Nishikant Thakur
अमेरिकी शहर शिकागो में वर्ष 1893 नवंबर में आयोजित धर्म महासभा में दिए अपने संबोधन में स्वामी विवेकानंद ने कहा था-'पृथ्वी पर सबसे प्राचीनतम संन्यासी समाज की ओर से मैं आपलोगों को धन्यवाद ज्ञापित करता हूं. सर्वधर्म के सद्भाव स्वरूप जो सनातन हिन्दू धर्म है, उसका प्रतिनिधि होकर आज मैं, आपलोगों को धन्यवाद देता हूं. मैं उसी धर्म में शामिल अपने को गौरवान्वित महसूस करता हूं.' उनका उद्बोधन आज इसलिए अनिवार्य रूप से स्मरणीय हो गया है कि उनसे और भारतीय ऋषियों-महर्षियों को प्रेरणास्रोत मानकर भारतवर्ष कृत संकल्पित है. अखंड भारत की रक्षा के निमित्त राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने भी उसी मार्ग को चुना और उन्हें सफलता भी मिली. आज कोई भी दुराग्रह के कारण उनकी आलोचना करे, उनकी नीतियों में हजारों कपोल-कल्पित कमियां गिनाए, लेकिन सच वह भी जानता है कि भारत को अंग्रेजों से मुक्त कराने में जितना बड़ा योगदान बापू का रहा, अकेले में वह आलोचक भी सोचता होगा कि सच में एक कृशकाय न्यूनतम हाड़मांस का व्यक्ति ऐसा भी कर सकता है? यदि भारत सनातन और शांति का मार्ग नहीं चुनता, तो क्या वे गुलामी की जंजीरों से मुक्त हो सकते थे?
आज हम थोड़ा शक्ति-सम्पन्न हो जाने पर आपस में ही एक-दूसरे को पछाड़ने में जुट जाते हैं. जब पूरा विश्व तीसरे विश्वयुद्ध के मुहाने पर है, उसमें इजराइल की ओर से बेंजामिन नेतन्याहू ने कहा है कि ईरान में जो होगा, उसकी किसी ने कल्पना भी नहीं की होगी. नेतन्याहू कहते हैं कि ईरान के हमले नहीं रुके, तो तेहरान को राख कर देंगे. कितनी बड़ी मानवीय नुकसान की बात की जा रही है. धन के नुकसान का आकलन तो गणितज्ञ कर लेंगे, लेकिन जो मानवीय नुकसान दोनों देशों के बीच होगा, उसका आकलन कौन और किस तरह से करेगा! यह ठीक है कि अपने हक, यानी अधिकार की रक्षा के लिए युद्ध लड़ा जाता रहा है, और आगे भी लड़ा जाता रहेगा, लेकिन भारत मानवता की रक्षा का निर्वाह तो आदिकाल से करता आ रहा है. भगवान बुद्ध ने भी वही मार्ग अपनाने का संदेश दिया, जिसका पालन भारत ने गांधी के नेतृत्व में किया था. हिंदुस्तान के वायसराय लॉर्ड रीडिंग ने एक बार टिप्पणी की थी- 'उनके बाहरी व्यक्तित्व में चौंकाने वाली कोई बात नहीं है. अगर वे मुझे सड़क पर मिल गए होते, तो उनकी ओर दुबारा नज़र उठाए बगैर उनकी बगल से गुजर गया होता, लेकिन जब वे बात करते हैं, तो अलग ही प्रभाव पड़ता है. वे एकदम दो-टूक हैं और बोलते वक्त बेहतरीन अंग्रेजी में अपने एक-एक शब्द के मूल्य को बखूबी समझते हुए खुद को व्यक्त करते हैं. आखिरकार वे एक प्रशिक्षित बैरिस्टर थे.'
उधर, ईरान ने कहा है कि वह हमले का मुंहतोड़ जवाब देने के लिए तैयार है. ईरान ने कहा कि यूरेनियम का शोधन उसका अधिकार है. परमाणु अप्रसार की संधि में मिले अधिकारों को प्रभावित करने की कोशिश की जा रही है. हम मामले को कूटनीतिक तरीके से हल करना चाहते हैं, लेकिन यूरेनियम शोधन नहीं छोड़ेंगे. ईरान किसी भी हमले से बचाव और उसका जवाब देने के लिए पूरी तरह तैयार हैं. ईरान का कहना है कि इजराइल की इस तैयारी के लिए उसके किसी मित्र देश ने सूचना दी है. और यही तो हुआ पिछले रविवार को शांति प्रस्ताव पर जो बातचीत होनी थी, नहीं हुई और दोनों देश एक-दूसरे देश से युद्ध छेड़ चुके हैं. अमेरिका सदैव इजराइल का पक्षधर रहा है, इसलिए निःसंदेह इजराइल का युद्धक पक्ष मजबूत है, लेकिन क्या इस स्तर के युद्ध से विश्व प्रभावित नहीं होगा! आज भी विश्व अमेरिका द्वारा जापान के हिरोशिमा और नागासाकी पर हुए परमाणु हमले को भूल नहीं पाया है. ज्ञात हो कि परमाणु बम गिराए जाने के बाद दोनों शहर श्मशान में बदल गए थे और जिसका असर आज भी देखा जा रहा है. इसलिए दोनों देशों के बीच मध्यस्थता के लिए किसी-न-किसी को सामने आना ही होगा, ताकि आगे आने वाली मानवीय क्षति को रोका जा सके.
