Rajendra Dubey
हर दिन बदल रही दुनिया में कुछ बदलाव बड़ी-बड़ी चिंता लेकर भी सामने आ रहे हैं. ऐसी ही एक बड़ी चिंता का सबब बनी है ऑर्टिफिशियल इंटेलीजेंस. इसको लेकर पूरी दुनिया में खूब चर्चा हो रही है. चर्चा के दोनों पक्ष हैं. कोई इसके फायदे गिना रहा है तो कोई नुकसान बता रहा है. भारत में भी सियासतदानों को इसका जोखिम नजर आने लगा है. चूंकि इसकी मदद से डिजिटल मीडिया में आसानी से झूठी बातों को फैलाया जा सकता है, इसलिए देश के कई राजनेता इस नई तकनीक से चिंतित हैं. कई पार्टियों के सांसद, केंद्रीय गृह मंत्रालय से पूछ रहे हैं कि विभिन्न जांच एजेंसियों ने ‘डीप फेक’ के मामलों में अब तक क्या कदम उठाया है. क्या केंद्र सरकार, चुनाव में ‘डीप फेक’ के खतरों से अवगत है. सियासतदानों को यह भय सता रहा है कि 2024 के चुनावी दंगल में ये डीप फेक कहीं उनके गले की फांस न बन जाए. चुनाव में ऑर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के जरिए डिजिटल प्लेटफॉर्म पर चेहरे बदलने के खतरे ने उनकी नींद उड़ा दी है.
बीते दिनों संसद के मॉनसून सत्र के दौरान राज्यसभा सांसद दिग्विजय सिंह, प्रमोद तिवारी, प्रियंका चतुर्वेदी, डॉ. एल हनुमंतय्या, डॉ. अमी याज्ञिक और रंजीत रंजन समेत कई नेताओं ने ‘डीप फेक’ का मामला उठाया था. उन्होंने केंद्रीय गृह मंत्रालय से पूछा था कि क्या सरकार इस तथ्य से अवगत है कि देश में डीप फेक के मामले आ रहे हैं. केंद्रीय गृह मंत्रालय के तहत आने वाली विभिन्न एजेंसियों ने डीप फेक के मामलों में क्या कार्रवाई की है. क्या सरकार चुनाव में ‘डीप फेक’ के खतरों से अवगत है. सरकार द्वारा डीप फेक का पता लगाने के लिए क्या उपाय किए गए हैं. ऐसा करने के लिए किस प्रकार की एजेंसियों को नियोजित किया गया है.
केंद्र सरकार का इसपर अब तक कोई अधिकृत बयान नहीं आया है, लेकिन आधिकारिक सूत्रों के मुताबिक, सियासतदानों की यह चिंता वाजिब है. आजकल सोशल मीडिया पर इस तरह के मामले देखने को मिल रहे हैं. पहले ऐसे मामलों में विशेष तकनीकी जानकारी हासिल करनी पड़ती थी. उसके बाद ही कोई व्यक्ति किसी दूसरे के फोटो के साथ छेड़छाड़ कर सकता था. अब ‘ऑर्टिफिशयल इंटेलिजेंस’ ने सभी लोगों को यह अवसर दे दिया है. इस माध्यम से जो सूचनाएं फैलाई जाती हैं, भले ही उनका आधार फेक ही क्यों न हो, लेकिन वे फौरी तौर पर भारी नुकसान पहुंचाने के लिए काफी हैं. वह नुकसान, किसी उपद्रव के रूप में हो सकता है, बड़े राजनेता की छवि खराब कर चुनावी नतीजों को प्रभावित करना हो सकता है. अगर वैश्विक स्तर के नेताओं का चेहरा लगा कर कोई फेक वीडियो वायरल किया जाता है तो दो देशों के बीच में संबंध खराब हो सकते हैं. ‘डीप फेक’ के माध्यम से दुष्प्रचार और अफवाहें फैलाई जाती हैं. आतंकी एवं चरमपंथी संगठन या साइबर हैकर, डीप फेक का गलत इस्तेमाल करते हैं. ‘डीप फेक’ में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के जरिए डिजिटल मीडिया में हेरफेर की जाती है. ऑडियो, वीडियो या फोटो में चेहरा बदल दिया जाता है.
