Ranchi : झारखंड में कभी दहशत का पर्याय माने जाने वाला उग्रवादी संगठन पीपुल्स लिबरेशन फ्रंट ऑफ इंडिया (PLFI) अब अपने अस्तित्व को बचाने के लिए संघर्ष कर रहा है. संगठन के शीर्ष नेतृत्व के लगातार मारे जाने या गिरफ्तारी में आने के बाद अब यह संगठन गंभीर संकट के दौर से गुजर रहा है.
पीएलएफआई को सबसे बड़ा झटका तब लगा जब संगठन का सुप्रीमो दिनेश गोप को गिरफ्तार कर लिया गया और शीर्ष कमांडर मार्टिन केरकेट्टा को पुलिस ने मुठभेड़ में मार गिराया. इससे पहले जीदन गुड़िया जैसे बड़े उग्रवादी भी मारे जा चुके हैं. जबकि कृष्णा यादव जैसे नेताओं को गिरफ्तार किए गए हैं. पुलिस की लगातार कार्रवाई के चलते संगठन की ताकत कमजोर हो गई है.
अब सिर्फ दो इनामी नक्सली बचे
गौरतलब है कि पीएलएफआई के शीर्ष नेताओं के खात्मे के बाद अब केवल दो इनामी उग्रवादी बलराम लोहरा और सैमुएल बुढ़ बचे हैं. बलराम लोहरा पर दो लाख, जबकि सैमुएल बुढ़ पर एक लाख रुपये का इनाम घोषित है.
इनके अलावा संगठन के अधिकतर बड़े चेहरे या तो मारे जा चुके हैं या जेल में बंद हैं, जिससे इसकी संगठनात्मक क्षमता पर गहरा असर पड़ा है. संगठन को अब अपने अस्तित्व को बचाने के लिए काफी जूझना पड़ रहा है.
पीएलएफआई का एकमात्र दस्ता बचा, वो भी कमजोर
झारखंड पुलिस मुख्यालय की रिपोर्ट के अनुसार, अब पीएलएफआई का सिर्फ एक दस्ता गुमला के कामडारा इलाके में सक्रिय है. यह दस्ता 15 लाख रुपये के इनामी अमृत के नेतृत्व में चल रहा था. इस दस्ते में कुल आठ उग्रवादी हैं. हालांकि मार्टिन केरकेट्टा के मारे जाने के बाद यह दस्ता अब कमजोर हो गया है.
कभी पूरे झारखंड में था असर, अब इतिहास बनने की कगार पर
पीएलएफआई की स्थापना 20 जुलाई 2007 को हुई थी. हालांकि इसकी नींव 2001 में माओवादी कमांडर मसीह चरण पूर्ति द्वारा बनाए गए एक अलग दस्ते से जुड़ी हैं. पूर्ति ने भाकपा माओवादी संगठन से अलग होकर अपना दस्ता बनाया था. शुरुआत में यह दस्ता खूंटी जिले के गुल्लु क्षेत्र में सक्रिय था. जिसके बाद इसने सिलादोना और मारंगहादा में अपना प्रभाव बढ़ाया.
2006 में इस दस्ते का झारखंड लिबरेशन टाइगर्स (जेएलटी) में विलय हो गया और 2007 में इसे पीएलएफआई का नाम मिला. संगठन का नाम मिलने के बाद, दिनेश गोप का वर्चस्व तेजी से बढ़ा. उसने मनोवैज्ञानिक तरीकों का इस्तेमाल कर लोगों को अपने साथ जोड़ा.
गोप ने मुफ्त स्कूल खोले, गरीब लड़कियों की शादी कराई और स्थानीय विवादों को सुलझाने में मदद की. इस तरह उसने लोगों का विश्वास जीता और कई लोगों को अपने संगठन से जोड़ा.
उसके नेटवर्क में पुलिस अधिकारी से लेकर राजनेता तक शामिल थे. इस नेटवर्क की मदद से दिनेश गोप ने अपना संगठन झारखंड के कई जिलों में फैलाया.
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