विश्व को आज भी याद है जब चालीस माह पहले रूस और यूक्रेन की बीच घमासान युद्ध शुरू हुआ था, जो आज भी जारी है, लेकिन विश्व में उसे रोकने में तथाकथित सर्वाधिक शक्तिशाली नेताओं की भी रूह कांपने लगी है. यदि इसी तरह विश्व में लगातार हम एक-दूसरे देश पर हमला करते रहे, तो फिर वहीं आदिम युग में प्रवेश कर जाएंगे और जो शक्तिशाली राष्ट्र होगा, वह अपनी मनमानी करता रहेगा. सच तो यह है कि आज भी वही हो रहा है, लेकिन आज किसी देश विशेष के हस्तक्षेप से युद्ध रुक जाता है, लेकिन हमारा भारत सभी युद्धों के लिए अपनी शांति के अग्रदूत प्रतीक होने को प्रमाणित नहीं कर सका . यदि ऐसा है, तो क्या गांधी उस नियम या शांति के वाहक के रूप में आखिरी कड़ी थे? यदि हां, तो ठीक है हम अपने व्यक्तिगत छवि को बनाने में देश के धन को जाया करते रहें और पूरा विश्व युद्ध की आग में जलता रहे. विश्व को शांति का पाठ पढ़ाने वाले हमारे भारत में आज कोई भी स्वामी विवेकानंद या भगवान बुद्ध बनने को तैयार नहीं, अथवा वे जानते हैं कि विश्व में उनकी हैसियत क्या है और उनकी बातचीत अथवा उनकी भागीदारी से कुछ हल नहीं निकलेगा, इसलिए चुप रहो. कहा जा रहा है कि इजराइल पहले गजा और अब ईरान को तबाह करके अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के और करीब आने का प्रयास कर रहा है.
जो भी हो भारतवर्ष भी इससे वंचित नहीं है. वह भी बार-बार इन झंझावातों से जूझता रहा है, क्योंकि उसे बार-बार अपने पड़ोसियों द्वारा उकसाया जाता रहा है, लेकिन शांति का पुजारी भारत कभी भी इसमें अगुआ नहीं बना. भारत तो केवल अपनी आत्मरक्षा के लिए ही युद्ध किया है, किसी की मदद के लिए ही आगे आया है. भारत विश्व को भी यही उपदेश देता है कि हम केवल अपनी सनातन की रक्षा के लिए किसी युद्ध में हिस्सा लेंगे, अन्यथा अपने आत्मरक्षार्थ ही, क्योंकि विश्व आज जिस संकट में है, उसमें शांति के लिए ही प्रयास यदि कोई करता है, तो वह श्रेष्ठ है, अन्यथा किसी दिन देश के देश, शहर के शहर श्मशान के रूप में तब्दील हो जाएंगे. आज बिल्कुल आधुनिक तरीके से युद्ध लड़ा जा रहा है और इसलिए किसी को अगले क्षण का भी पता नहीं चलता कि कब क्या हो जाएगा. अब यही इजराइल और ईरान व रूस और यूक्रेन का युद्ध लड़ा जा रहा है. इसका परिणाम क्या होगा, इसका किसी को पता नहीं चलेगा, लेकिन उससे किसी देश का भला क्या होगा? हां, एक-दूसरे का अहंकार जरूर पूरा होगा, केवल अहंकार. इसलिए हमारा देश, जो भगवान बुद्ध, स्वामी विवेकानंद तथा महात्मा गांधी की नीति पर चलकर आज सुरक्षित है, वह केवल सनातन है, शांति का अग्रदूत होने का ही परिणाम है. लड़ता तो भारत भी है, लेकिन अपने आत्मरक्षार्थ, जिसमें वह सफल होता रहा है और आगे भी होता रहेगा. इसलिए आज भी स्वामी विवेकानंद का शिकागो की धर्मसभा में दिया गया उद्बोधन सार्थक है, हमारे सनातन और शांति की अमूल्य निधि है, जिसे सहेजकर ही आजतक हम सुरक्षित हैं.
डिस्क्लेमर : ये वरिष्ठ लेखक हैं और ये इनके निजी विचार हैं