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अलग राज्य निर्माण के लिए जस्टिस एलपीएन शाहदेव ने जैसा संघर्ष किया, उसी का परिणाम है ‘आज का झारखंड’

Ranchi  :  झारखंडी मूल के हाइकोर्ट के पहले न्यायाधीश और झारखंड आंदोलन के प्रणेता जस्टिस एलपीएन शाहदेव की आज 10वीं पुण्यतिथि है. अलग झारखंड के लिए आंदोलन में सक्रियता से भाग लेने के अलावा न्यायाधीश रहते हुए उन्होंने जिस तरह से जनहित के कामों का अंजाम दिया, उसे कभी भूलाया नहीं जा सकता. हर साल राजधानी के कांके रोड स्थित एलपीएन शाहदेव चौक के पास दिवंगत को श्रद्धांजलि दी जाती थी. लेकिन इस बार कोरोना के बढ़ते संक्रमण को देख जस्टिस एलपीएन शाहदेव फाउंडेशन के निदेशक प्रतुल शाहदेव ने शुभचिंतकों से अनुरोध किया है कि वे अपने घरों पर ही रहकर दिवंगत जस्टिस की पुण्य आत्मा की शांति के लिए प्रार्थना करें. हालांकि राजधानी स्थित जस्टिस एलपीएन शाहदेव चौक पर प्रतीकात्मक रूप में उन्हें श्रद्धांजलि दी जायेगी. https://lagatar.in/wp-content/uploads/2022/01/lpnb11-600x375.jpg"

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शुरू से ही मेधावी रहे शाहदेव 1986 से 1992 तक रहे न्यायाधीश

जस्टिस शाहदेव का जन्म 3 जनवरी 1930 को लातेहार जिले के चंदवा प्रखंड के कामता गांव में हुआ था. सात भाई – बहनों में तीसरे स्थान वाले एलपीएन शाहदेव शुरू से ही मेधावी थे. मैट्रिक की परीक्षा बालकृष्णा हाई स्कूल, रांची से पास की. रांची कॉलेज में ग्रेजुएशन के बाद पटना लॉ कॉलेज से वकालत की. इसके बाद वे न्यायधीश बने. 10 जनवरी 2012 को अंतिम सांस ली. वे 1986 से 1992 तक पटना हाइकोर्ट की रांची बेंच में न्यायाधीश रहे. राज्य सरकार ने सूचना भवन के समीप चौक का नामकरण जस्टिस शाहदेव के नाम पर किया है. वह 2005 से 2011 तक झारखंड शिक्षा न्यायाधिकरण के अध्यक्ष भी रहे. 10 जनवरी को उनकी 10वीं पुण्यतिथि है.  

हरमू स्थित आवास हमेशा आंदोलनकारियों का होता था सक्रिय ठिकाना

जस्टिस एलपीएन शाहदेव ने अलग झारखंड राज्य निर्माण के संघर्ष में जिस तरह से बढ़-चढ़ कर हिस्सा लिया था, उसी का परिणाम आज का झारखंड राज्य है. न्यायाधीश एलपीएन शाहदेव चिंतक, लेखक, समाजसेवी होने के साथ ही जुझारू व्यक्ति थे. झारखंड आंदोलन के समय उनका हरमू स्थित आवास हमेशा आदोंलनकारियों के लिए सक्रिय ठिकाना हुआ करता था. आंदोलन के लिए उन्होंने राज्य के राजनीतिक दल और सामाजिक संगठनों के साथ मिलकर सर्वदलीय अलग राज्य निर्माण समिति का गठन किया था. उनके झारखंड के प्रति अटूट प्रेम ही था कि आंदोलन को चरम तक पहुंचाने के लिए एक सेवानिवृत्त न्यायधीश होने के बावजूद उन्होंने अपनी गिरफ्तारी दी थी. https://lagatar.in/wp-content/uploads/2022/01/lpnd11-600x375.jpg"

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अंतिम दौर में गिरफ्तार होकर आंदोलन को दी थी गति

झारखंड आंदोलन के अंतिम दौर में न्यायाधीश एलपीएन शाहदेव ने झारखंडियों की मांग को तेज गति दी थी. इस दौरान वे जेल भी गये. यह एक बड़ी और अनूठी घटना थी. क्योंकि ऐसा पहली बार हुआ था कि किसी पूर्व जस्टिस को आंदोलन के क्रम में गिरफ्तार किया गया था. 21 सितंबर 1998 का दिन झारखंड के लिए ऐतिहासिक था. इस दिन झारखंड आंदोलन के इतिहास का अंतिम झारखंड बंद हुआ था. इस दिन पूरा झारखंड स्वतः स्फूर्त बंद रहा. दरअसल इसके कुछ दिनों पहले ही आरजेडी सुप्रीमो लालू प्रसाद ने चुनौती देते हुए कहा था कि झारखंड मेरी लाश पर बनेगा. इस बयान पर झारखंड के युवाओं में काफी उबाल था. लालू के इस झारखंड विरोधी बयान के विरोध में सभी दलों के युवा एक मंच पर आये और सर्वदलीय संघर्ष समिति का गठन किया गया. आंदोलनकारी नेताओं ने सेवानिवृत्त जस्टिस एलपीएन शाहदेव के आवास पर जाकर उनसे आंदोलन का नेतृत्व करने का अनुरोध किया था. https://lagatar.in/wp-content/uploads/2022/01/lpnc11-600x375.jpg"

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आंदोलनकारी नेताओं के साथ सड़क पर उतर कर किया था आंदोलन का नेतृत्व

न्यायाधीश एलपीएन शाहदेव ने आंदोलनकारी नेताओं के साथ सड़क पर उतर कर आंदोलन का नेतृत्व किया था. इस तरह वह सड़क पर उतर कर आंदोलन करने वाले पहले सेवानिवृत्त न्यायाधीश बन गये. आंदोलनकारियों के साथ एलपीएन शाहदेव को शहीद चौक के पास पुलिस ने गिरफ्तार किया था. देश के इतिहास में यह पहली घटना थी. जब एक सेवानिवृत्त न्यायाधीश को आंदोलन करते हिरासत में लिया गया हो. 21 सितंबर की इस ऐतिहासिक बंदी के बाद झारखंड आंदोलन में निर्णायक मोड़ आया. अटलबिहारी वाजपेयी और लालकृष्ण आडवाणी ने सत्ता में आने पर अलग राज्य देने की घोषणा की, जिसे पूरा भी किया.

बड़े पद पर रहने के बावजूद अपने गांव को कभी नहीं भूले न्यायाधीश एलपीएन शाहदेव

न्यायाधीश और सरकार के बड़े पद पर काम करने के बावजूद एलपीएन शाहदेव कभी भी अपने गांव को नहीं भूले. दशहरा त्यौहार, गर्मी छूट्टी सहित सभी तरह के आयोजनों में वे अपने गांव आया करते थे. गांव के लोगों से वे हिंदी में बात नहीं कर नागपुरी में बातचीत को प्रमुखता देते थे. लोगों के बीच उनकी सादगी काफी प्रभावित किया करती थी. उनके बेटे प्रतुल शाहदेव ने कहा है कि ग्रामीणों से वे हमेशा जुड़े रहे. इसे भी पढ़ें – रांची">https://lagatar.in/ranchi-contact-these-doctors-for-consultation-related-to-kovid/">रांची

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