Shyam Kishore Choubey
सीट शेयरिंग और कैंडिडेट डिक्लरेशन के बाद तो साक्षात महाभारत का सीन बन गया. 30 नवंबर 2019 से 20 दिसंबर 2019 के बीच पांच चरणों में यह चुनाव होना था. इसलिए कैंडिडेट के नाम बारी-बारी से घोषित किये जा रहे थे, फिर भी प्रथम चरण के मतदान के लिए नॉमिनेशन के कुछ अरसा पहले से ही चुनावी मैदान सज गया था. पहले भी ऐसा ही होता रहा था. मानव सभ्यता के इतिहास में कुरुक्षेत्र के मैदान में लड़े गये सबसे बड़े युद्ध महाभारत के लिए तो एक ही जगह सेनाएं सजती थीं. लेकिन यहां तो 81 कुरुक्षेत्र थे. महाभारत का महायुद्ध 18 दिनों तक चला था, इस झारखंडी महाभारत की इति 21 दिनों की मियाद वाली थी.
महाभारत में भाग लेनेवाले राजे-महाराजे निकट संबंधी थे. उनका साथ देनेवाले भी वैसे ही निकट संबंधी थे. यहां भी तो वैसा ही था न! एनडीए फोल्डर दो भागों में बंटकर आमने-सामने था तो यूपीए खेमा भी दो भागों में बंटा हुआ था और वैसे ही आमने-सामने था. इस हिसाब से शुरुआती दौर में पचासेक सीटों पर चतुष्कोणीय युद्ध का अंदाजा लगाया जा रहा था. हकीकत यही नहीं थी. झारखंड के चुनावी इतिहास में पहली बार डुएल फाइट हो रही थी, या तो भाजपा के पक्ष में या भाजपा के विरोध में. इतिहास बस इसी मायने में खुद को दोहरा रहा था कि शहरी क्षेत्रों में भाजपा का परचम लहरा रहा था, तो देहाती और जंगल क्षेत्रों में भाजपा की आहट कम थी.
भारत के राजनीतिक तीर्थ दिल्ली में बैठे चुनावी पंडित कुछ और अनुमान लगा रहे थे. यहां तक कि रांची में भी कई बड़े पत्रकार और समीक्षक हठात भाजपा का किला ध्वस्त हो जाने की बात से असहमत रहते थे. ऐसे लोग इनर करंट की बातें करते नहीं थकते थे. अलबत्ता, जिन पत्रकारों ने फील्ड रिपोर्टिंग की जहमत उठायी, वे भाजपा की जय-विजय के प्रति आशंकित थे. जिन लोगों ने अभी से तीन महीने पहले मार्च-अप्रैल में हुए पश्चिम बंगाल चुनाव में दिलचस्पी ली होगी, वे दिमाग पर जोर डालें तो साफ पता चलेगा कि 2019 के झारखंड विधानसभा चुनाव का दृश्य बंगाल में अवतरित हो गया था. भाजपा और यूपीए के लिए यह चुनाव कितना अहम था, इसका अंदाजा इनके लीडरान की चुनावी सभाओं से भी लगाया जा सकता है. तत्कालीन मुख्यमंत्री और भाजपा के मुख्यमंत्री का घोषित चेहरा रघुवर दास ने 102 सभाएं की.
जबकि तत्कालीन नेता प्रतिपक्ष और यूपीए के चुनाव लीडर तथा भावी मुख्यमंत्री का चेहरा हेमंत सोरेन 126 सभाएं की. इसके साथ ही आजसू अध्यक्ष सुदेश महतो ने 142 और जेवीएम प्रमुख बाबूलाल मरांडी ने सर्वाधिक 158 सभाएं की. झामुमो प्रमुख शिबू सोरेन ने 28 और तत्कालीन भाजपा प्रमुख अमित शाह ने 11 सभाओं/रैलियों में भाग लिया. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने गुमला, खूंटी, बरही, बोकारो, डालटनगंज, जमशेदपुर, धनबाद, दुमका और बरहेट मिलाकर नौ स्थानों पर रैलियां की. राहुल गांधी ने पांच स्थानों सिमडेगा, राजमहल, बड़कागांव, खिजरी और महगामा, जबकि विशेष मांग पर प्रियंका गांधी ने केवल एक जगह पाकुड़ में रैली की.
