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Ranchi: हाईकोर्ट ने डीएफओ रजनीश कुमार और आरसीसीए डी वैंकटेश्वरला को न्यायालय के अवमानना का दोषी करार दिया है. हालांकि न्यायालय ने सुप्रीम कोर्ट के आदेश के आलोक में इन दोनों अधिकारियों के अवमानना के मामले में सजा नहीं सुनाई है.
अवमानना को दोषी करार अधिकारियों को सुप्रीम कोर्ट में अपनी बात कहने के लिए आठ सप्ताह का समय दिया है. पूरा प्रकरण तेतुलिया के 74.38 एकड़ जमीन से संबंधित है.
हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश एमएस रामचंद्र राव और न्यायाधीश दीपक रौशन की पीठ ने अवमानना से संबंधित मामले में सुनवाई पूरा करने के बाद 17 अप्रैल 2025 को अपना फैसला सुनाया.
इजहार हुसैन से जमीन खरीदने वाली उमायुष मल्टीकॉम प्राइवेट लिमिटेड नामक कंपनी ने हाईकोर्ट में अवमानना याचिका दायर की थी. इसमें यह कहा गया था कि कंपनी ने 10 फरवरी 2021 को इजहार हुसैन व अख्तर हुसैन से तेतुलिया मौजा की 74.38 एकड़ जमीन खरीदी थी.
इजहार हुसैन की इस जमीन पर सरकार की ओर से यह दावा किया गया था कि जमीन प्रोटेक्टेड फॉरेस्ट है. जमीन से जुड़े दोनों मामलों (WPC 593/2017 और (LPA786/2018) में सरकार हार गयी.
इसके बाद यह मामला (SLP 8108/2021) सुप्रीम कोर्ट पहुंचा. सुप्रीम कोर्ट से भी सरकार को राहत नहीं मिली. सुप्रीम कोर्ट से याचिका रद्द होने के बाद बोकारो के डीएफओ रजनीश कुमार की ओर से एक पत्र जारी किया गया. पत्र में कंपनी को गैर- वानिकी काम नहीं करने का निर्देश दिया गया.
इसके बाद कंपनी की ओर से हाईकोर्ट में एक अवमानना याचिका दायर की गयी. इसमें कहा गया कि डीएफओ जानबूझ कर हाइकोर्ट द्वारा दिये गये फैसलों के रोकने के लिए तरह तरह के तरीके अपना रहे हैं. इसलिए इस मुद्दे पर डीएफओ के खिलाफ अवमानना के मामले में कार्रवाई की जानी चाहिए.
न्यायालय ने याचिका की सुनवाई के बाद डीएफओ को यह आदेश दिया कि वह बोकारो के तेतुलिया जमीन मामले में हाईकोर्ट के फैसलों के प्रभावित करने के लिए जारी किये गये पत्रों को वापस लें. लेकिन डीएफओ रजनीश कुमार ने आरसीसीएफ डी वेंक्टेश्वरला द्वारा जारी किया गया एक पत्र कोर्ट में पेश किया. साथ ही यह भी कहा कि वह संबंधित जमीन पर गैर-वानिकी कार्य रोकने से संबंधित जारी किये गये पत्रों को वापस नहीं ले सकते हैं.
डीएफओ द्वारा न्यायालय में शपथ पत्र के माध्यम से इस बात को कहे जाने के बाद न्यायालय ने आवमानना याचिका में आरसीसीएफ डी. वैंक्टेश्वरला को भी प्रतिवाद बना दिया. इसके बाद सरकार ने कंटेम्प्ट पिटिशन के खिलाफ एसएलपी दायर की.
सुप्रीम कोर्ट ने मामले की सुनवाई के बाद सरकार को अपनी बात हाईकोर्ट में कहने का निर्देश दिया. साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट को यह निर्देश दिया कि अवमानना को दोषी पाये जाने के बाद हाईकोर्ट आठ सप्ताह तक सजा नहीं सुनाये.
सुप्रीम कोर्ट के निर्देश के आलोक में हाईकोर्ट में दोनों अधिकारियों को दोषी करार दिया. लेकिन सजा नहीं सुनायी. हाईकोर्ट ने अवमानना के दोषी पाये गये अधिकारियों को सुप्रीम कोर्ट जाने की आजादी दी.
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