alt="" width="600" height="400" /> जात्रा घट के दूसरे दिन यानी आज वृंदावन यात्रा निकली जायेगी. इसमें दो लड़के वृंदावन से दो चटिया चटनी (चिड़िया) लेकर राजदरबार आयेंगे. इनकी पूजा करने के बाद इसे उड़ा दिया जायेगा. तीसरे दिन (12 अप्रैल) को राजदरबार में छऊ नृत्य का आयोजन होगा. चौथे दिन (13 अप्रैल) मेलू यात्रा जलाभिषेक होगा. लाखों की संख्या में आये श्रद्धालु मां भगवती के साथ स्थापित काशी विश्वनाथ की शिवलिंग में जलाभिषेक करेंगे. इसी दिन रात में मंदिर परिसर में छऊ नृत्य का आयोजन किया जायेगा. पांचवें दिन (14 अप्रैल) को अहले सुबह चार बजे कालिका घट यात्रा निकाली जायेगी. इस दिन डाहनी डूबा से घटवाली (मां का स्वरूप लेकर) कलश में पानी भरकर मंदिर आयेंगी. फिर भोक्ता (श्रद्धालु) दहकते अंगारों पर चलकर व कांटों पर लेटकर अपनी आस्था प्रकट करेंगे. इसी के साथ पूजा का समापन होगा. इधर केरा मंदिर में रोजाना पूजा अर्चना व दर्शन के लिए बड़ी संख्या में श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ रही है. इधर मेले में भी तरह-तरह के झुले, खेल, तमाशे, खानपान की सामाग्रियों के अलावा पूजा संबंधित सामाग्री व अन्य दुकान लगे हैंं. 13 व 14 अप्रैल को यहां बड़ी संख्या में श्रद्धालु पहुंचेंगे. मंदिर व मेला संचालन समिति इसकी तैयारियों में जुटी है.
alt="" width="600" height="400" /> मां भगवती मंदिर प्रबंध समिति के अध्यक्ष कुंवर दीपक कुमार सिंहदेव ने बताया कि इस ऐतिहासिक मेले में चक्रधरपुर व आसपास क्षेत्र के अलावा झारखंड के अन्य जिलों, ओडिशा, बिहार, छत्तीसगढ़ और बंगाल से भी बड़ी संख्या में श्रद्धालु आते हैं. दीपक सिंहदेव ने बताया कि यह एक सिद्धपीठ मंदिर है. यहां आकर अगर कोई सच्चे मन से कुछ मांगता है तो उसकी मनोकामना पूरी होती है. मां भगवती के दरबार से कोई भी खाली हाथ नहीं लौटता. जानें यात्रा घट के पीछे की रोचक कहानी कुंवर दीपक ने बताया कि करीब 300 साल पहले भवानीपुर (केरा मंदिर) में एक परिवार हुआ करता था. काफी कोशिशों के बाद भी इस परिवार में बच्चा नहीं हो रहा था. ऐसी मान्यता है कि इस परिवार की महिला मां केरा को बहुत मानती थी. हर रोज मंदिर में पूजा- अर्चना करती थी. चैत्र पर्व के दौरान महिला ने मां के लिए निर्जला उपवास रखा. साथ ही मानसिक रखा कि अगर उसको संतान की प्राप्ति होगी तो वो हर साल निर्जला उपवास रखेगी. मां ने अपने भक्त की पुकार सुन ली. अगले ही साल उस महिला मे एक बच्चे ने जन्म दिया. ये परिवार कोई और नहीं, बल्कि खुद राजा साहेब लोकनाथ सिंहदेव का था. मां के आशीर्वाद से इस परिवार में 8 बच्चों ने जन्म लिया. धीरे-धीरे यह बात लोगों को पता चली. इसके बाद से यात्रा घट में श्रद्धालु निर्जला उपवास और अध्या देने लगे. तब से लेकर आज तक चैत्र के दौरान धूमधाम से यात्रा घट मनाया जाने लगा.
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