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सूराख के बाद समंदर में टाइटैनिक की तरह भारत के हालात

Faisal Anurag

उस जहाज का डूबना तो तय ही था, जिसके सर्वोत्तम होने के दावे किये गये थे. टाइटैनिक का डूबना हादसे कहीं ज्यादा नेतृत्व की अक्षमता भी थी. जब हिमखंड से टकराने के बाद उस जहाज में सूराख हुआ और यात्रियों के सामने मौत तांडव करती हुई नजर आने लगी, तो जहाज के कप्तान स्मिथ ने तेज गति में संगीत बजाने का हुक्म जारी कर दिया. फिर लाइफ बोट की कहानी भी तो किसी से छुपी नहीं है. जब टाइटैनिक जहाज़ डूब रहा था, तो लाइफ़ बोट्स को अव्वल दर्जों के मुसाफिरों के लिए आरक्षित कर दिया गया था और बाकियों को मरने के लिए छोड़ दिया गया था. इस तथ्य को भी याद कीजिए, जब हिमखंड की चेतावनियों को नजरअंदाज कर टाइटैनिक की गति को तेज करने का हुक्म दिया गया था.

मीडिया पांच राज्यों के एक्जिट पोल पर कर रहा बहस

जब भारत में चारों ओर हाहाकार है और न जाने कितने परिवारों को अपने प्रियजनों को खोना पड़ रहा है, मीडिया इसे फोकस करने के बजाय पांच राज्यों के एक्जिट पोल पर बहस करा रहा है. चुनाव हो गये, उसकी भारी कीमत देश को चुकानी पड़ रही है. तो क्या मीडिया लोगों के दिमाग को भटकाने का प्रयास नहीं कर रहा है. हो सकता है कि इससे सरकार को लगे कि मीडिया उसके बचाव की राह बना रही है. लेकिन उन लोगों का क्या होगा, जो अब भी आक्सीजन, दवा और बेड के लिए परेशानहाल हैं. केरल को छोड़ कर देश के हर राज्य से अब भी ऐसी अपील सोशल मीडिया पर जारी की जा रही है. ऐसे भी बहुत लोग हैं जो पॉजिटिव हो गये हैं, लेकिन उन्हें किसी डाक्टर से जान पहचान नहीं होने के कारण टेलीपरामर्श के लिए भी बेचैन होना पड़ रहा है.
कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने अपने एक ताजा बयान में ठीक ही कहा है.

अख़बार द हिंदू को दिये एक साक्षात्कार में श्रीमती गांधी ने कहा कि केंद्र सरकार ने समय से पहले ही कह दिया कि कोरोना वायरस पर उन्होंने जीत हासिल कर ली है और उन्होंने संसद की स्टैंडिंग कमिटी की उस सलाह को भी नजरअंदाज कर दिया, जिसमें तैयारी बनाये रखने की बात कही गई थी. फरवरी महीने के शुरू के दिनों से भारत और विदेश के सरकारी स्वास्थ्य विशेषज्ञों ने चेतावनी दी थी कि स्थिति बिगड़ सकती है, लेकिन सरकार दूसरे कामों में व्यस्त रही. इस दौरान आने वाले वक्त में कोरोना के संभावित असर के बारे में बिना सोचे देश में सुपर स्प्रेडर कार्यक्रम आयोजित किये गये.
यह ठीक उसी तरह है, जिस तरह टाइटैनिक को हिमखंड के अंदेशों से बचने के बजाय गति को तेज करने का आदेश जारी कर दिया गया था. इतिहास ने न तो टाइटनिक के कैप्टन को और न ही उसके मालिक को माफ किया. क्योंकि उसने भी विशेषज्ञों के सुझावों को नजरअंदाज किया था.

आंखों में धूल झोंकने का किया जा रहा काम

जब फ्रंट से मुकाबले की रणनीति बनाने की जरूरत थी, तब नरेंद्र मोदी और उनकी सरकार बंगाल फतह की जिद में सबकुछ नजरअंदाज कर रही थी. यदि विशेषज्ञों के सुझावों पर राजनीतिक फैसलों को तरजीह न दी गयी होती, तो इन हालात से बचा जा सकता था. लेकिन महाराष्ट्र और पंजाब को अकेले छोड़ दिया गया, जब उन राज्यों में नये मामले लगातार बढ़ रहे थे. उस दौर को याद कीजिए, जब न्यूज चैनल सब कुछ भूल कर 100 करोड़ की उगाही के गृहमंत्री-पुलिस प्रमुख के विवाद में उलझे थे. भारतीय जनता पार्टी इस सवाल पर ठाकरे सरकार के पतन की उम्मीद लगाये बैठी थी. तय है यह सब किसके इशारे पर हो रहा होगा. बंगाल और महाराष्ट्र की राजनीति के बाहर और कुछ दिख ही नहीं रहा था. ठीक उसी तरह जैसा कि पिछली बार सुशांत की आत्महत्या और रिया चक्रवर्ती के किस्सों में देश की अन्य समस्याएं, जिसमें श्रमिकों के सवाल भी था को लोगों के दिमाग से ओझल करने का प्रयास किया गया.
मीडिया वह बाजा है जो इस त्रासदी में टाइटैनिक के डूबने के समय बजाये गये संगीत की धुन बना रहा है और उसके आका सर्वोत्तम के दंभ में अपनी लापरवाही को इस शोर से ढंकना चाह रहे हैं. कुछ एलीट लोगों को लाइफ बोट देकर.