अत्यंत सुहाने मौसम में हुए इस चुनाव में भाजपा और कांग्रेस के अन्य नेताओं ने भी अपना खूब पसीना बहाया. न केवल राजनीतिक दलों, अपितु राज्य के लिए भी यह अबतक का सबसे अधिक महत्वपूर्ण चुनाव था. चूंकि राज्य ने पांच साल पहले पहली बार बहुमत की ऐसी सरकार चुनी थी, जिसने निश्चिंततापूर्वक अपना कार्यकाल पूरा किया, इसलिए अबकी बार हर किसी की नजर इस बात पर थी कि क्या होगा? कहीं त्रिशंकु विधानसभा तो नहीं बनेगी? भाजपा के लिए चुनौती थी खुद को रिटेन करने की, जबकि यूपीए के समक्ष सत्ता छीन लेने का यक्ष प्रश्न खड़ा था. छह महीने पहले देश ने भाजपा को वरा था, इसलिए यूपीए के लिए यह जीवन-मरण का प्रश्न था. इसलिए भले ही चार-साढ़े चार वर्षों तक वह बहुत कुछ न कर पाया था. लेकिन पिछले छह महीने से राज्य के नेताओं ने दुगने उत्साह के साथ खुद को झोंक रखा था. उसको लगता था कि अभी नहीं तो कभी नहीं.
जैसे-जैसे चुनावी चरण समाप्त होते गये, जनसामान्य में जिज्ञासा और प्रतिद्वंद्वी राजनीतिक दलों में बेचैनी बढ़ती गयी. उसी दौर में एक दिन अचानक आ पहुंचे ‘अमर उजाला’ के सलाहकार संपादक विनोद अग्निहो़त्री. वे राज्य की चुनावी नब्ज पर रिपोर्ट करने के लिए आए थे. ‘अमर उजाला’ हालांकि झारखंड में आता-बिकता नहीं है, फिर भी इस मीडिया समूह की दिलचस्पी पर मुझको थोड़ी हैरानी हुई. हम दोनों रेगुलर रिपोर्टर की तरह निकल पड़े. चुनावी इलाकों में जाने के बाद जो सीन नजर आया, वह रांची में बैठकर नहीं जाना जा सकता था.
भाजपा की बेचैनी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की कम से कम दो रैलियां इंगित करती हैं. एक तो उनकी जमशेदपुर की रैली और दूसरी बरहेट की. जब उनको मुख्यमंत्री की उस जमशेदपुर सीट पर रैली करनी पड़ी, जिस पर रघुवर दास लगातार पांच बार विजयी रहे थे, तो वहां की स्थिति खुद-ब-खुद स्पष्ट हो जाती है. मतदान से तीन दिन पूर्व 17 दिसंबर 2019 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी बरहेट जैसी छोटी सी जगह में रैली करने से महज दो दिन पहले वहां से 70 किलोमीटर दूर दुमका में रैली कर चुके थे. यह उनके मन-मिजाज के अनुकूल कतई नहीं था. इसका मतलब साफ था, भाजपा इन सीटों पर जीत के लिए बिलकुल मुतमइन नहीं थी.
प्रधानमंत्री की रैली की दूसरी रात करीब डेढ़ बजे बरहेट में हमारी और विनोद जी की मुलाकात के दौरान हेमंत ने व्यंग्यात्मक लहजे में एक बात कही, जिससे हम सभी हंस पड़े थे. विनोद जी ने सवाल किया था कि दो दिन के अंतर पर आपकी दोनों सीटों पर पीएम की रैली को आप किस प्रकार ले रहे हैं? छूटते ही हेमंत ने कहा, देखते जाइये हम उनको पंचायत चुनाव में भी रैली करने को बाध्य कर देंगे.
अगली सुबह हेमंत के पक्ष में चुनाव प्रचार के लिए सरयू राय दुमका आ धमके.
निजी बातचीत में उन्होंने कहा, हेमंत और झामुमो ने जमशेदपुर पूर्वी में हमारा नैतिक समर्थन किया तो हमारा भी दायित्व बनता है उनका सहयोग करने का. (जारी)
डिस्क्लेमर : ये लेखक के निजी विचार हैं.
बहुत ही अच्छे ढंग से चलचित्र की तरह एक एक घटना जीवंत हो उठती है।अनिल आर्या