बसंत मुंडा
Ranchi: ऐतिहासिक पहचान को संजोए नागवंशी राजाओं द्वारा निर्मित प्राचीन मंदिरों का अब भव्य जीर्णोद्धार किया जा रहा है. पहाड़ी मंदिर, जगन्नाथ मंदिर, राम मंदिर और चुटिया स्थित श्री श्री प्राचीन इक्कीसो महादेव धाम ये सभी मंदिर सबसे पुरानी मंदिर है. जो रांची की धार्मिक और सांस्कृतिक धरोहर का प्रतीक हैं. इन चारों मंदिरों का इतिहास नागवंशी शासन से जुड़ा है और इन्हीं के बाद शहर के विभिन्न हिस्सों में अन्य मंदिरों का निर्माण शुरू हुआ था.
अब चुटिया में कान्यकुब्ज स्वर्णकार समिति की ओर से श्री श्री प्राचीन इक्कीसो महादेव धाम में पहली बार मां पार्वती की प्रतिमा स्थापित होगी. इसके साथ ही ब्रह्मा, गणेश और दुर्गा माता की भी प्राण-प्रतिष्ठा की जाएगी. यह मंदिर करीब 10 डिसमिल भूमि पर बन रहा है और वर्ष 2027 तक इसका निर्माण कार्य पूरा हो जाएगा.
अनोखी मूर्तिकला से सजा मंदिर द्वार
पुजारी काशीनाथ पांडेय ने बताया कि मंदिर के मुख्य द्वार पर नागवंशी राजाओं द्वारा राम, लक्ष्मण और हनुमान की मूर्तियां स्थापित की गई हैं, जो भगवान शिव की उपासना करते दिखाई देती हैं. द्वार के ठीक सामने शिवलिंग और नागदेवता की प्राण-प्रतिष्ठा की गई है. मंदिर के ऊपरी हिस्से में सूर्य भास्कर का चित्रण और पांच नाग देवताओं की फन दिखाते हुए भव्य मूर्तियां सजाई गई हैं. दोनों पिलरों पर भूरे रंग के नागदेवता और हाथी की सूंड भी कलात्मक रूप से उकेरे गए हैं.
50 साल बाद पुनः प्राण-प्रतिष्ठा
पुजारी ने बताया कि लगभग 50 वर्ष पूर्व एक अज्ञात व्यक्ति द्वारा मंदिर में स्थापित शिवलिंगों को क्षतिग्रस्त कर दिया गया था. इसके बाद शिवलिंगों को हटा कर नए शिवलिंग की विधिपूर्वक प्राण-प्रतिष्ठा की गई. वे पिछले 10 वर्षों से इस मंदिर में पूजा-अर्चना कर रहे हैं और मानते हैं कि ध्यान अवस्था में भोलेनाथ स्वयं भक्तों को संकेत देते हैं. मन्नत मांगने पर यहां श्रद्धालुओं की इच्छाएं पूरी होने का विश्वास है.
दो नदियों के संगम पर विराजमान 21 शिवलिंग
मंदिर परिसर में नागवंशी राजाओं द्वारा दो नदियों हरमू नदी और स्वर्णरेखा नदी के संगम पर 21 शिवलिंग स्थापित किए गए हैं. यह सभी शिवलिंग पत्थरों को काटकर बारीक से नक्काशी के साथ बनाए गए हैं. बारिश के मौसम में ये शिवलिंग जल में समा जा चुके है. जो एक दिव्य दृश्य उत्पन्न करता है.
कालसर्प दोष निवारण का केंद्र
पुजारी के अनुसार इस मंदिर में विशेष रूप से कालसर्प दोष से पीड़ित श्रद्धालु बड़ी संख्या में पहुंचते हैं. पहले यह मंदिर स्वर्णरेखा नदी के भीतर स्थित था, लेकिन नदी के विकराल रूप को देखते हुए इसे अब किनारे पर पुनर्निर्मित किया गया है.