चुनाव में इसका ज्यादा इस्तेमाल होने की संभावना है. वजह, उसमें लोगों के पास सोचने या सच को पहचानने का वक्त नहीं होता. आरोप प्रत्यारोप का दौर चलता है. कई बार बड़े नेता, पार्टी या अन्य किसी मशहूर हस्ती को नुकसान पहुंचाने के लिए डीप फेक की मदद ली जाती है. वीडियो, फोटो, लेखन सामग्री और आवाज, इन सभी को बदला जा सकता है. इसके माध्यम से झूठे सबूत भी तैयार किए जा सकते हैं. डीप फेक का सबसे बड़ा जोखिम पोर्नोग्राफी है. चेहरों में बदलाव कर सामग्री को अश्लील वेबसाइटों पर डाला जा सकता है. इसके माध्यम से छवि खराब करने का प्रयास होता है. सरकार और विपक्ष के बीच जो खींचतान चलती है, अब उसे भी डीप फेक के जरिए नया रूप दे दिया जा सकता है. लोकतंत्र को कमजोर करने का प्रयास हो सकता है. लोगों में अराजकता पैदा करने की कोशिश की जा सकती है. जातीय और धार्मिक उन्माद भी फैलाया जा सकता है. कहने का तात्पर्य यह है कि डीप फेक के जरिए किसी की भी छवि बनाई या बिगाड़ी जा सकती है.
केंद्रीय गृह मंत्रालय के एक जिम्मेदार अधिकारी ने बताया, राज्य/संघ राज्य क्षेत्र अपनी विधि प्रवर्तन एजेंसियां ‘एलईए’ के माध्यम से डीप फेक के मामलों समेत अपराधों की रोकथाम करने, उनका पता लगाने, जांच करने और अभियोजन चलाने के लिए प्राथमिक रूप से जिम्मेदार हैं. विधि प्रवर्तन एजेंसियां, साइबर क्राइम में संलिप्त व्यक्तियों के विरुद्ध कानून के प्रावधानों के अनुसार, विधिक कार्यवाही करती हैं. लेकिन उन्होंने माना कि दुनिया में नई-नई तकनीक जटिलता भी बढ़ा रही है. आनेवाले समय में इससे निपट पाना आसान नहीं होगा. बता दें कि केंद्र सरकार, एडवायजरी और विभिन्न स्कीमों के अंतर्गत वित्तीय सहायता के माध्यम से राज्यों/संघ राज्य क्षेत्रों को उनकी क्षमता संवर्धन के प्रयासों में सहायता प्रदान करती है.
केंद्र सरकार ने साइबर अपराधों से व्यापक और समन्वित ढंग से निपटने के लिए तंत्र को सुदृढ़ बनाने के उपाय किए हैं. विधि प्रवर्तन एजेंसियों के लिए एक फ्रेमवर्क और ईको सिस्टम उपलब्ध कराने के लिए भारतीय साइबर अपराध समन्वय केंद्र ‘आई4सी’ का गठन किया गया है. सभी राज्यों को डीप फेक की अग्रिम पहचान करने, उनका पता लगाने, उनकी फ्लैगिंग करने और उन्हें नियंत्रित करने की आवश्यकता के बारे में जानकारी प्रदान की गई है. जांच एजेंसियां और सरकार कितनी जल्दी इस डीप फेक नाम की बला से उबरने का तरीका ईजाद कर पाती हैं और ऑर्टिफिशियल इंटेलिजेंस देश और समाज का कितना नुकसान या फायदा कर पाएगा, आने वाला समय ही बताएगा.
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