Bermo: लॉकडाउन में सबसे ज्यादा कोई प्रभावित हुआ तो वह था मजदूर वर्ग. रोज कमाकर खाने वालों के लिए जिंदगी ठहर सी गई थी. लेकिन जब अनलॉक हुआ और काम के अवसर मिलने लगे तो मजदूर घर से बाहर निकले और सड़क निर्माण से लेकर भवन निर्माण के काम में लग गये. लेकिन ठेकेदार अपनी ही नीति पर चलते रहे. वे मजदूरों का शोषण करने में लगे रहे.
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नहीं मिलती न्यूनतम मजदूरी
बेरमो के गोमिया में कुछ ऐसा ही हो रहा है. डिग्री कॉलेज का भवन निर्माण हो रहा है. इसमें पुरूष और महिला मजदूर कार्य कर रहे हैं. वे बीस किलोमीटर दूर से काम करने आते हैं. मजदूरी दर पूछा गया तो कुछ महिला मजदूरों ने काम से हटा देने के डर से कुछ नही बताया. लेकिन पुरूष मजदूरों ने साफ कहा कि यहां सभी तरह के मजदूरों को न्यूनतम मजदूरी दर नही मिलती है. उन्हें आज भी महज दो सौ पचास रुपये ही मिलते हैं. मजदूर जान जोखिम में डाल कर काम कर रहे हैं जबकि न्यूनतम मजदूरी भी नही मिलता है.
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मुंशी ने नहीं बताया
बता दें कि राज्य सरकार अप्रशिक्षित मजदूरों की न्यूनतम दर तीन सौ एक रुपये तय की है. जबकि प्रशिक्षित मजदूरों की दर उससे ज्यादा है. लेकिन गोमिया डिग्री कॉलेज के भवन निर्माण में लगे मजदूरों को कम पैसा मिल रहा है. कार्य करा रहे मुंशी दीपक कुमार से पूछा तो उन्होंने कुछ भी बताने से इंकार किया.
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जेई को जानकारी नहीं
कनीय अभियंता अजय भेंगरा इस मामले में बताने में असमर्थ रहे. उन्होंने कहा कि देखना पड़ेगा कि क्या एस्टीमेट है और कितनी अवधि में काम को पूरा किया जाना है. वहीं गोमिया डिग्री कॉलेज के भवन निर्माण में लगे मजदूरों ने कहा कि दिन से वे काम कर रहे हैं, यदि सरकार उनकी न्यूनतम मजदूरी दिला दें तो बहुत भला होगा.
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