही इस बदलाव को उचित ही ‘पटौदी’ पिता-पुत्र के योगदान को नकारने जैसा कृत्य भी कहा है!
गावस्कर ने लिखा है- ‘This is the first time one has heard of a trophy named after individual player being retired. It shows a total lack of sensibility to the contribution made by the Pataudis to cricket in both England and India. There may made well be a new trophy named after more recent player and here’s hoping that if any Indian player has been approched he will have the good sense to politely decline.’
कभी छोटे कद के सचिन ने अपने बल्ले से अपना कद बहुत ऊंचा कर लिया था, मगर मैदान के बाहर अपने आचरण से उसने बार बार साबित किया कि वह बौना ही था और है!