NewDelhi : सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को केंद्र सरकार से पूछा कि वह दिल्ली में तीन कृषि कानूनों का विरोध कर रहे किसानों द्वारा सड़क की नाकेबंदी को हटाने के लिए क्या कर रही है? सुप्रीम कोर्ट ने चिंता व्यक्त करते हुए कि सड़कों पर हमेशा के लिए कब्जा नहीं किया जा सकता. जस्टिस संजय किशन कौल की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा कि किसी समस्या का समाधान न्यायिक मंच, आंदोलन या संसदीय बहस के माध्यम से किया जा सकता है, लेकिन सड़कों को अवरुद्ध नहीं किया जा सकता है और यह एक स्थायी समस्या नहीं हो सकती है. पीठ ने कहा, हम पहले ही कानून बना चुके हैं और आपको इसे लागू करना होगा, अगर हम अतिक्रमण करते हैं तो आप कह सकते हैं कि हमने आपके अधिकार क्षेत्र में अतिक्रमण किया है. कुछ शिकायतें हैं जिनका निवारण किया जाना चाहिए. सुप्रीम कोर्ट ने सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता और एडिशनल सॉलिसिटर जनरल(एएसजी) केएम नटराज से विशेष रूप से पूछा कि सरकार इस मामले में क्या कर रही है?
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जवाब देते हुए श्री मेहता ने कहा कि बहुत ही उच्च स्तर पर एक तीन सदस्यीय समिति का गठन किया गया है. हमने उन्हें (आंदोलनकारी किसानों को) बैठक में शामिल होने के लिए आमंत्रित किया, लेकिन वे बैठक में शामिल नहीं हुए. इस क्रम में मेहता ने मोनिका अग्रवाल द्वारा दिल्ली व नोएडा के बीच आवाजाही में हो रही परेशानी को लेकर दायर याचिका में आंदोलनकारी किसान समूहों को पक्षकार बनाने के लिए अदालत की अनुमति मांगी. बता दें कि SC ने केंद्र सरकार को इस संबंध में एक आवेदन दायर करने की अनुमति दे दी. मामले की अगली सुनवाई सोमवार को होगी. जान लें कि पिछले सप्ताह हरियाणा सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा दायर कर कहा था कि वह दिल्ली से सटे राज्य और राष्ट्रीय राजमार्गों पर सड़कों पर जमे बैठे किसानों को सड़कों से हटने के लिए मनाने के अपने प्रयास जारी रखेगी, भले ही किसान इस मुद्दे को हल करने के लिए गठित पैनल से मिलने के लिए आगे नहीं आये.
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कृषि कानूनों के खिलाफ सड़कों पर जमे हैं किसान
जान लें कि तीन केंद्रीय कानूनों के विरोध में नवंबर से हजारों किसान दिल्ली, हरियाणा और उत्तर प्रदेश की सीमाओं और इन राज्यों के राजमार्गों पर डेरा डाले हुए हैं, इन मार्गों पर वाणिज्यिक गतिविधियों को प्रभावित हुआ है और कई बिंदुओं पर यातायात को डायवर्ट किया गया है जिससे यात्रियों की यात्रा के समय में काफी वृद्धि हुई है. 23 अगस्त को हुई पिछली सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि यह सुनिश्चित करना केंद्र और राज्यों की जिम्मेदारी है कि आंदोलनकारी सार्वजनिक सड़कों को अवरुद्ध न करें [wpse_comments_template]
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