Deoghar : नवजात शिशु में दिन-प्रतिदिन बहरेपन की समस्या बढ़ती जा रही है. माता-पिता को नवजात के जन्म के कुछ समय बाद इसका पता चलता है. देरी से पता चलने के कारण बहरेपन का इलाज उतना सफल नहीं रहता. बहरेपन के कारण आगे चलकर बच्चे को बोलने में परेशानी होती है. टेस्ट करवाने से बहरेपन का पता चलता है. समय से इलाज होने पर बहरेपन की समस्या ठीक हो सकती है तथा नवजात बोल-सुन सकता है. इस रोग के विशेषज्ञ डॉ. एमएन भट्टाचार्य ने बताया कि जांच में बहरेपन का पता चलने पर तुरंत इलाज शुरू करवाना चाहिए. इसके लिए माता-पिता को नवजात का हियरिंग स्क्रीनिंग टेस्ट करवाना चाहिए. बहरा और गूंगा होने पर जन्म के 8 माह से 5 साल तक ही सर्जरी कारगर है. कॉक्लियर इंप्लांट सर्जरी से बहरेपन और गूंगेपन का इलाज किया जाता है. इंप्लांट के बाद अंतराल-अंतराल पर थेरेपी करवाना अनिवार्य. देश के बड़े शहरों में निजी और सरकारी अस्पतालों में इलाज उपलब्ध है. उन्होंने बताया कि गर्भवती महिला चोटिल होने पर, वैक्टर जनित रोग से ग्रसित होने, नवजात के जन्म के समय ऑक्सिजन की कमी, परिवार में वंशानुक्रम बहरेपन और गूंगेपन की समस्या हो तो हियरिंग स्क्रीनिंग टेस्ट करवाना जरूरी है. बहुत जरूरी होने पर ही नवजात को एंटीबायोटिक दवा दें. इसके इस्तेमाल से बहरेपन और गूंगेपन की संभावना बढ़ती है. यह भी पढ़ें : फाइनल">https://lagatar.in/chief-minister-invitational-football-competition-concludes-after-the-final-match/">फाइनल
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नवजात शिशु में बढ़ रहा है बहरेपन की समस्या, एंटीबायोटिक दवा खतरनाक

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